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रतलाम रेल मंडल: ‘कवच’ प्रोजेक्ट की गति धीमी, 30 स्टेशनों में से फिलहाल चुनिंदा पर ही काम

-पश्चिम रेलवे में तीन भागों में चल रहा कवच प्रोजेक्ट पर काम।
-दुर्घटना रोकने के लिए विकसित नई टेक्नोलॉजी कवच का इंतजार।

न्यूज़ जंक्शन-18
रतलाम। उड़ीसा में तीन ट्रेनों के बीच में भीषण टक्कर के बाद रेलवे में यात्री सुरक्षा बड़ी चिंता का विषय बन गया है। दुर्घटना में 300 के अधिक यात्रियों की मृत्यु हो चुकी है। वहीं 1000 से अधिक घायल उपचाररत हैं। रतलाम सहित पश्चिम रेलवे जोन में परिचालित ट्रेन की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठने लगे है। हालांकि रेलवे द्वारा ‘कवच’ प्रोजेक्ट को जीरो एक्सीडेंट टार्गेट हासिल करने के लिए लॉन्च किया था। इसका काम रतलाम मंडल में भी चल रहा है लेकिन काम की गति धीमी है। हालांकि वर्ष 2024 तक इसे पूरा किया जाना है। रेलवे की वर्तमान कार्यप्रणाली को लेकर भी अब सवाल उठाने लगे है। इसमे रेलवे के ही रिटायर्ड कर्मचारी बेलगाम अफसरशाही को घटनाओं के लिए दोषी मानते है।

जोन सहित रतलाम मंडल में यहां प्रोजेक्ट पर काम

रतलाम रेलवे मंडल के अन्तर्गत रतलाम, चित्तौड़गढ़, मंदसौर, नीमच, दाहोद, इंदौर तथा उज्जैन जैसे महत्वपूर्ण स्टेशन है। इसके साथ ही पश्चिम रेलवे के वर्तमान में छः मंडल हैं- मुंबई, वडोदरा, अहमदाबाद, रतलाम, राजकोट और भावनगर शामिल है। अन्य जोन की तरह पश्चिम रेलवे जोन में भी कवच प्रोजेक्ट पर काम जारी है।

30 स्टेशनों पर कवच प्रोजेक्ट का प्लान

रतलाम मंडल के फिलहाल 30 स्टेशन कवच प्रोजेक्ट काम के दायरे में है। रतलाम के सिंग्नल एंड टेलीकॉम विभाग के अधिकारी की माने तो 30 स्टेशन में से बोरडी, अनास, थांदला रोड, मेघनगर, बजरंगगढ़ सेक्शन की ओर 7 से 8 जेसीबी से खुदाई चल रही है। यहां सीमेंट प्लास्टर का बेस तैयार कर टॉवर खड़े किए जा रहे है। इसमे केबलें भी खींची जाएगी। राजधानी रूट को प्राथमिकता से पूरा किया जाएगा। इसके बाद अन्य सेक्शन पर काम होगा। वेस्टर्न रेलवे में इस प्रोजेक्ट को गति मिले, इसके लिए काम को तीन भागों में बांटा गया है। पहले प्रोजेक्ट में नागदा से बड़ौदा, दूसरा बड़ौदा से मुंबई तथा तीसरा बड़ौदा से अहमदाबाद के बीच काम चल रहा है।

क्या है कवच प्रोटेक्शन सिस्टम?

कवच एक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है, जिसे भारतीय रेलवे ने (रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन) के जरिए विकसित किया है। इसे चरणबद्ध तरीके से देशभर में लागू किया जाएगा। दावा है कि इसकी मदद से ट्रेनों की टक्कर को रोका जा सकेगा। रेलवे बोर्ड ने 34,000 किलोमीटर रेल मार्ग के साथ कवच प्रणाली को मंजूरी दी थी। लक्ष्य है कि मार्च 2024 तक सबसे ज्यादा बिजी ट्रेन लाइनों पर कवच लगा दिया जाएगा। दरअसल कवच ट्रेन के आमने-सामने आने पर कंट्रोल कर उसे पीछे ले जाता है। यदि लोको पायलट ब्रेक लगाने में फेल हो जाता है तो स्वचलित ब्रेक लग जाते हैं।

रेलवे मै ठेकेदारी प्रथा भी जिम्मेदार

बालासोर में ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त को सिस्टम का फेल्यूअर भी माना जा रहा है। ऐसी घटनाओं में किसी निचले स्तर के कर्मचारी को दोषी ठहरा कर इतिश्री कर ली जाती है। फिर पुराना ठर्रा बरकरार रखा जाता है। इसके लिए रेलवे की कार्यप्रणाली को क़रीबी से जानने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारी अशोक उपाध्याय ने अपने कुछ सुझाव भी दिए है।
1-रेलवे में ठेकेदार के बजाय रेलवे कर्मचारियो से कार्य कराए जाएं। जिससे रेलवे के कार्य में गुणवत्ता आएगी। भष्टाचार भी कम होगा। आज सभी कार्य ठेकेदार द्वारा कराए जा रहै हैं। वार्षिक मेंटेनेंस भी ठेकेदार के जिम्मे है। कमीशन के लालच में गुणवत्ताहीन कार्य को सुपरवाइजर पर दबाव बना कर पास करवाया जाता है।
2- अधिकारी और सुपरवाइजर को चेम्बर से बाहर निकल कर रोजाना फील्ड में रहना अनिवार्य किया जाए।
3- रेलवे मै खाली पदों की पूर्ति बेहद अनिवार्य है।नए पद भी सृजित किए जाने चाहिए।
4- वर्तमान में हर मण्डल पर अधिकारी रेलवे की राजशाही कार्यप्रणाली को त्याग नही पा रहे है। हर अधिकारी के घर पर दो से चार कर्मचारी कार्यरत है। जिससे खरबो रुपए का सालना नुकसान के साथ रेलवे कार्य की हानि होती है।
5-हर अधिकारी सरकारी/ठेकेदार का वाहन अपना समझ खुद, परिवार उपयोग कर रहे। रेलवे से हर माह ट्रांसपोर्ट भत्ता भी हज़ारों रूपए वसूल रहे है।

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