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मैं और मेरी कविता

मां स्वरूपा ‘शक्ति की शक्ति’ के 9 दिनी आराधना दिवस घर-घर में ज्योति प्रज्ज्वलित के साथ ही तप, हवन, पूजन व सांस्कृतिक सरोकार का पर्व है नवरात्रि। वहीं बुराई के अंत के प्रतीक दशानन के दहन दिवस दशहरे को को मनाने में जनमानस गर्व व हर्ष महसूस करते है। इसी विषय को लेकर हमारे रचनाकारों द्वारा भेजी गई रचनाएं हम सुधी पाठक के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।

जलज शर्मा,

संपादक, न्यूज जंक्शन-18

212, राजबाग़ कॉलोनी, रतलाम।

मोबाइल नंबर 9827664010

 

रचनाओं के चयनकर्ता

संजय परसाई ‘सरल’

118, शक्ति नगर, गली नंबर 2, रतलाम

मोबाइल नंबर 9827047920

—––-

श्री पूजन


अमावस्या का स्याह – गहन तम
श्यामाकाश, निस्तेज व्योम
मानों ढरक. गया हो धरा पर
यामिनी का
तारक खचित व्योमांचल
धारा वसुंधरा ने
लावण्य नवल – नव
यह क्या! इंद्र धनुष भी है आगत?

सप्त वर्ण में,
स्वर्णालोक में
मज्जित गृह-घर, भवन-अयन
महल-प्रसाद, वाटिका-उपवन
आंगन में उतराया हो स्वर्ग
लक्ष्मी-वैभव संग लक्ष्मी -पूजन
छप्पन भोग लगा
लक्ष्मी-पद पखारते जन

दूर गहन तिमिर में,
उभरी एक ‘परछांई’
स्वर्णालोक में
लघु मानव-देह उभराई
शुष्क अधर, सूने नयन
क्षीण काय
चीथड़ों में लिपटा मन
श्री – वैभव से अनभिज्ञ

लख वैभव, क्षुधित मन- प्राण
विकल-व्याकुल , हुए क्षुधातुर
उनींदे नयनों सी खुलने लगी तृषा
विष्णु-प्रिया प्रसाद, श्री पूजन,
हाय!
कब उसके भाग्य में हैें बदा?
कब जिह्वा ने रसानंद चखा?
कब सुखों को लखा?

शुभ्र दीप मल्लिकाओं से आवृत
अट्टालिका सम्मुख
धूमिल होते, धूल-धूसरित
अकिंचन लघु -प्राण
वैभव से दमकती
श्री ,श्री को पूजती
रंगोली पर
जीवनोत्सव दीप रखती

श्री स्वरूपा सम्मुख
हाथ फैलाए खड़ा
श्रीहीन कृशकाय बालक क्षुधित
श्री ने गहा कर, दिया नेह प्रसाद
श्री, श्री सुत मुख
तुष्ट भाव, सुख अपरिमित
हरिप्रिया श्री पूजन फलित

यशोधरा भटनागर, देवास
—–
माँ दुर्गा

सारे संसार की माँ ‘
“जय माँ दुर्गा ”
करते हम तेरी पूजा ।
माँ करना हमारी रक्षा ।
आया नवरात्र माँ ।
होती इसमें तेरी विशेष पूजा ।
हर तरफ होती तेरी जयकार माँ ।
तेरी भक्ति से रहे सदा कायम ये संसार माँ।
तेरी शक्ति से होती दुष्टों की हार माँ ।
रखना हमेशा हमारे सर पर अपना हाथ माँ ।
कभी न छूटे तेरा मेरा साथ माँ ।
हमेशा वर्षाना हम पर अपने स्नेह भरा प्यार माँ ।
कभी छूटे तेरा साथ माँ।

निवेदिता सिन्हा
भागलपुर, बिहार
——-
कृपा बरसती हैं…

नवरात्रि की दृष्टि कृपा सब पर बरसाती है,
मां दुर्गा की शक्ति सबके जीवन में परिवर्तन लाती है,

नवरात्रि के पावन दिनों में माँ हम सभी को मिलाती है,
मां आशीर्वादों का सन्देश लाती हैं, सकारात्मक परिणाम देती हैं,

शरद पूर्णिमा का चाँद शीतलता धरे,
धरती को शीतलता भर उर्जावान कर दे,

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा और कुष्मांडा, जगदम्बा नौ रूप धारण
करती,

ये सृष्टि रच हम सब का भाग्य भी बदले,
कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी की शक्ति अद्वितीय है, नवरात्रि

कालरात्रि के अंधकार से हम न डरे,

माँ दुर्गा शुद्धता हमारे मन और आत्मा को पावन करती है,
सिद्धिदात्री हमें आशीर्वाद देकर बनाती हैं सुखमय जीवन की राह करती हैं

सौ. निशा अमन झा बुधे
जयपुर (राज.)
——-
हाँ, मैं नारी हूं

जब भ्रूण बनकर आई थी
दादी के मन में यह बात आई थी
मेरा कुल का चिराग है या मनहूस
मां ने अपनी वेदना छुपाई थी।

मां कहने लगी भगवान से
आने दो इसको संसार में
मेरा हिस्सा है यह अनोखा
सिचूँगी अपनी कोख़ में ।

मैने सोचा आऊंगी जरूर आऊंगी
सब को समझाने के लिए
सबकी सोच को बदलना है
मै अब हार नहीं मानने वाली।

नारी होकर नारी पर ही अत्याचार
कभी होता दुर्व्यवहार
कभी लगते उसपर लांछन
कभी मिलता व्यभिचार।

मैं अहल्या, पत्थर बन तप करने वाली
सावित्री हूँ , सत्यवान को जगाने वाली।
दुर्गा हूँ राक्षस का संहार करने वाली
लक्ष्मी हूँ , धनधान्य करने वाली।

हाँ, मैं नारी हूँ !
हां मैं सरस्वती, वीणावादिनी हूँ
ज्ञान देने वाली
मैं यशोदा हूँ ,कान्हा को दुलारने वाली।
द्रोपदी बन कृष्ण को पुकारने वाली ,
सीता बन सहन करने वाली ।
हां, मैं नारी हूँ ! हाँ, मैं नारी हूँ !!

