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मैं और मेरी कविता

75वें गणतंत्र दिवस पर देश में देशभक्ति का माहौल रहा। इस दिन उल्लास, उत्सव व उल्लास दिखाई दिया। इस उत्सवी वातावरण पर हमारे रचनाकारों ने राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत कविताएं भेजी है। इनका हम प्रमुखता से प्रकाशन कर रहे है।

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संजय परसाई ‘सरल’

रतलाम
मोबाइल नंबर 9827047920

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वन्दे मातरम’ स्वर गूँजे

गणतंत्र दिवस मुश्किल से पाया,
‘वन्दे मातरम् स्वर’ गुंजाया।
यह अवसर पाने में जैसे,
कई-कई लाल आहूत हुए।

जगत् गुरु मेरा देश रहा,
इस पर मुझको गर्व बड़ा।
रामकृष्ण-विवेकानंद जैसे,
ज्ञानी-तपस्वी संत हुए।

मेरा देश महान् रहा,
इस पर स्वाभिमान हुआ।
अहिल्या-अशोक-विक्रम जैसे,
सत्यवादी शासक वृन्द हुए।

सोने की चिड़िया देश रहा ,
इस पर मुझको नाज सदा।
जब भी आक्रमणकारी आए,
कभी न हम उनसे घबराए।

हम सबका सौभाग्य बड़ा,
लक्ष्मीबाई-प्रताप-शिवा।
भगत-राजगुरु-बिस्मिल जैसे,
भारत माँ के लाल हुए।

मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा,
जैसा पावन तिरंगा मेरा।
गणतंत्र दिवस पर लें संकल्प,
सदा ‘वन्दे मातरम्’ स्वर गूँजे।

-डॉ. शशि निगम
इन्दौर (मप्र)।
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मेरे वतन

तू संकल्प, तू ही विकल्प,
तू धरा का अनमोल रतन,
मेरे वतन, मेरे वतन,
तेरे लिए सारे जतन…।

हम अपने कामों से तेरा,
मस्तक सदा ऊंँचा रखें,
तुझको हृदय में धारण करें,
तेरी माटी का प्रसाद चखें,
तेरी चमक से हो रोशन,
ये सारा ही विश्व गगन,
तेरी खुशबू से महक उठे,
हर कली, हर सुमन,
तू संकल्प, तू ही विकल्प,
तू धरा का अनमोल रतन,
मेरे वतन, मेरे वतन,
तेरे लिए सारे जतन…।

यशपाल तंँवर,
( फ़िल्म गीतकार,कवि,लघुकथा लेखक और मालवी रचनाकार ) अलकापुरी, रतलाम (मप्र)।
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गणतंत्र दिवस

आजादी के बाद जब ,
हमने अपना संविधान बनाया।
तब सन् 1950 ,26 जनवरी को ,
फरहा तिरंगा गणतंत्र दिवस मनाया।
रखी गई भारतीय लोकतंत्र  की नींव
मिलकर  बाबा अम्बेडकर संग कई दिग्गजों ने
विश्व का सबसे बड़ा संविधान रचा।
जिसमें सभी के लिए न्याय करना लिखा।
जहाँ जात -पात का कोई भेद ना हो,
ऊँच नीच की कोई बात ना होI
मतदान का सभी व्यस्क को अधिकार
नारी शिक्षा संग,
सबको मिले बराबर का अधिकार।
पिछड़े वर्ग को भी आगे बढ़ाने की गई  कोशिशI
मिटाई गई पिछड़े वर्ग को दबाने की दबंगों की साजिश।
नया संविधान कर लागू तबसे
दुनियाँ का सबसे बड़ा गणतंत्र होने का
भारत ने  इतिहास  रचा गर्व से
अपना गणतंत्र बड़ा सबसे॥

-निवेदिता सिन्हा
भागलपुर (बिहार)।
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गणतंत्र की पुकार

तुम क्यों चिंतित हो नदियों से
क्षमता है तुम्हारी सागर सी पार।
तुम क्यों भूले निजी ताकत को
भीम सा भुजबल तुम में अपार।।
क्यों भयभीत हो चिंगारियां से
भड़कते शोले तुम में भरमार।
तुम मुट्ठी तानो तो जग जाने
सिंह गर्जना सी करो ललकार।।
आज मांग रही है देश की माटी
बलिदानी कर्ज हम पे रहा उधार।
मोह माया के अब बंधन तोड़ो
बस तिरंगे से कर लो प्यार।।
जीना मरना वतन के खातिर
जीवन का हो यही आधार।
राष्ट्र प्रेम का भाव जागाये
भेदभाव करे दरकिनार।।
गणतंत्र मांग रहा कुर्बानी।
संघर्ष भरी है इसकी कहानी।।
उन शहीदों को भी करें प्रणाम।अनजाने में छूटे हैं जिनके नाम।।

-दिनेश बारोठ ‘दिनेश
शीतला कॉलोनी, सरवन
जिला रतलाम (मप्र)।


गणतंत्र का मोल

मिला न यूँ गणतंत्र है,
भीख, दान, वरदान।
भरा हुआ है, नींव  में,
पुरखों का बलिदान।।

-कैलाश वशिष्ठ
म.न. 27, तेजाकालोनी, रतलाम (मप्र)।

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