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तानाशाही के ऐसे आलम…ठेकेदार के कब्‍जे में महीनों से रेलवे क्‍वार्टर, आंख मूंदे बैठे जिम्‍मेदार, क्‍वार्टर आबंटन के लिए भटक रहे कर्मचारियों

-ठेकेदारों के साथ विभाग के जिम्‍मेदारों की ऐसी सांठगांठ रतलाम के अलावा दूसरे रेल मंडल में नहीं।

न्‍यूज जंक्‍शन’18

रतलाम। रेलवे में ठेकदारों की तानाशाही के आलम देखना हो तो आपको सीधे रतलाम रेल मंडल के रतलाम मुख्‍यालय पर आना होगा। यहां अधिकारियों के कांधे पर हाथ रखकर चलने वाले ठेकेदार वह सभी काम करवा सकते हैं, जो नियमों में दूर तक दर्ज नहीं है। रेलवे कॉलोनी में ठेकेदारों ने अपनी निर्माण सामग्री रखने के लिए खूद का गोदाम रखने के बजाय रेलवे क्‍वार्टर पर ही कब्‍जे जमा लिए है। ऐसा एक दो नहीं, बल्कि जांच हो तो इससे भी अधिक क्‍वार्टर निकल आएंगे, जहां कब्‍जे जमाए हुए है। अमूमन ये सभी ठेकेदार इंजीनियरिंग विभाग से जुड़े है।

हर बार इन्‍हें मन चाहे ठेका मिलने के बाद ये जो चाहे मनमर्जी कर ले, सब जायज है। बस बिल पास के बाद जिम्‍मेदारों को क्रमश: तय प्रतिशत का भुगतान मिलना चाहिए।

मालूम हो कि सर्वाधिक काम रेलवे स्‍टेशन पर विकास की योजना के है। इसके अलावा रेलवे कॉलोनी में क्‍वार्टर, सड़क सहित अन्‍य तमाम निर्माण के काम चूनिंदा ठेकेदारों को मिल रहे है। इससे वे अच्‍छे से फलफूल गए है। इनके मेल-मिलाप का आलम यह है कि 20 से 30 सालों में इंजीनियरिंग विभाग के कोई भी अधिकारी यहां आए। ये अपने जादूई छड़ी घुमाकर उन्‍हें आसानी से हंसते-खेलते अपने कब्‍जे में कर लेते है। विभाग के पिछले अधिकारी की पूर्व डीआरएम से इसी बात को लेकर नाराजगी रही थी। इसके चलते उन्‍हें तबादला भी झेलना पड़ा था।

क्‍वार्टर नंबर 429 पर महीनों से कब्‍जा

रेलवे कॉलोनी में रोड नंबर 5 व 7 की ओर क्‍वार्टर नंबर 429 पर म‍हीनों से ठेकेदार का कब्‍जा है। इस ओर देखने का वाला कोई भी जिम्‍मेदार नहीं है। यहां उसी ठेकेदार का कब्‍जा है, जिसने 3 साल पहले रेलवे कॉलोनी की मुख्‍य रोड पर कमजोर निर्माण के बाद बंगले पर लगा लोहे का गेट आ गिरा था। इसमें वहां रहने वाले मजदूर की मासूम बच्‍ची की जान चली गई थी। मामला जीआरपी तक पहुंचा था। इसके बाद भी ठेकेदार को ब्‍लेक लिस्‍टेड नहीं किया गया। फिर से तानाशाह बने उसी ठेकेदार ने क्‍वार्टर नंबर 429 पर कब्‍जा कर उसे गोदाम तब्दिल कर लिया है। वहां निर्माण सामग्री रखकर रेलवे की व्‍यवस्‍था का मखौल उड़ाया जा रहा है।

इसी तरह सांस्‍कृतिक सभाग्रह के पास क्‍वार्टर नंबर 901 में भी यहीं हाल है। यहां क्‍वार्टर को ठेकदार ने सीमेंट का गोदाम बना लिया है। यहां आए दिन सीमेंट के ट्राले उतारकर रेलवे के नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है।

क्‍वार्टर आबंटन के लिए भटक रहे कर्मचारी

इधर, ठेकेदार क्‍वार्टरों पर कब्‍जे कर शासकीय संपत्ति का जमकर दुरुपयोग करते आए। वहीं जरुरतमंद कर्मचारियों रहने के लिए क्‍वार्टर आबंटित नहीं किए जा रहे है। जिन क्‍वार्टर में कर्मचारी रह रहे हैं। उनमें बारिश में छत लिकेज की समस्‍याएं चल रही है। ये सभी काम इंजीनियरिंग विभाग के अधीन है। क्‍वार्टर आबंटन एवं मरम्‍मत को लेकर वेस्‍टर्न रेलवे मजदूर संघ एवं वेस्‍टर्न रेलवे एम्‍प्‍लॉइज यूनियन के पदाधिकारियों ने कई बाद बैठकों में मुद्दें उठाए। लेकिन कर्मचारियों के आवश्‍यकताओं को दनकिनार कर दिया जाता है।

ठेकेदारों पर ऐसी मेहरबानी केवल रतलाम रेल मंडल में ही देखने में आ रही है। मामले में वरिष्‍ठ मंडल इंजीनियर समन्‍वय पीयूष पांडे से दो से तीन बार इसकी जानकारी लेना चाही। लेकिन उन्‍होंने फोन रिसीव नहीं किया।

कमीशनखोरी के सिस्‍टम में ठेकेदारों को ही लाभ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा रेल मंत्री अश्विनी वैश्‍णव द्वारा रेलवे के बजट में इजाफा किया है। इसके बाद रेलवे बोर्ड द्वारा हर बार सालाना बजट बढ़ाकर पर्याप्‍त राशि मंजूर की जा रही है। बावजूद कमीशनखोरी के चलते रेलवे को असली विकास का लाभ नहीं मिल पा रहा है। दरअसल तयशुदा ठेकेदारों को काम दिलाने तथा बिल प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने व भुगतान पूरा होने पर जीरो पॉइंट प्रतिशत के आंकड़ें की कमीशनखोरी मिलने पर क्‍लर्क से लेकर स्‍वयं अधिकारी उनका भरपूर सहयोग करते है। क्‍योंकि कमीशन की राशि भी मासिक वेतन से कई गुना सीधे उनके जेब में आती है। ऐसा सालों साल चलने से निर्माण व विकास कार्य दोयम दर्जे का पूरा कर ठेकेदार करोड़पति बन आए है। अनियमिताओं रोकने के लिए इससे जुड़ी सरोकार की अन्‍य खबरों का क्रमवार प्रकाशन किया जाएगा।

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