मित्रा शर्मा
महू (मप्र)
——-
विजय पर्व

पर्व विजय का,विजया दशमी।
विजय हुई रावण पर,राघव की।
दुष्वृत्तियों पर थी, सद्वृत्ति की।
अधर्म पर हुई,विजय धर्म की।

अशोकवाटिका में सीता थीं,
वह कैद लंकापति रावण की।
कई सीताएँ हो रहीं आज भी,
कैद साधुवेषधारी रावण की।

इस जगत् में हैं आज भी,
घूम रहें हैं रावण कई-कई।
हे श्रीराम!करना अवश्य ही,
पापियों का संहार तुरंत ही।

आत्म चिंतन करें सभी,
विजय-पर्व विजया दशमी।
अंदर सोये रावण को भी,
जाग्रत नहीं होने दें कभी।

सुरक्षित रह पायेंगी तभी,
राष्ट्र की हमारे,बहनें-बेटी।
माँ दुर्गे!करें हम ये विनति,
सर्वापदाओं से हो मुक्ति।

-डॉ शशि निगम
इन्दौर (मप्र)
मोबा. 7879745048
——-
जलाना किसे है?

कह रावण ईन्सान से,
काहे  मुझे  जलाय।
मैरा  विवाद  राम  से ,
तू क्यूँ टांग फसाय।।

मुझे ,जलाने से प्रथम ,
ले तू खुद को आँक।
कितना दामन साफ है,
गरेबान में  झाँक ।।

मना दशहरा इस तरह,
बनजा तू  भी  राम।
रावण जो तुझ में छिपा,
करदे काम तमाम।।

रावण तो मरता नहीं,
साईज बड़ती जाय।
ऐसा ना हो एक दिन,
आसमान छू जाय।।

कैलाश वशिष्ठ 27, तेजाकालोनी, ब्लॉग न.1 रतलाम (मप्र)
——-
विजयादशमी मनाएं…

दम्भ के रावण का,
दहन करें हम,
आओ विजयादशमी मनाएं,
स्नेह की सुन्दर बाती से,
चलो मन का दीप सजाएं..।

बातें बहुत हो चुकी,
कुछ करने की अब बारी हो,
मानवता के हित में,
हम सबकी तैयारी हो,
इस पुनीत दिवस पर आओ,
कोई शुभ संकल्प उठाएं,
स्नेह की सुन्दर बाती से,
चलो मन का दीप सजाएं..।

दम्भ के रावण का,
दहन करें हम,
आओ विजयादशमी मनाएं,
स्नेह की सुन्दर बाती से,
चलो मन का दीप सजाएं..।

यशपाल तंँवर
फिल्म गीतकार,रतलाम
——–
प्रहार

क्या तुम
मार सकोगे मुझको?
मुझे मारने से पहले
पहचान पाओगे
मेरी दुष्वृत्तियों को

यदि हां/ तो
पहले खोजो
अपने अस्तित्व में
उन कृत्यों को

क्या रावण रूपी
दुष्वृत्तियों से
तुम भी
हो पाए हो मुक्त

यदि नहीं/ तो
किसने दिया/ तुम्हें अधिकार
मुझे मारने का

पहले अपने
कुविचारों और कुकृत्यों की
मालीनता करो दूर
मन और हृदय करो
स्वच्छ, निर्मल
और फिर
प्रहार करो
मेरे अस्तित्व पर।

-संजय परसाई ‘सरल’
रतलाम (मप्र)
मोबा. 98270 47920

—–


जय विश्व वंदिनी शक्ति स्वरूपा

शक्ति स्वरूपा मां नारायणी।
दिव्य रूप लावण्यमयी कल्याणी।

नवरूप अष्टभुजाधारी जगदंबा।
कांति मय स्वरूप कितना आलौकिक सजा।

घट स्थापना कर होता भक्ति अर्चन।
घर-घर श्रद्धा सरिता से होता कीर्तन।

मां की ज्योति से जीवन जगमगाता।
शक्तिहीन कातर तेरे दर पर शीश नवाता।

शैलपुत्री ,ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा दिव्यरूपा।
कुष्मांडा ,स्कंदमाता ,कात्यायनी विविध स्वरूपा।

कालरात्रि ,महागौरी ,सिद्धिदात्री माता।
हर रूप वंदन, दुख हर सुख समृद्धि दाता।

धूप दीप नैवेद्य समर्पित ,करे मंत्र उच्चारण।
सिंह वाहिनी शत्रु का करती नित संहारण ।

महिषासुर मर्दिनी पाप हरनी जय जय जग जननी।
त्रिशूल से हरती त्रि-शूल जय विश्व वंदिनी।

नवरात्रि पर्व है आस्था और उपासना का।
आओ सब मिल मनाए दिव्य शक्ति आराधना का‌ ।

डा. गीता दुबे
सेवानिवृत्त प्राध्यापक, रतलाम

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