हम गौरवान्वित है कि न्यूज़ जंक्शन-18 के रविवारीय साहित्यिक स्तम्भ ‘मैं और मेरी कविता, को लेकर रचनाकारों का रुझान हर सप्ताह बढ़ता जा रहा है। दरअसल अब यह पारिवारिक मंच बन चुका है। हम इसलिए भी यह बात सांझा कर रहे है कि कई रचनाककर हमें एक से अधिक बार भी अपनी रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज रहे है। जिन्हें हम दोबारा न्यूज़ पोर्टल पर प्राथमिकता से स्थान दे रहे है। मौजूदा अंक में हम आप पाठकों से नई, मौलिक व अप्रकाशित रचनाओं से रूबरू करवा रहे हैं।
जलज शर्मा
संपादक, न्यूज़ जंक्शन-18
212, राजबाग़, रतलाम (मप्र)।
रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल,
118, शक्ति नगर, रतलाम (मप्र)।
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दिल की बात…
अपनों के लिए दिल के जज़्बात दिखाने वाले,
कम ही हैं ज़माने में ऐसे हालात बनाने वाले…।
बड़े चाव से बयां है गमों की दास्तां,
चंद ही रह गए हैं खुशियां सुनाने वाले…।
दिल पर हाथ रख खुद से पुछना कभी,
तुम कब रहे खुद को आईना दिखाने वाले…।
मौकापरस्ती बढ़ गई है दुनिया में ‘यश’,
चाहे हो तेरे वाले,चाहे हो मेरे वाले…।
फूलों सी महक लुटाते हैं जहांँ में,
खुलकर हमेशा जिंदगी बिताने वाले…।
-यशपाल तंँवर
( फिल्म गीतकार )
अलकापुरी, रतलाम (मप्र)।
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कविता
राग – द्वेष हास में
व्यर्थ के परिहास में
विरह गीत गा-गाकर
कौन अकेला चल रहा ।।
मृत्यु के आभास में
श्वासो के जज्बात में
विरह गीत गा-गाकर
कौन जंग लड़ रहा ।।
बादलों के मिज़ाज में
सप्तरंगी उस वास में
विरह गीत गा-गाकर
कौन भित्ति-चित्र रंग रहा ।।
मन की वीणा तार में
शब्दों के बाजार में
विरह गीत गा-गाकर
कौन स्मृतियां छिन रहा ।।
धैर्य के अन्धकार में
आंसुओं की कसक धार में
विरह गीत गा-गाकर
कौन प्रतीक्षा कर रहा ।।
और ….
धर्म – अर्थ के बाजार में
अपने ही घर के अखबार में
विरह गीत गा-गाकर
कौन छलिया छल रहा ।।
-नेहा शर्मा,
बदनावर, जिला, धार (मप्र )।
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आंसू
अब अगर आंसू नहीं बहते
इसका मतलब यह तो नहीं
कि दिल नहीं रोता…
या
तुम्हारी बातों से अब
मन आहत नहीं होता
मैंने तुम्हारी खातिर अपने आचरण को बदल दिया
यहां तक की अपने
रास्तों को भी बदल दिया
फिर भी तुम्हारी निगाहों में
मेरे लिए आलोचना या
मेरी अस्तित्व के लिए
प्रश्न क्यों…?
.नहीं दोस्त
यह अच्छा नहीं है हमारे लिए हमारे भविष्य के लिए
तुम्ही कहते हो न
बदले की भावना नही
बदलाव की अपेक्षा रखो
तो
क्या मैं तुम से
बदलाव की अपेक्षा रख सकता हूं..
-मयूर व्यास “स्पर्श”
रतलाम (मप्र)।
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मुझे पता है
मुझे पता है
तुम लौटोगे जरूर एक दिन मुझमें
गीत, गजल, कविता या कहानी में
इसलिए
तैयारियां शुरू कर दी है मैंने
तुम्हारी यादों को
समेटना शुरू कर दिया है मैंने
जब तुम लौटो तो, बेतरतीब न पाओ
अपने को मुझमें
जब आओ तो, आते ही समेट लेना
अपने को मुझमें वैसे ही
जैसे कि गए थे तुम
बरसों पहले छोड़कर अपने को, मुझमें
और उतर जाना आसानी से तुम मुझमें
और ढल जाना
किसी गीत,ग़ज़ल,कविता या
कहानी के रूप में मुझमें।
– नरेन्द्र सिंह पंवार
डोंगरे नगर, रतलाम (मप्र)