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रेलवे के फाइटरमेन की लाजवाब फाइट…! चंटियों की परंपरा में निखरे खिलाड़ी, जान लेकर ही छोड़ेंगे गड्ढे

जलज शर्मा,

चौराहे के चंटियों में सुनाई दी वर्चस्‍व की चटाचट

नवरात्रि के पहले यानी श्राद्ध पक्ष के आखरी दिनों में शहर का राजनीतिक चौराहा डालूमोदी बाजार तीन दिनों तक चंटिया खेल के जरिए आकर्षक का केंद्र बना रहा। आयोजनकर्ता का उद्देश्य था कि लुप्त हुई 55 साल पुरानी शहर की सांस्‍कृतिक परंपरा को पुनर्जीवित करना। कुछ हद तक इस आयोजन से सांस्कृतिक माहौल को आक्‍सीजनभी मिली। हिंदु संगठन से जुड़े नेता ने इस आयोजन का बीड़ा उठाया तो इसी चौराहे से प्रदेश स्तर पर फूल पार्टी का झंडे गाढ़ने वाले दूसरे गुट ने दूरी बनाए रखी। हालांकि श्राद्ध पक्ष के बावजूद तीन दिन तक चौराहे पर रौनक रही। रात में चंटियों की चटाचट में बड़ी संख्‍या में खिलाड़ी हाथ में डंडे लिए अपनी कला प्रदर्शित करने में लीन रहे। तब फुल पार्टी से जुड़े जिले के मुखिया भी पीछे कहा रहने वाले थे। अनंत चतुर्दशी के अखाड़े में लट्ठ घुमाने के बाद इन्होंने डंडों में भी खूब हाथ आजमा लिए। धोती-कुर्ता व मारवाड़ी पगड़ी में मैदान में उतरे तो एसएमडी पैलेस वाले साथी व अन्य सिपेसालार ने चंटियों की हर ताल पर इनका साथ दिया। चौराहे पर ही फुल पार्टी से जुड़े दूसरे गुट वाले नेता व साथी-संगी का दूर तक नहीं दिखाई देना चर्चा का विषय बना रहा। बताया जा रहा है कि चौराहे का यह वर्चस्‍व पर्युषण पर्व की शुभकामना संदेश के लगे फ्लेक्स से शुरू हो गया था। चौराहे पर एक गुट ने चंटियों के आयोजन का फ्लेक्स क्या लगा दिया। दूसरे गुट ने उसके उपर ही पर्युषण पर्व का बैनर लगाकर चौराहे पर अपना पूर्व वर्चस्‍व को कायम रखना चाहा। हालांकि मनमुटाव खुले रूप से सामने नहीं आई।

दूसरी ओर गरबों की धुन में हर कोई डंडे से डंडा मिलाकर चंटिया खेलने में मस्त था। वहीं फुल पार्टी से जुड़े नेता तथा उनके समर्थक अधिकांश समय घरों में या दूसरे चौराहों पर समय बीताते नजर आए।
हे प्रभु, पहले कभी राजनीतिक खिंचतान का केंद्र स्‍टेशन रोड से डालूमोदी बाजार रहा है। अब क्‍या हो गया कि शहर के राजनीतिक चौराहें पर ही गुटबाजी गहराने लगी है।

सड़क के बाद अब गड्ढे जान लेने पर आमादा

शहर में सीमेंटेड सड़कों को लेकर पूर्व मंत्री ने पिछले दिनों नगर निगम पहुंचकर कमीशनबाजी के खिलाफ ताल ठोकी थी। वहीं शहर में गड्ढों ने नगर निगम के आंखमुंदी रवैए को एक बार फिर उजागर कर दिया। दो दिन पूर्व शहर में शाम को हुई तेज बारिश ने ड्रेनेज के लचर इंतजाम की पोल खोली। ड्रेनेज जाम होने से ओवरफ्लो पानी सड़कों पर बहकर नदीं में तब्दील हो गया। वहीं खुदाई के बाद गड्ढों को न भरने की लापरवाही बाइक चालक के लिए जानलेवा साबित हो सकती थी। युवक बाइक सहित गड्ढे में समा गए। गनीमत रही कि राहगीरों ने इन्हें खिंचकर निकाला। घटना की बनाई गई वीडियो सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर आ पहुंची। यह जिम्मेदारों की लापरवाही दिखाने में मददगार रही। वरना किसी को इसकी भनक भी नही लगती।

