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मैं और मेरी कविता

न्यूज़ जंक्शन-18 के साहित्यिक सफर के इस रविवारीय अंक में आपके लिए कुछ नई कवित व रचनाकारों से रूबरू करवाने जा रहे हैं। हमें मध्यप्रदेश के अलावा बिहार राज्य से भी कविता प्रेषित की गई है। इस सहित सप्ताह के इस अंक में चार कविताएं प्रकशित की जा रही है।

जलज शर्मा,
212, राजबाग कॉलोनी, रतलाम (मध्यप्रदेश)
मोबाइल नंबर 9827664010

रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
शक्ति नगर, रतलाम (मध्यप्रदेश)
मोबाइल नंबर 9827047920
——

स्त्री नदी ही तो है

मन ही मन संवादों की
लहरों में डूबती उतराती,
भीतर के हर कोने में बहती
विचारों की अनवरत धारा,
जो छलक पड़ती
यदा कदा।
मर्यादाओं के तट बंधो में बंधी
कठोर,पथरीले पर्वतों के
बीच राह बनाती
बहती रहता है।
जिन्दगी की शुष्क,पथरीली ,
बंजर धरा पर
सपनों की पौध उगाती है।
मौसम की धूप छाँव में
. पालती संस्कृति संस्कारों को।
ज्वार के मीठे सपनों में
उफनती है चुपचाप।
मुस्कराहटों की रजनीगंधा
बिखेरती तट पर
स्वर विहिन गीतो को
बहा देती है
उलझनों की जलधारा में।
शनैः शनैः
ढलती यादों के साथ,
सूख जाती है रेत की मानिंद
भीतर समेटे जल धार।
कुरेदो तो बह निकलती है
झरने की मानिंद,
स्वच्छ, निर्मल ,कोमल।
स्त्री नदी ही तो है…..।

-डॉ.गीता दुबे
से.नि. प्राध्यापक
रतलाम (मप्र)
——
मुझे तुमसे प्यार है

केसर की महक है तू
कंवल का रूप
हर प्रश्न का उत्तर तू
धवल सा रूप
इसलिए मुझे तुमसे प्यार है।।

दूर है आसमान सी
चमक तारों की
बहती हो सरिता सी
न मिले किनारो सी
फिर भी मुझे तुमसे प्यार हैं।।

छूना तो चाहता हूँ
पर हवाओ सा
कहना तो चाहता हूँ
बाग़ भ्रमर सा
तब भी मुझे तुमसे प्यार है।।

तुम नवनीत नव ऊषा
मेरे जीवन की
तुम रत्न नीलम
मेरे लिए अनमोल सी
इसलिए मुझे तुमसे प्यार है।।

नयनो का आकर्षण तू
धुप और छाँव सी
श्रंगार का दर्पण तू
ललाट बिन्दिया सी
इसलिए मुझे तुमसे प्यार है।।

नृत्य थिरके कदम तू
बोल ‘त्रकधा’ सी
गान बन “देव” तू
साथ प्रिया परी सी
इसलिए मुझे तुमसे प्यार हैं।।

-विष्णु कण्डारे ‘देव’
रतलाम (मप्र)
——

मेरी कविता

अक्सर मुझसे सवाल करती है मेरी कविता ।
जाने क्या कहना चाहती है?
और जाने क्या-क्या कह जाती है ?
खुद से ही मुझको बेगाना बना देती है मेरी कविता । .
मुझसे ही बातें करती हैं,
तो कभी खामोश हो मुझसे ही रूठ जाती है मेरी कविता ।
पलभर में सारे जहाँ की खुशियाँ लुटाती ।
अक्सर धूप छाँव का खेल खेलती,
नजर आती है मेरी कविता ।
मेरी तन्हाई को दूर करती ,
कभी मेरी सच्ची दोस्त सी बन जाती ।
जानें कौन सा जुनुन ढूढ़ँती?
सारे जहाँ में भटकती,
आत्मा के तार पर शब्द तराशती ।
हर जज्बे को झकझौरना चाहती ।
कभी सच्ची हमदम बनती ,
खुद में ही मुझे ढूढँती ,
मेरे सपनों के तार पे थिरकती ।
कभी रंगों के जहाँ में रंगीन बन जाती ।
मायूसी में भी नई उत्साह जगा जाती ।
कदम से कदम मिलाए चलती,
नए-नए शब्दों संग नया स्वरूप ,
अब भी उभरती है “मेरी कविता ” ।
अब भी उभरती है ” मेरी कविता” ।

-निवेदिता सिन्हा
भागलपुर,बिहार
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ज़िन्दगी

ज़िन्दगी
क्यू अपनी सी लगती है ज़िन्दगी
मुझे एक सहेली सी लगती है।
है तेरा मेरा कोई रिश्ता पुराना
क्यूँ मुझे कोई पहेली सी लगती है।

कभी तू आसमाँ दिखाती है
क्यूँ फिर धरती पर ला पटकती है।
है तेरे नाज़ नखरे कई तरह के
क्यूँ फिर विकराल रूप दिखाती है।

है गर तेरे पास खुशियों की झोली भरी
क्यूँ नहीं फिर प्यासों पर बरसाती तू
है तुझसे ही मिलने की ललक
क्यूँ फिर सब अधूरा छोड़ जाती है तू।

तृप्ति सिंह सकरारी
रतलाम (मप्र)

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