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‘मैं और मेरी कविता’-भाग 6

आप सभी कलमकारों के आत्मीय सहयोग से साहित्य का सफर कुछ यूं चल निकला’ जिसकी हमने कल्पना नही की थी। हमसे हर सप्ताह नए रचनाकार जुड़ रहे है। अगल-अलग स्थानों से कविताएं प्रेषित करने का सिलसिला जारी है। इनका प्रमुखता से प्रकाशन कर हम कृतज्ञ हो रहे है। साहित्य टीम से प्रमुख कविता चयनकर्ता संजय परसाई जी के इन रचनाकारों से जीवंत संपर्क से संभव हुआ कि देशभर के रचनाकार हमसे जुड़ने लगे। प्रयास किया जाएगा कि साहित्य का सफर निरंतर चलता रहें।


जलज शर्मा
संपादक, न्यूज़ जंक्शन-18
212, राजबाग़ कॉलोनी रतलाम।
मोबाइल नंबर-9827664010
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कविता प्रमुख चयनकर्ता

संजय परसाई ‘सरल’
शक्ति नगर, रतलाम
मोबाइल नंबर-9827047920


सफर संघर्षों का

सवेरे सवेरे
चिड़ियों की चहचहाट
के साथ ही शुरू
हो जाता है सफर
हमारे दिन भर
के संघर्षो का
जैसे जैसे चढ़ता जाता है दिन
वैसे वैसे ही
संघर्ष भी बढ़ता
जाता है
कभी सफल कभी असफल
बस निरंतर काम जारी रहता है
सूरज अपना सफर पुरा कर
चाँद को
सौंप देता है आगे की जिम्मेदारी
पर हम किसे सौंपे
यह संघर्ष भी हमारा है
यह यात्रा भी हमारी है।

-नीतेश जोशी, बड़नगर
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शहीदो के फूल

समर्पित हुए जो देश धरा पर,
वे है हिन्दुस्तान की शान ।
रोम-रोम मेरा करता है ,
उन/शहीदो के जय गान ।।

रक्तिम स्याही से लिखा जिसने
स्वतंत्रता का स्वर्णिम इतिहास।
लाल किले पर तिरंगा लहराकर,
दिया अवाम को अनन्त उल्लास।

आजादी का बिगुल सुनकर ,
पुलकित हुई भारत माता ।
कर्ज माँ का चुकाया बेटो ने,
युगों तक मां तुझसे है नाता ।

आजादी की अनमोल दौलत
अब, सम्हालो मेरे भारतवासी।
किंचित क्षीण न हो आजादी ,
याद, रहे शहीदो की फाँसी ।।

असंख्य लाशो पर चढ़कर ,
आजादी हिन्द में आई है ।
वीरो की कुर्बानी देखकर
भारत माँ मन से हर्षाई है ।।

मिट गए जो राष्ट्र वेदी पर,
उनको कभी मत जाना भूल।
गंगा ,यमुना में करो विसर्जित
उन/वीर “शहीदो के फूल” ।।

-रमेशचंद्र चांगेसिया “प्रभात”
राष्ट्रीय ओजस्वी कवि -गीतकार
39, ज्ञानाश्रय, प्रीति परिसर अंजुश्री होटल के पास इंदौर रोड उज्जैन
Mo 9977663907
Email: rameshjiujn@gmail.com
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जवानों को नमन

देश के जवान है तो वतन है ।
देश के जवानों को नमन है ।।

करे करबद्ध हम प्रणाम उन फौजियों को,
देश की सीमाओं पे जो खड़े हरदम है ।
देश के जवानों को नमन है ।।

नमन है उन लालों की माताओं को,
कष्ट झेल कर जाना था जिस पूत को,
देश की सुरक्षा में लगा दिए हैं प्राण जिसने,
ऐसे वीर शहीदों को नमन है ।
देश के जवानों को नमन है ।।

नमन है उस भगिनी की राखियों को,
जिसने रक्षा सूत्र दिया है वतन को,
कटा दिया शीश जिसने माता की सुरक्षा में,
ऐसे उस भातृ प्रेम को नमन है ।
देश के जवानों को नमन है ।।

नमन है उस अर्धांगिनी के त्याग को,
जिसने खोया है अपने सुहाग को,

ऐसे उस सूने भाल के सिंदूर को नमन है ।
देश के जवानों को नमन है ।।

देश के जवान है तो वतन है ।
देश के जवानों को नमन है ।।
-सुश्री हेमलता शर्मा भोली बेन, इंदौर
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प्रकृति में गुम हुई सी मैं

आत्मा (हम) माँ प्रकृति की गोद में ही
परम सुख की अनुभूति करती है
भौर की बेला
शांत रमणीय वातावरण
पूर्व दिशा में नयनाभिराम
उदित होता भानु
पक्षियों का मधुर कलरव
लहलहाते वृक्ष
पत्तों की सरसराहट
खिलते पुष्प
मंडराते भ्रमर
शीतल मंद पवन का आलिंगन
ऐसे जैसै
कहना हो कुछ उसे
आनंदित होता मन
परमात्मा की शरण
गगन में दूसरी ओर
धूँधलाता रजनीपति
दौड़ लगाती गिलहरियाँ
कर्म करने का संदेश प्रसारित करते
ये सब और
इन सबके बीच
इन्हें महसूसती
इन्हीं में कहीं गुम हुई सी
मैं..!!

-डॉ कविता सूर्यवंशी
रतलाम (म.प्र.)
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पिता के बाप हो गए


बच्चे बड़े हो गए है
पिता के बाप हो गए है।
पिता ने सोचा था
पढ़ा लिखा कर आदमी बना दू
पर अब वो जेंटलमेन हो गए है
उनके पिता सड़क छाप रह गए है।
कभी पिता ने ऊंगली थाम चलना सिखाया होगा
अब वो पिता को कैसे चलना है बता गए है
अपने तन पर एक कमीज़
ना पहनने ओढ़ने की तमीज़
ना कोई आधुनिकता की ओढ़
ना नई-नई कारों की होड़
पूरा के पूरा लेक्चर सुना गए है
एक साइकिल रखी थी आंगन में
सुबह कबाड़ वाले को बेच गए है।
बच्चे बड़े हो गए है
पिता के बाप हो गए है
घर को मनहूस कह गए है
पिता तो आऊटडेटेट रह गए है।
जिस घर में रौनक थी उनकी मोहब्बत से
उसी घर को कुड़ेदान कह गए है…
फिर भी बड़ा शांत रहा वो पिता
उसके भीतर की लड़ाई को मूढ़ कह गए है
फिर से पिता अकेले रह गए है ।
पिता होते ही है ऐसे
अकेले थे
अकेले है
और अकेले रह गए है…।
सारी मेहनत अंत में
जाते जाते “मॉ” के नाम कर गए है…

-प्रदीपसिंह पंवार साहित्यकार
(मनस्वी)

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