न्यूज जंक्शन-18 के साहित्यिक मंच ‘मैं और मेरी कविता’ के इस रविवारीय अंक में कुछ नए रचनाककर जुड़े है। इनकी उम्दा रचनाओं से आप पाठकों को रूबरू करवा रहे है। हर सप्ताह के अंक के लिए हमें नियमित रूप से कविताएं प्रेषित की जा रही है। इन्हें हम प्राथमिक रूप से स्थान दे रहे है। इस बार की चार उम्दा रचनाएं प्रकाशित की जा रही है।
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जलज शर्मा
212, राजबाग़ कॉलोनी, रतलाम (मप्र)
मोबाइल नंबर 9827664010
रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्ति नगर, रतलाम (मप्र)
मोबाइल नंबर 9827047920
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ख़्वाहिश
ख़्वाहिश है तुम्हारे साथ
कहीं गुम हो जाने की।
रेत का घरौंदा बनाने की
बारिश की बूंदों के साथ
बह जाने की, भीग जाने की ।
तालाब किनारे खिलते कमल को सहलाने की।
ख्वाहिश है तुम्हारे साथ
कहीं गुम हो जाने की ।
दूर पहाड़ों पर घने कोहरे के बीच
हाथ थामें साथ चलने की,
उड़ते बादलों के बीच
साथ तुम्हारे टहलने की
और हां,
सूनी वादियों में साथ गुनगुनाने की।
ख्वाहिश है तुम्हारे साथ
कहीं गुम हो जाने की ।
चांदनी रात में चांद से बतियाने की
टिमकते तारों के बीच
तुम्हारे शानों पर सर रखकर
एक दूसरी दुनिया में जाने की।
ख़्वाहिश है तुम्हारे साथ
कही गुम हो जाने की।।।
– योगिता राजपुरोहित
71/1, श्रीमाली वास, रतलाम
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ग़ज़ल
सितारों के बराबर हो गया है
ये ज़र्रा हद से बाहर हो गया है ।
उजाला दिल के अंदर हो गया है ,
ख़ुदा का घर मेरा घर हो गया है ।
हमारे साथ तुम कब तक चलोगे
सफ़र ही अब मुक़द्दर हो गया है ।
चमन की खुशबुओं पर ये सितम है
महकता फूल पत्थर हो गया है ।
ये कैसी है ज़माने की हवाएं
हरेक दिल बद से बदतर हो गया है ।
मैं ज़र्रा हो के भी ज़र्रा नहीं हूं
मेरा सब कुछ समंदर हो गया है।
– सिद्दीक़ रतलामी
12, नयापुरा, रतलाम (मप्र )
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नारी तू नारायणी
नारी तू नारायणी है,
शीश अपना मत झुका,
नर की जीवनदायिनी है,
कष्ट कोई मत उठा ।
नारी जब अपने पे आएं,
बहता पानी रोक दें,
बड़े-बड़े तूफानों का,
पल में ही रुख मोड़ दें,
दुर्गा काली अष्ट भवानी,
आंचल अपना मत सुखा ।
नारी तू नारायणी है…..
नारी तू ममता की मूरत,
वात्सल्य अपना सब पर लुटा,
अपने को पहचान तू,
शक्ति अपनी जान तू,
नारे तू शक्ति स्वरूपा,
दुष्टों पर मत दया
दिखा ।
नारी तू नारायणी….
नारी तू पूजा की मूरत,
नीर अब तू मत बहा,
गर तेरा अपमान होगा,
देश ये मिट जायेगा,
सृष्टि होगी नष्ट-भ्रष्ट,
कुछ भी न फिर बच पाएगा,
तुझसे ये संसार सारा,
बात अब ये मत भूला ।
नारी तू नारायणी….
-हेमलता शर्मा भोली बेन
इंदौर (मप्र )
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करके तो देखिए
विचारों में बदलाव करके तो देखिए |
अलगाव में भी लगाव करके तो देखिए ।
रूह से सजे हैं दिलों के रिश्ते
अपनो में अपनी छाव करके तो देखिए |
प्रेम कृति में विकृति है बेमानी
सागर में स्नेह का अलाव करके तो देखिए |
प्रगति में प्रवृति का बदलाव है ज़रूरी
अपनी प्रकृति में झुकाव करके तो देखिए |
रिश्तों का मोल अनमोल जो ठहरा,
प्रेम के सौदे में ठहराव करके तो देखिए ।
विकृत हो चुके टूटे रिश्तों के बीच,,
अपने समर्पण का चुनाव करके तो देखिए ।
गर तरबतर हो दुख से सना कोई अपना,
सुख की उसमें छाव करके तो देखिए ।
-विनीता ओझा
28,पत्रकार कॉलोनी
रतलाम