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ये रेवड़ियों के सिस्‍टम में मिश्री का बंटवारा…भारी भरकम घालमेल, चवन्‍नी की चीज का सीधा 10 रुपया

-ट्रॉफ‍िक वर्कशॉप में फ‍िर बढ़ा दी बोलेरो 25 प्रतिशत अवधि।
न्‍यूज जंक्‍शन-18
रतलाम। रेलवे सिस्‍टम में इन दिनों ठेकेदारी की कोढ़ के अलावा मटेरियल सप्‍लाय की खाज दीमक बनकर आम लोगों से प्राप्‍त मोटी राशि को चौपट कर रही है। हालात यह है कि चवन्‍नी की चीज यहां सीधे 10 रुपए या इससे अधिक में खरीदी जा रही है। वह भी एकदम गुणवत्ताहीन। ये घालमेल भी चुनिंदा रसूखदार फर्म तक ही सीमित है। बाकी दूसरी फर्म या एजेंसियों को ट्रेंडर प्रकिया से मक्खी की तरह बाहर फेंक दिया जाता है। सामग्री खरीदी के बाद विभागों में या यात्री सुविधा के नाम पर स्‍टेशनों पर पहुंचाकर करोड़ों रुपए साल के डकारे जा रहे है। यहीं वजह है कि सामग्री वितरण के केंद्र व प्रमुख युनिट ट्रैफ‍िक वर्कशॉप में दो माह पूर्व मुंबई से विजिलेंस की टीम ने छापामारी की थी। कार्रवाई के बाद अब विजिलेंस टीम इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक कर इसे मूल विभाग में भेजने की तैयारी में है। इधर, ट्रैफ‍िक वर्कशॉप में बोलेरो वाहन को बंद करने के बजाय इसकी अवधि में 25 फीसदी इजाफा कर दिया है।
मालूम हो कि रेलवे में कई सामग्री की खरीदी के लिए मटेरियल विभाग द्वारा निविदा आमंत्रित की जाती है। वहीं विभागों के अलावा ट्रैफ‍िक वर्कशॉप में भी लोकल पर्चेसिंग के मुताबिक फर्मों से सामग्री ख़रीदी जाती है। असली अनियमितता का क्रम यही से शुरू होता है।

बोलेरो कैंपर अनुबंध को बढ़ा दिया गया

ट्रैफ‍िक वर्कशॉप में सामग्री परिवहन के नाम पर अनु‍बंधित की गई बोलेरो कैंपर (एमपी-43-जी 5275) वाहन के दुरुपयोग की खबरें आई थी। अनुपयोगी कुर्सी, टेबल, सोफा, आलमारी, पलंग, तकिए, चादर सहित अन्य सामग्री की नीलामी या नष्ट करने की प्रकिया के लिए दाहोद ले जाई जा रही है। कम संख्या में सामग्री परिवहन के लिए भी बोलेरो का उपयोग किया जा रहा। जबकि ये सामग्री बड़े वाहन में एक साथ या ट्रेन द्वारा भी ले जाई जा सकती है। इसका 2 साल का अनुबंध खत्म होता देख वाहन की अवधि में 25 फीसदी यानी 6 माह और इज़ाफ़ा कर दिया गया। मामले में प्रभारी एसएसई ट्रैफिक वर्कशॉप अब्दुल शेख अहमद का कहना है कि वाहन की आवश्यकता के मुताबिक इसकी अवधि 25 फीसदी बढ़ाई है।

ऐसी है अनियमितता, सिस्टम में गड़बड़ी

-मटेरियल सप्लाय की वर्तमान में ऑनलाइन व्यवस्था है। बावजूद अधिकांश फर्म त्रुटि के नाम पर बाहर कर दी जाती है।
-पारदर्शिता के बावजूद चुनिंदा फर्म के संचालक शासकीय कार्यालय में कम्यूटर सिस्टम का उपयोग कर स्वयं ही टेंडर की खानापूर्ति करते है।
-इन फर्म संचालकों को जिम्मेदारों द्वारा भरपूर सहयोग दिया जाता है। हर कमियां (क्यूरी) दूर कर दी जाती है।
-टेंडर में आमंत्रित सामग्री की दरें भरने में भारी आर्थिक अनियमितता। 15 हजार रुपए बाजार मूल्य के सोफासेट की रेलवे में 75 हजार रुपए में खरीदी। 10 से 15 हजार की स्टील चेयर 48 हजार है।
-इसी तरह, कम्यूटर, प्रिंटर, कुर्सियां, तकिए, बेडशीट, पलंग, आलमारी सहित तमाम कई सामग्री की बाजार मूल्य से कई गुना में खरीदी।
-टेंडर के अधिकार देने से लेकर बिल पास करने में उपहार सहित जमकर बंटवारे की भागीदारी।
-गठजोड़ के चलते बगैर जरूरतों की लाखों रुपए की सामग्री की हर माह व हर साल खरीदी।
-मेलजोल के अभाव में टेंडर में कम दर अंकित करने वाली फर्म को सीधे दिखाया जा रहा बाहर का रास्ता।
-कई फर्म को ट्रेंडर में कमी दर्शाकर बगैर सूचना उनकी इंट्री निरस्त की जाती है। बल्कि रसूखदारों को बुलाकर उल्टा तकनीकी सहयोग किया जाता है।

नोट- पिछले दो सालों में किस फर्म को कितना वर्क ऑर्डर दिया गया। इन सालों में कौन सी फर्म को कितने बार वर्क दिया गया। इसके बारे में आरटीआई में जानकारी प्राप्त की जा रही है। इसके बाद विस्तार से जनहित में क्रमवार खबरों का प्रकाशन कर अनियमितता उजागर की जाएगी।

 

 

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