उल्लास, उमंग व उत्साह भरे रंगों का त्योहार होली की आप सभी को शुभकामनाएं।
जलज शर्मा
प्रबंध संपादक, न्यूज़ जंक्शन-18
रतलाम।
संजय परसाई ‘सरल’
रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
रतलाम।
लेखन संसार-
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होली गीत-
झूठ को ही हाथ खुद मलना पड़ा
हर बुराई को यहां
जलना पड़ा ।
रास्ते आसान किसके थे यहां ,
मुश्किलों से दूर वो रहता कहां।
लक्ष्य पाने के लिए हर एक को,
टेढ़ी-मेढी राह पर चलना पड़ा।
हर बुराई को यहां
जलना पड़ा।
जो भला होगा उसे डर क्या रहा,
वो नहीं ज़ुल्मो-सितम से कुछ डरा।
गोद में अपनी बिठाकर भी उसे,
झूठ को ही हाथ खुद मलना पड़ा।
हर बुराई को यहां
जलना पड़ा।
वो यहां अपनी अना में क़ैद था,
जिस ज़मीं पर वो खड़ा था,छेद था।
फिर अकडता वो भला कब तक यहां,
वक्त के सांचे में ही ढ़लना पड़ा।
हर बुराई को यहां
जलना पड़ा।
– आशीष दशोत्तर
कोमल नगर,
रतलाम (म.प्र.)।
मो.9827084966
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रंग भरी बयार
टेसू दहक रहा, महुआ महक रहा है,
धरती का कण कण जैसे बौराया है।
हर्षित प्रकृति लगता है फागुन आया है।
बौराई आम्रमंजरी,चटक रही कचनार ,
पीली सरसों फूली,गीत गूँजे मल्हार।
खेतो में महके मंद मंद फागुनी बयार।
मौसम की मादकता,आलौकिक खुमार ,
होली का हुड़दंग,बरसे रंगों की बौछार।
नव पल्लव हर्षित,फागुनी उपहार।
प्रकृति के संग ,बरसे होली के रंग
दहन हो अंहकार,पावन हो प्रीत संग।
कान्हा खेले फाग रंग होली राधा संग।
होली में उड़े गुलाल,बरसे प्रीत रंग हजार,
राग द्वेष,भेदभाव मिटे ,बहे सम भाव प्यार।
सर्वत्र ध्वनित संगीत ,फागुनी मल्हार।
-डॉ.गीता दुबे
(से.नि. प्राध्यापक)
रतलाम (मप्र)।
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होली की रौनक
होली की रौनक और मस्ती।
नंदगांव, बरसाना में मचाएं धूम
गांव की सड़कों पर धूल उड़े, रंग बिरंगे खेल खेले बच्चे रंग गुलाल।
हम सब हिलमिल खेलें होली ,
रंगों की बौछार में डूबे रहते हैं।
बुजुर्ग बच्चों के साथ नाचे, खुशियों का मिलना है उन्हें साँझे।
पर्व का ये रंगीन महोल, बंधुओं, सखियों का प्यार और विश्वास बढ़ाता है।
हर रंग की कहानी है अपनी,
धुलवंदन फागुन उत्सव और आनंद ।
होली की रौनक कहानियों की तरह, हर किसी के दिल में बस जाती है।
सभी मिलकर एक दूसरे को रंगे, खुशियों का आनंद बाँटे,
इस पावन पर्व की रौनक, से
गुलजार हैं भारत
होली का त्योहार सजीव,
हर बार बहुत कुछ सिखाती है! होली
-सौ. निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर (राज.)।
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ब्रज की होली
ब्रज में आज आनन्द होवे है,
आनन्द होवे नव रंग उड़े है।
सबके मन खुशियों से भरे हैं,
ब्रज में सब मिल होली खेले हैं।
नन्द बाबा ने कुण्ड सजाए,
है नवरंगों से उन्हें भरवाए।
अंबर में लाल गुलाल उड़े है,
ब्रज में आज मृदंग बजे है।
केसर के तो रंग बनाए,
कंचन की पिचकारी भरे हैं
गोरे गालों को लाल किए ,
ब्रज में आज ढोलकी बजे है।
राधा खेले कान्हाजी भी खेले,
ग्वाल-बाल सब मिलकर खेलें।
आंगन में रंगों से कीच है मचे ,
ब्रज में आज मंजीरे बजे है।
गोपियाँ राधा-कृष्ण को छेड़े,
सब मिलकर के रंग उड़ेलें।
मन सबके है आनन्द भरे ,
ब्रज में आज चंग बजे है।
राजभवन आगे धूम मचे है,
सब नर-नारी होली खेलें हैं।
है नंद यशोदा जी रंग में रंगे,
ब्रज में आज आनन्द होवे है।
-डॉ. शशि निगम
इन्दौर (मप्र)।
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अईगी होली
जरा धीरे आन दे, जरा धीरे आन दे….
