Logo
ब्रेकिंग
गर्मी, बारिश व आंधी के बीच जिले में अनुमानित 77 प्रतिशत से अधिक मतदान यूनियन का फुटबाल प्रशिक्षण शिविर...122 बच्चे डीआरएम के हाथों सम्मानित 12वीं व 10वीं सीबीएसई का परीक्षा परिणाम....श्री गुरु तेग बहादुर एकेडमी का परिणाम श्रेष्ठ, सभी विद्या... लोकतंत्र के महायज्ञ में आहुति देने लगी कतारें, सुबह बड़ी संख्या में पहुंचे मतदाता चुनाव प्रचार थमने के बाद दोनों प्रमुख पार्टी के जिलाध्यक्ष बूथ प्रबंधन में जुटे मैं और मेरी रचना धूं-धूंकर जल उठा बिजली ट्रांसफार्मर, लपटें छूने लगी आसमान पुराने पांच कांग्रेसी बने भाजपाई...मुख्यमंत्री डॉ. यादव की उपस्थिति में जिलाध्यक्ष उपाध्याय ने दिलाई... मणिशंकर अय्यर, सैम पित्रोदा राजनीति के जोकर, इंडी गठबंधन के नेता डरपोक गुजरात संपर्क क्रांति एक्सप्रेस के गेट से धुआं उठा, पेंट्री स्टाफ ने काबू किया, बड़ा हादसा टला

मैं और मेरी कविता

लेखन संसार

########

ये मुमकीन नहीं

दिल से जुड़े लोग सदा साथ हों
ये मुमकीन नहीं
मन को भाते लोग सदा ही पास हों
ये मुमकीन नहीं
रेत के कणों-सा छूटता है हाथ से
जीवन का सफ़र
कुछ फूल-सा कुछ शूल-सा
आदमी के हाथ में हर बात हो ये मुमकीन नहीं

-डॉ. कविता सूर्यवंशी
रतलाम (मप्र)।

———

लघुकथा….. उपहार

मैं जैसे ही स्टेशन पहुंचा सब मित्र मुझे लेने आए थे।परंतु मेरी नजरे विकास को खोज रही थी वह क्यो नहीं आया ,बात हुई थी कि स्टेशन पर आने की मित्रो को भी पुछा कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।घर पहुंचा माँ से पुछा . वह भी निरूत्तर थी फोन किया वह भी स्वीचआँफ माँ से कहा मैं देखकर आता हूं ।माँ ने कहा थका है आराम करले।
इतने में फोन की घंटी बजी फोन उठाया उधर से आवाज आयी मैं सुरेखा देशमुख बोल रही हूं हास्पिटल से,विकास की गत रात अचानक तबीयत खराब हो गई आय.सी.यु.में है सेंट्रल हास्पिटल में
सोच में था इतने वर्षो में आया हूं उसकी शादी में भी नहीं आपाया था और देखो कल मुझे निकलना भी है।भाभी मैं आ रहा हूं।आप फिक्र न करे तुरंत वहां पहुंचा सुरेखा ने हालचाल बताए ।थोडी देर रूकने के बाद कल आता हूं कह कर भारी मन से वहां से निकला। सुबह अस्पताल पहुंचा मेरी मजबुरी थी मुझे निकलना था वापस नौकरी पर।
सुरेखा के हाथ में लिफाफा देकर इतना ही कह पाया भाभी विकास के ठीक हो जाने पर एक अच्छीसी साडी खरीद लेना।लिफाफा हाथ में लेकर सुरेखा मन ही मन कह उठी,इस समय इससे अच्छा कोई उपहार नहीं हो सकता था।

-पद्माकर पागे
कस्तूरबा नगर
रतलाम (मप्र)।

——


परेशान


सागर भी लांघना है
अपनों को भी बांधना है
कच्चे-पक्के, ताने-बाने
बुनती रहती हूं……
हां कुछ परेशान रहती हूं।

सब जीतते रहते हैं
मैं हरदम हारती रही
किस्मत को दोष
देती रहती हूं…
हां कुछ परेशान रहती हूं।

दुनिया भाग रही है
मैं पीछे ही सही
अपनी हसरतों को
पन्नों पर उतारती रहती हूं…
हां कुछ परेशान रहती हूं।

हसंती मुस्कुराती
जिंदगी के रंगों में
रंगती रहती हूं, सजती रहती हूं…
पर हां कुछ परेशान रहती हूं
हां कुछ परेशान भी रहती हूं।

-नेहा शर्मा
बदनावर, जिला धार (मप्र)।

Leave A Reply

Your email address will not be published.