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‘मैं औऱ मेरी कविता’ भाग-4


न्यूज जंक्शन-18
वेब पोर्टल पर चलाए जा रहे ‘मै और मेरी कविता’ काव्य स्तंभ के अगले सोपान में कुछ औऱ नए पुराने रचनाकारों की कविताओं का प्रकाशन किया जा रहा है। इस सोपान को निरंतर जारी रखने की प्रतिबद्धता को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा हैं। इस कालम में रतलाम सहित देशहर के कवियों को आमंत्रित किया जा रहा है। तांकि इस साहित्य सफ़र का बेहतरी से विस्तार किया जा सके।
इस नंबर पर भेजिए कविताएं
जलज शर्मा
212, राजबाग़ कॉलोनी रतलाम (मप्र)।

मोबाइल नंबर 9827664010

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सिंदूर से नहायी औरतें (कविता)

बालों की मांग में भर सिंदूरी रंग,
एक दूसरे को सिंदूर लगाती औरतें ,
देती है अर्ध्य, चमकती किरणों को ,
पति पुत्र की लंबी उम्र का वरदान मांगती हुई,
हंस रही है औरतें,
सूपड़ा फटकारती गीत गाती,
चमकती साड़ियों से ढकती है,
पिछली रात के चोट के निशानों को.
उनको याद रहते हैं,
बचपन से सुने त्योहारों के गीत,
साँसों में घुला है नशा,
शिराओं में ही बसा रहेगा,
नहीं चाहती है वो नशे से दूर होना,
चाँदी की मोटी पायल के घुंघरू पसंद है उसे,
बाजूबंद से कसी,बांहे दर्द करती है कभी,
पति की मार के बाद बाँहों का सुख भाता है उसे.
बाहर भी जाल बिछे हैं साजिशों के,
बिखरे हैं दाने परिंदों के लिए,
ताक लगाए रहते हैं भेड़िए,
नहीं करनी है कोई नयी बात उसे,
क्या करेगी बनाकर पहचान,
सैकड़ों गिद्धों का शिकार बनेगी,
बची तो है इस कमरे में,
जहाँ नोचता है,एक भेड़िया उसे,
परमेश्वर है उसका ,
अम्मा ने बताया था,बचपन मे.
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इन्दु सिन्हा”इन्दु”
अरावली अपार्टमेन्ट
रतलाम (मध्यप्रदेश)
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फिर भीअदावत किए जा रहे हैं लोग

दो दिन की जिंदगानी है फिर भी अदावत किए जा रहे हैं लोग..!
किश्तों में ख़ुदकुशी का आख़िर क्यों मजा लिए जा रहे हैं लोग..!

नफ़रत बोने से आज तक किसने मोहब्बत की फसल काटी है..!
*यह सब जानते हुए भी जाने क्यों नफरत बोए जा रहे हैं लोग..!

रोशनी बांटने से रोशन होती है जिंदगी की राहें यह जान ले..!
आज जला कर घर गैरों के ख़ुद को रोशन किए जा रहे हैं लोग..!

ग़म ख़ुशी उम्मीद नाउम्मीद सब कर्म के आंचल में छुपे होते हैं..!
अधर्म वाले कर्म की राह पर फिर ये किस लिए जा रहे हैं लोग…।

कमल सिंह सोलंकी
07C पूनम विहार इंद्रलोक नगर रतलाम
मोबाईल नम्बर 9826588761

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पुराने ख़त

किताबों की तह में रखे
पुराने ख़त
बहुत कुछ याद दिलाते

अलमारी के पट खुलते ही
खुल जाते यादों के पिटारे
हिलोरे लेने लगती
यादों की लताएँ

ख़तों के बीच रखे
सूखे गुलाब
बरबस बयां कर देते
अपनी दास्तां

होंठ खुले बिना
सब कह जाते

चूर चूर होती
सूख चुकी पत्तियां
यादों की ताज़गी का
कराती अहसास

लगता/ जैसे
ख़त रखी किताब की तरह
अभी भी हाथों में है
वो गुलाब सी महकती
ज़ुल्फों वाला
चाँद सा चमकता चेहरा

और/चेहरे पर
गुलों के मकरंद सी
सजी बिंदियाँ
मानों कह रही हो
मैं अब भी हूं तुम्हारी
तुम महसूस तो करो।

संजय परसाई ‘सरल’
मोबा. 98270 47920

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उनको कैसे भूल गए

 

जिन हाथों ने तुमको खिलाया उनको कैसे भूल गए ।
भोले भाले मात पिता को ऐसे कैसे भूल गए ।

खुद ने ठंडी खाकर तुझको गर्मी का एहसास दिया ।
बारिश की रिमझिम से बचाकर तुम पर क्या एहसान किया ।
जिन ने तुमको जीना सिखाया
उनको कैसे भूल गए ।
भोले भाले मात पिता को ऐसे कैसे भूल गए ।

तेरी सर्दी खांसी पर उनने रातें कुर्बान कर दी ।
तेरी हर मायूसी पर उनने तुझको मुस्कान दी ।
प्यार बांटने वालों को तुम ऐसे कैसे भूल गए ।
जिन हाथों ने तुमको खिलाया उनको कैसे भूल गए ।

हाथ पकड़कर जिनने तुमको कलम चलाना सिखाया ।
जिंदगी के कठिन मोड़ पर कदम मिलाना सिखाया ।
वह वक्त तुम्हारा आया तो तुम उनको कैसे भूल गए ।
जिन हाथों ने तुमको खिलाया उनको कैसे भूल गए ।
अब भी जागो अब भी मानो समय अभी गया नहीं ।
तेरे पापों का घड़ा देखो अब भी भरा नही ।
भूल हो गई भूल गए हम मात
पिता तुम्हे भूल गए ।
जिन हाथों ने तुमको खिलाया उनको कैसे भूल गए ।
भोले भाले मात-पिता को ऐसे कैसे भूल गए ।

-गीतकार अलक्षेन्द्र व्यास
राजेन्द्र नगर’ रतलाम।
मोबा. 9302426683

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बह जाओ आज में…

अलसाई सुबह के साथ,
चाय की चुस्कियों में,
लिपटी दिनभर की ताजगी…।
शुरुआत हैं यह,
छोटी – छोटी खुशियों को,
लपकने की,
जिंदगी के बादलों से,
उमंगों का पानी
बरसने की…।
जितना हो सके,
बह जाओ आज में,
कल की छोड़ चिंता,
जुड़ जाओ बनके तार,
मोहब्बत के साज़ में…।
प्रेम राग बस बजता रहें,
सांसों की लुभावनी दौड़ में,
मगर यह भी ख़्याल रहें,
कुछ नहीं रखा है दोस्तों,
बेवजह की होड़ में..।

रचना ©️ यशपाल तंँवर
फिल्म गीतकार

1 Comment
  1. पद्माकर पागे says

    बहुत अच्छा प्रयास ।
    शुभकामनाएं

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