आओ सगला हूं सुणऊं,
तम सबके यां गाथा ।
अय ग्यो फागुन अई गी होली,
कई रया म्हारा काका ।
जरा धीरे….
बीच मोहल्ला गड़ी ग्या हे,
ई होली का डांडा ।
बणी रया हे चक्की गुंजा,
बणी रया हे खाजा ।।
जरा धीरे….
कोई बजय रया पुंगी ने,
कोई बजय रया बाजा ।
ओंधा पड़ी-पड़ी नाची रया,
बजी रया ढोल ने ताशा ।।
जरा धीरे….
बच्चानां भी कम नी पड़े,
फेंकी रया गुब्बारा ।
बयरानां ने बाल्टी भरी,
छोड़्या रंग का फव्वारा ।।
जरा धीरे….
गली-गली में गेर फिरी री,
छितरा पेरिया फाटा ।
खेली रया गुलाल ने रंग,
मची रयो धुमधड़ाका ।।
जरा धीरे…..
हरी बूटी भी घूटी रई हे,
ठण्डई सबके दांगा ।
जादे मत लय लीजो नी तो,
पड़ी जावगा मांदा ।।
जरा धीरे….
कोई रंग की होली मनई रया,
कोई रय ग्या सूखा ।
कोई हर्बल कलर लगई रया,
कोई रंग में डूब्या ।।
जरा धीरे…..
होली को तेवार हे आयो,
आओ इससे सीखा ।
हिलीमिली ने रीजो सगला,
तेवार हुई ग्या फीका ।।
जरा धीरे….
-हेमलता शर्मा भोली बेन
राजेन्द्र नगर, इन्दौर (मप्र)।
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होली
रंगो की कोई जात नहीं होती
भाई – चारे के देश में दुश्मनी की बात नहीं होती
ये खेल है प्रेम की होली का
मिलकर रहते इसलिए टकराव की बात नहीं होती।
रंगे चेहरों से दर्पण की बात नहीं होती
वृक्ष भी रंगे टेसू से मगर पहाड़ो से बात नहीं होती
ये खेल है प्रेम की होली का
बिना रंगे तो प्रकृति भी खास नहीं होती।
पानी न गिरे तो नदियाँ खास नहीं होती
सूरज बिना इन्द्रधनुष की औकात नहीं होती
ये खेल है प्रेम की होली का
फूल न खिले तो खुश्बुओ में बात नहीं होती।
नींद बिना सपनों की बात नहीं होती
दिल मिले बिना प्रेम में उजास नहीं होती
ये खेल है प्रेम की होली का
जीवन के रंग ना होतो होली की बात नहीं होती।
संजय वर्मा “दृष्टि ”
125 बलिदानी भगत सिंग मार्ग
मनावर जिला,धार (मप्र)।
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तेरा रंग न छूटे मुझसे
कई रंग हैं जीवन के,
क्यों उनमें घुल जाऊंँ मैं ?
तेरा रंग न छूटे मुझसे,
तुझमें ऐसा रंग जाऊंँ मैं…।
मेरी हर श्वास में,
मेरे हर विश्वास में,
तू ही तू शामिल रहे,
मेरे हर काश में,
मेरी हर आस में…।
होली के पक्के रंग सा,
तेरे हृदय में छप जाऊंँ मैं,
मेरे भगवन !
चरणधूलि बनकर तेरे,
चरणों में छुप जाऊंँ मैं…।
तेरा रंग न छूटे मुझसे,
तुझमें ऐसा रंग जाऊंँ मैं…।
-यशपाल तंँवर
( फ़िल्म गीतकार,कवि,लघुकथा लेखक और मालवी रचनाकार )
रतलाम (मप्र)।
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होली
आजाओ सखी मेरी
फागुन आया है
हम बांट लें खुशी
फागुनी छाया है।
तेरे हुर से चेहरे पर
हजारों रंग छाए है
इंद्र धनुष ने भी
अपनी छटा बिखेरी है ।
वैर भुलाकर हम
गले लगाएंगे
मस्त हवाओं में
फागुनी गीत गाएंगे।
यह दिली अरमानों को
तुम पुरा कर देना
आपसी मेल से
भाईचारा बढ़ा देना।
यही होली का अर्थ है
यह बात जान लो
दामन थामा है आज
प्रेम का गुलाल लो।
छोटा सा दिल मेरा
समुंदर समाया है
भाव से भरा है यह
तुम्हे दिखाया है।
-मित्रा शर्मा
महू (मप्र)।