नौकरी दिलाने के फर्जीवाड़े के पुराने मामले से सबक नहीं

रेलवे के बास्केटबॉल ग्राउंड से पनपे नौकरी दिलाने के फर्जीवाड़े से रेलवे के ही जिम्मेदारों ने सबक नहीं लिया। नतीजा यह रहा कि एक बार फिर से कुछ युवा इस गिरोह का शिकार हो गए। गनीमत रही कि गिरोहबाज दो व्यक्तियों को पुलिस ने समय रहते दबोच लिया। इसी रैकेट के सरगना को पूर्व में एसटीएफ ने घर से उठाया था। तब ये बास्केटबॉल ग्राउंड पर कब्जा कर वहां बने अस्थाई तीन शेड से अपना धंधा चलाते थे। फर्जी स्पोर्ट्स सर्टिफिकेट सहित रेलवे में नौकरी दिलाने का झांसा देते थे। कानूनी कार्रवाई के बावजूद भले से शेड हटा दिया। मगर इनके कब्जे से बास्केटबॉल ग्राउंड नहीं छुड़वाया जा सका। बल्कि अफसरों ने रेलवे की ग्राउंड फीस जमा करने के बाद इन्हें बगैर इंक्वायरी दोबारा फर्जीवाड़े की खुली छूट दे दी। ऐसे में चैंजिंग रूम की आड़ में अवैध काम संचालित करना शुरू कर दिया।

है प्रभु रैकेट चलाने वाले के झांसे में आने वाले युवा ये क्यों नहीं समझ सके कि नौकरी पाने की प्रकिया के तयशुदा नियम है। इसके बगैर कौन भला किसी को नौकरी दिला सकता है।

रेलवे के फाइटरमेन की फाइट से अधिकारी को वास्ता नहीं!

रेलवे में फंड लुटाने व खर्च करने वाले विभाग के फाइटरमेन अधिकारी की फाइट इन दिनों खूब सुर्खियां बटोर रही है। कुछ माह पहले अधिकारी की एक समांतर ग्रेड के कर्मचारी से खुले आम फाइट हुई थी। अब चांटा प्रकरण की गूंज डीआरएम ऑफिस तक जा पहुंची। साथी कर्मचारियों का विरोध हुआ तो ट्रेड यूनियन के पदाधिकारी पेंट बुशर्ट की शर्टिंग कर डीआरएम ऑफिस जा पहुंचे। हालांकि विभाग के अधिकारियों ने समझा बुझाकर सभी को रवाना कर दिया।
है प्रभु, लगता है अब अगली बार फाइट हुई तो यह मुकाबला डब्ल्यू डब्ल्यू एफ की तर्ज पर होगा। इसके लिए संभवतः टीवी चैनल पर सीधे प्रसारण के इंतजाम भी किए जा सकते है।

चाबी बाबू को अभी और झेलना पड़ेगा

कहते है कि प्यार का पहला ख़त लिखने वक्त लगता है। लेकिन आक्रोश भरा लेटर लिखने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। डीआरएम ऑफिस में ताला-चाबी वाले बाबू से परेशान व पीड़ित होकर नई नौकरी में आई युवती कर्मचारी ने ऐसा ही आक्रोश भरा ख़त (शिकायत) विभाग के अधिकारी को लिख दिया। मगर अब तक मामले को गंभीर न मानकर व अनदेखा कर चाबी बाबू को वरदहस्त दे दिया गया।
है प्रभु लगता है जब तक एक दो और शिकायत नहीं आएगी। चाबी बाबू को और झेलना पड़ सकता है। तब तक विभाग की बदनामी होना तय माना जा रहा है।

हे प्रभु जगन्नाथम, ये सब क्या हो गया।

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