किसी भी रचना की मौलिक कल्पना रचनाकार का अस्तित्व निर्माण करती हैं। जबकि प्रस्तुति के लिए मंच रचनाओं का भविष्य निर्धारित करता है। इस सोच को रूप देने ‘न्यूज जंक्शन-18’ वेब पोर्टल द्वारा साप्ताहिक रविवारीय स्तम्भ ‘मैं और मेरी कविता’ की शुरुआत की गई। गुणी रचनाकारों की प्रकाशित रचनाएं देशभर में पढ़ी जा रही है। विभिन्न शहरों व प्रदेशों से हमें प्रेषित कविताएं इसका मूल प्रमाण है। रचनाकारों की यही सार्थक पहल हमारे लिए मार्गदिशा तय करती है। हम साहित्य के सफर में निरंतर आगे बढ़ रहे है। स्तम्भ के 9वें सोपान में हम आपके लिए कुछ और उम्दा रचनाएं लेकर आए है।
जलज शर्मा,
सम्पादक, न्यूज जंक्शन-18
212, राजबाग़ रतलाम (मध्यप्रदेश)।
मोबाइल नंबर 9827664010
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रचनाओ के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
शक्ति नगर, रतलाम (मध्यप्रदेश)।
मोबाइल नंबर 9827047920
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सवाल
रोज़ बात करता है
मुझसे पेड़ आंगन का
अपनी जड़ के बारे में
और तने के बारे में
और अपनी शाखों का
और अपने पत्तों का
और अपने फूलों का
और अपने फल का भी
और अपने साये का
रोज़ जिक्र करता है
सोचता हूं यह नेचर
हुबहू है मेरा भी
मेरी जड़ भी पुख्ता है
मैं भी साया देता हूं
मेरे फ़ल भी मीठे हैं
फिर सवाल उठता है
दिल में में रह रह कर
पेड़ हूं के इंसा हूं
पेड़ हूं के इंसा हूं।
-सिद्दीक रतलामी
वरिष्ठ शायर
रतलाम (मप्र)
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बरगद और बुजुर्ग
बरगद और बुजुर्ग
होते एक समान
दोनों आसरा देते।
कोई पता पूछता
बरगद और बुजुर्ग
के संकेत औऱ नाम
बताते राहगीरों को।
बरगद की लताओं पर
झूलते बच्चे
बुजुर्गों की उंगली पकड़
चलते बच्चे
बरगद और बुजुर्ग
बन जाते सहारा
बरगद पूजा जाता।
बुजुर्ग देते आशीर्वाद
वृक्ष ना काटो
ना झिड़को बुजुर्गों को
ये ही तो आसरा
और सहारा
गाँव लगता
इनसे प्यारा है।
-संजय वर्मा”दृष्टि”
मनावर, जिला धार (मप्र)
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अन्नदाता
अन्न प्राण व ब्रह्म है,
अन्न रक्षित यह शरीर।
अन्नदाता ही पैदा करे,
दे इसे खाद व नीर।
हरीतिमा की चादर ओढ़,
धरा ने किया श्रृंगार
जीवन धड़कनों से जुड़े
भूमि के भी तार।
गोबर खेती बेंचकर
ले आया है कार,
ऐसा उसका सोचना ,
ऐश करो दिन चार।
स्वयं का कर्तव्य तो
निभा रहा है किसान,
फिर धरा पर लाचारी के
कैसे हैं ये निशान?
दंश सहता आया वह
कभी सुखा ओलावृष्टि के
रहस्य कोई भी जान न पाया
ब्रह्मा की इस सृष्टि के।
होरी अब भी चुका रहा
जमीदारों का सुद,
धनिया धरणी बनकर
उठाती भार खुद।
रासायनिक खाद ने
कर दिया मालामाल ,
पर धरती हो गई हाल बेहाल।
मुख पर तो खेतीहर के
छा गई लालीमा
पर्यावरण पर आखिर क्यों?
बची रह गई कालिमा।
बुढ़े बैल ने साथ छोड़ा
गौशालाएं गई गाय,
दूध मक्खन भाता नहीं
पीते अब हम चाय।
ट्रेक्टर जैसे उपकरणों से
करते हम सब खेती,
निष्पक्ष भाव से धरा भी
अन्न उपजा कर देती।
प्याज लहसुन के साथ ही
अनेक विदेश फल,
निपजाते हम किसान ही
शीतगृह में आजकल।
ककड़ी, मूली, गाजर, धनिया
पत्तागोभी व सलाद,
उगा रहे हैं आजकल
देकर जैविक खाद।
खेती की बदौलत ही हासिल
बच्चों के सरकारी पद,
माँ धरती के आशीर्वाद से
बढ़ा हमारा कद।
इसकी सेवा हम करें
तनिक करें न विश्राम ,
पूजा इसकी हम करें
खेतों में करते काम।
-डॉ. सतीश जोशी
ग्राम नगरा ,रतलाम (मप्र)
मोबा .9425329808
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तू लाज़वाब है…
जिंदगी तू लाज़वाब हैं,
बार-बार चाहे देखना,
तू ऐसा सुंदर ख़्वाब हैं,
तेरी ख़ामोशी में मगर,
छुपे कुछ सवाल हैं,
समय-समय पर इन,
सवालों का भी,
तू बहुत सटीक ज़वाब हैं,
तेरे ज़वाब में कभी,
लगता गहरा मौन हैं,
मुझको मुझसे छलने वाली,
आख़िर तेरा छलिया कौन हैं ?
तू है परछाई या पराई,
सांसों में लिपटी,
तेरी रहनुमाई,
ऊपर वाले का दिया,
तू कोई सबक है शायद,
जाने अंजाने तभी,
हर कोई तुझे जीने की,
करता रहता हैं कवायद…।
– यशपाल तंँवर
(फिल्म गीतकार)
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मां….
मां शब्द नहीं सागर है प्यार का।
मां रिश्ता नहीं प्रगाढ़ता है दुलार का।।
मां प्राणी नहीं प्राण है ,सब संतान की।
मां साक्षी है, दुख सुख में हर इंसान की।।
मां हर तन मन की खास है।
जैसे मरुस्थल में झील का एहसास है।।
मां सोती नहीं सुलाती है ,
रोती हुई औलाद।
भूल अपना गम भुला देती है,
दुख के फौलाद को।।
दिनेश बारोठ ॓ दिनेश॔
शीतला कॉलोनी सरवन जिला रतलाम