न्यूज़ जंक्शन-18 के साप्ताहिक साहित्यिक स्तम्भ ‘मैं और मेरी कविता’ में इस रविवार को बारिश से जुड़ी कविता से इस मौसम का अहसास दिलाया जा रहा है। वहीं बचपन को उकेरती रचनाएं सभी के बाल्यकाल की याद दिलाती हैं। इस अंक में हम चार बेहतर कविताओं के माध्यम से रचनाकारों से रूबरू करवा रहे है।
जलज शर्मा
संपादक, न्यूज़ जंक्शन-18
212, राजबाग रतलाम (मध्यप्रदेश)।
मो. 9827664010
कविताओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्ति नगर रतलाम (मध्यप्रदेश)।
मो. 9827047920
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बरखा रानी
बरखा रानी आ गयी,
बूँदों की पायल है पहन।
सबके मन को भा गयी,
धुन छम-छमा-छम-छम।
घनघोर घटा है छा गयी,
बरखा ने बिखराई ज़ुल्फ।
चम-चम-चमके चपला भी,
भायी बरखा सबके मन।
ठण्डी-ठण्डी पवन चली,
थर-थर काँपे है तन-मन।
छतरियाँ दखो रंग बिरंगी।
वर्षा में सबको दे आनन्द।
है दादुर की टोली आयी,
पंख पसारे नाच रहे हैं मोर।
आनन्दित जन-जन मन भी,
कल-कल करते झरने शोर।
बरखा से मिलने आयी,
गौरैया भी फुदक-फुदक।
जुगनू चमके रात अँधेरी,
लगते हैं जैसे अग्नि-गुल।
धरा ने ओढ़ी चुनरी धानी,
नदियाँ आयी उफन-उफन।
प्रकृति में हरियाली छायी,
बरखारानी का करने स्वागत।
-डॉ शशि निगम
इन्दौर (मप्र)
मोबा-7879745048
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माँ तेरे जाने के बाद
माँ तेरे जाने के बाद ।
आता है तेरा सब-कुछ याद ।
माँ तेरा वो आँचल ,
जिसके छाँव तले गुजरा बचपन ,
अपना जन्नत का अनमोल पल ।
माँ तेरे जाने के बाद होती है ,
रिश्तों की असली परख ।
जिन्हें तुमने हमेशा संजों कर रखा ।
पर भूल गए सभी तुम्हारी हर याद ।
तुमसे जुड़े रिश्तें , और तुम्हारे बच्चों पर
कभी न रखा स्नेह का हाथ ।
कभी किसी न ली कोई खोज-खबर ।
पर कुछ रिश्ते ने हमेशा निभाया साथ
तुम्हें याद करते तुम्हारें बच्चों को,
हर तीज-त्योहारों में दे आर्शीवाद ,
रखी तुमसे जुड़ी रिश्तों की लाज ।
माँ ये तेरी ही दुआओं का असर है ।
तेरे जाने के बाद भी हम से ,
दूर हो जाती हर नजर है ।
-निवेदिता सिन्हा
भागलपुर , बिहार
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उजाला
अमावस का जाना
पूनम का आना है
पूनम माने उजाला /रोशनी
और उजाला कब होगा?
ज़ब बच्चों के चेहरों पर आती है ख़ुशी
किसान काट लेता है बोई फ़सल
और
मॉ परोस देती है थाली
घी चुपड़ी रोटी के साथ
और यह भी कब संभव?
ज़ब पिता चल दे काम पर
किसान चल दे खेतोँ पर
मजदूर चल दे श्रम को
क्योंकि /पंछियों को भी
जागना होता है /अलसुबह
दाने के लिए
जागने से ही तो होगा
अमावस का अंधकार दूर
आएगी पूनम की रोशनी
और होगा उजाला l
(पं मुस्तफ़ा आरिफ की पंक्ति ‘ अमावस का जाना पूनम का आना है’ से प्रेरित रचना l)
-संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्तिनगर, गली न. 2
रतलाम (मप्र)।
मोबा. 98270 47920
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बूंदे
पानी की बूंदों का
ठहराव
पत्तियों पर
हो बसेरा
कुछ समय का।
आसरा तो
मिल जाता
पानी की बूंदों को
कभी ओंस बन
पत्तियों के दिल की
परीक्षा लेती।
भोरें तितलियों की
प्यास बुझाती बूंदे
ऐसे लगता मानो
प्रकृति की प्याऊ हो।
बूंदों की शक्ति
लिखे कागज पर
मिटा जाती शब्द।
दो बूंद पोलियों की
छोड़ आती विकलांगता को
कोसो दूर
आँखों से झरती
दुख में खुशियों में।
जलाधारी से अभिषेक
कर जाती शिव क़ा
पौधो की पत्तियों से
फिसल कर करा देती
पौधो को जलपान।
पानी की बूंदो का
रिश्ता है
इंसानी जिंदगानी से
श्रम के परिणाम का
प्रमाण जो होती है
बूंदे
संजय वर्मा’दृष्टि”
मनावर, जिला धार (मप्र)
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मेरा बचपन
याद आता है वो प्यारा बचपन।
उम्र बढ़कर हो गई पचपन।।
याद आते हैं वो बिछड़े साथी।
जिन संग खेली पकड़म पाटी।।
याद आती है गुरूजी की छड़ी।
अनगिनत कोमल हाथो पे पड़ी।।
भुला नहीं बचपन के खेल।
चोर, पुलिस और दौड़ती रेल।।
मर्जी के मालिक थे हम
ना थी टोका टोकी।
पंछी थे उन्मुक्त गगन के
किसी ने राह ना रोकी।।
मैदानों के सब खेल खेले।
हमजोली संग मस्ती के मेले।।
ना अमीर ना कोई गरीब।
सब रहते थे दिल के करीब।।
ना कोई आम नहीं कोई खास।
दुख सुख में होते पास पास ।।
गुजर गया वो वक्त सुहाना।
मुश्किल है उसका लौट के आना।।
-दिनेश बारोठ ॑दिनेश
सरवन जिला रतलाम।