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मैं और मेरी कविता भाग-11

हमारा कोमल ह्रदय, सुरम्य मन व पवित्र विचार ही शब्द का उद्गम केन्द्र बनते है। शब्दों के सृजन मात्र से रचना की उत्तपत्ति होती है। यह अलंकार रचनाकार के अस्तित्व का निर्माण करते है। ऐसा क्रम अनादिकाल से चलता आया, जब ये रचनाकार असंख्य पाठकों की आत्मा से साहित्य का साक्षात्कार करवाते आए है। सहित्य की इसी विधा को उत्तरोत्तर बढ़ाने के लिए ‘न्यूज़ जंक्शन-18’ ने ‘मैं और मेरी कविता’ नाम से रविवारीय कालम की शुरुआत की। इसके बाद से अब तक दूर-दराज के कई रचनाकार हमसे जुड़कर सहित्य सफर के सहभागी बने है। यही वजह है कि हम आज 11वें सोपान में प्रवेश कर चुके है। इस सप्ताह हम कुछ और कविताओं को प्रकाशित कर इस क्रम को आगे बढ़ा रहे हैं।

जलज शर्मा
संपादक, न्यूज जंक्शन-18
212, राजबाग रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर-9827664010
—–
रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
शक्ति नगर, रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर-9827047920
—–

लगा रहे है आग

 

सच आत्म हत्या करें, झूठ करें है मौज
ठूंठ होकर झूठ गिरे, देखना एक रोज

सच ख़बरें देता नहीं, देख यह अख़बार
झूठे करते है इसे, प्रणाम सौ-सौ बार

बारह मास है जिनका, घर रमेश फुटपाथ
खुद को ही वे मानते, इस जगत में अनाथ

जीवन जिनका ही बना, देख झाड़ झंखाड़
कभी सपाट जमीन है, कभी कठोर पहाड़

काट रहे है देखिये, हरे-भरे ये बाग
स्वयं अपने ही घर में, लगा रहे है आग

मानव ऐसे है यहाॅं, भुलते है उपकार
एक दूजे का वे नहीं, झेले देखो भार

पेट वास्ते वे करें, परिश्रम ही दिन रात
फिर भी खा जाती सभी, महंगाई को गात

अच्छे मानव की सदा, करें आप पहचान
हरदम देते है उसे, आदर ‘औ’ सम्मान

पैसा उनके पास था, तभी तक दिया साथ
हुआ पराया वो तभी, पैसा रहा न हाथ

इस संसार में जो चले, पकड़े अच्छी राह
उसके भीतर ही सदा, रहता है उत्साह

रमेश मनोहरा
शीतला माता गली जावरा (म.प्र.)
457226, जिला रतलाम
मो. 9479662215, 7999890997
—–

ज्योतिर्धर दीपक बोला ?

अंधियारे को चीर देती है दीप की रश्मियां,
भस्म कर देती है वह कालिमा की बस्तियां।
घोर तमस के विरुद्ध हो एक दीप की आराधना,
उस दिव्य दीप की रश्मि से ही शुद्ध होगी भावना।
द्वेष मिटाए प्रेम बढ़ाए बढे और विश्वास में ,
जीवन तब ज्योतिर्मय होगा विश्व के आकाश में ।।

झिलमिल करते दीपक ने हमसे आज पुकारा ,
सद्कर्म से विमुख हुए हो कहकर हमें धिक्कारा।
मैंने कहा दीपक राजा से तुम करते आये उजियारा,
लेकिन दीपक के नीचे ही सदियों से है अँधियारा।
ज्योतिर्धर दीपक बोला हो दया धर्म मन में ईमान ,
तुम भी तो हो राष्ट्र दीपक अपने कर्मों का रखो ध्यान।

रमेशचंद्र चांगेसिया “प्रभात”
राष्ट्रीय ओजस्वी कवि- गीतकार
39 “ज्ञानाश्रय” प्रीति परिसर इंदौर रोड़ उज्जैन
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लोग……!

 

कमाल की बात है ना
मुझे आंसू देने वाले ही
मेरा दुख बांटने आ गए
जो होठों पर खैरियत
दिल में बद्दुआ देते रहे
आंसुओं को देख जो
मन ही मन हंसते रहे
मैंने बदलते चेहरे देखे
बहुत छोटे लोग देखे
मैं उनके साथ चलता रहा
जो मेरे लिए कांटे बिछाते रहे
मैं निर्मल सा मन लिए
उनका कपट न जान पाया
हमने तो दिल बिछा दिया
उन्हें सौदा नजर आया
मैं तो टूटता चला गया
वो तोड़ते रहे बार-बार
मैं तो दुख बांटता रहा
वे आंसुओं पर हंसते रहे…!

सतीश जोशी
संपादक- औदुम्बर उद्घोष
समूह संपादक- 6PM
इन्दौर (मप्र)।
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सजा

मैं सोच नहीं सकती
कि तुम हो सकती हो
इतनी निर्दयी

कर सकती हो
अपने ही खून का खून

क्यों नहीं समझती
कि मैं भी
तुम्हारा ही हूं अंश

तुम्हारे ही रगों में, दौड़ती है
मेरी आत्मा
तुम्हारी सांसों में ही बसी है
मेरी भी सांसे

सोचो माँ
अपनी भुलों की सजा
मुझे देकर
तुम रह पाओगी खुश?

संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्ति नगर, गली नंबर-2
रतलाम (मप्र)।

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