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मैं और मेरी कविता

शरद पूर्णिमा साल की अन्य पूर्णिमा से अलग और खास मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा अन्य दिनों इस दिन चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। यह भी माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत गिरता है।
शरद पूर्णिमा का धार्मिक रुप से भी विशेष महत्व है। दरअसल, शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती है। खास महत्व वाले दिन पर हमारे रचनाकारों द्वारा कुछ विशेष कविताएं प्रेषित की है। चुनिंदा राजनीति से जुड़ी भी रचना पेश की जा रही है।

जलज शर्मा
संपादक, न्यूज जंक्शन-18
212, राजबाग़ कॉलोनी रतलाम।
मोबाइल नंबर 9827664010 (मप्र)।

रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118 शक्ति नगर, गली नंबर 2
रतलाम (मप्र)
मोबाइल नंबर 9827047920
——-
अभिनंदन शरद

शुभ्र धवल उज्ज्वल,निर्मल
बिखर रही चाँदनी पल पल |

सिहरन सी शीतल शरद् आरम्भन,
प्रकृति संग करें नव रितु का अभिनंदन।

रेशमी बाँहे फैलाए रजनी है कर रही इन्तजार ,
अवगुंठन खोल चन्द्र से मिलन का होगा दीदार।

चाँद की ज्योति खिल उठी कर सोलह कला श्रृंगार,
शरद् पूर्णिमा की पावन रात्रि,चाँद की छटा अपार।

बरस रही अमृत बूंदें,मन चातक हुआ धन्य,
कुमुदनी हरसिंगार,उदित आज मेरा पुण्य।

तारों की सेज पर चाँदनी संग चन्द्र का अभिसार,
संस्कृति और आस्था संग जीवन उल्लास का उजियार।

घटने बढ़ने से क्या घबराना,जब लक्ष्य है पूर्णता,
शरदोत्सव,अभिनंदन ,शुभकामना,शरद् पूर्णिमा।

-डॉ.गीता दुबे, रतलाम
——–

चुनावी आपाधापी

निर्वाचन की देखो कैसी, मच रही है आपाधापी
किसी को टिकट मिल गया, कोई रह गया बाकी

कोई अभ्यर्थी हाथ जोड़ता, कोई कसीदे गढ़ रहा
नतमस्तक जनता के आगे, इनके सारे साथी

जोड़तोड़ की राजनीति, है हर किसी पर हावी
निर्वाचन की देखो कैसी, मच रही है आपाधापी

कोई ड्यूटी हटवा रहा,कोई करने को है राजी
नाक में दम कर रही, सुबेशाम की भागाभागी

कोई रैली निकाल रहा, किसी की अनुमति बाकी
निर्वाचन की देखो कैसी, मच रही है आपाधापी

दो- दो, तीन- तीन ड्यूटी से घबराया कर्मचारी
निर्वाचन से मिल जाएं मुक्ति, तो बांटू प्रसादी

कोई जनसंपर्क में लगा, कोई काट रहा चांदी
निर्वाचन की देखो कैसी, मच रही है आपाधापी

-हेमलता शर्मा भोली बेन
राजेन्द्र नगर, इंदौर
———
टूटन

शाख से टूटकर गिरे पत्ते
कुचल रहे थे कही पैरों तले
कितनी कमियां होगी मुझमे
सोच रहा हर पत्ता अपने तरीके से

एक ने सोचा ,पीला पड़ गया
क्या इसलिये ,छोड़ दिया शाख ने
दूसरे ने सोचा ,सूख गया
क्या इसलिये ,छोड़ दिया शाख ने, तीसरे ने सोचा ,तेज हवा ने झंझोड़ दिया
क्या ? इसलिये ,छोड़ दिया शाख ने

हर पत्ता अपने तरीके से सोच रहा
पेड़ तो पत्तो से विहीन था
सोच रहा था ,खड़ा अडिग में
समेटने की कोशिक थी हर पत्ते को
कैसे छुपाऊ अपनी ‘टूटन ‘ को
ठूंठ खड़ा रह गया में
पत्ते बिखर गये सारे।

माया मालवेंद्र बदेका
(नारायणी माया)
उज्जैन (मप्र)।
——
फिर वही यादें

याद करता हूं
बीते दिनों को
और
खुश हो जाता हूं
अपनो के साथ बिताए क्षणो को।
मजा ही कुछ और था

वह हँसी मजाक
आज भी याद है,
एक बार फिर पहुंच जाता हूं
बीते दिनो के पास।
मुझे मालूम है
वह दिन लौटकर नहीं आएगें
फिर भी
याद करके जीने का
मजा ही कुछ और है।

-पद्माकर पागे
कस्तूरबा नगर,रतलाम
——
शरद पूर्णिमा

पूर्ण चंद्रमा
है शरद पूर्णिमा
मन को भाए।
सुहावनी सोलह कलाएँ।

नभ सौंदर्य
जन-मन हर्षित
शुभ्र चंद्र से।
ज्यों अमृत है बरसे।

देख चंद्रमा
महकी रातरानी
मन को मोहा।
है आज शरद पूर्णिमा।

निशा सुहानी
बड़ी मेहरबानी
करे मयंक।
चहुँदिशी होता आनंद।

सखी यामिनी
औ शीतल चाँदनी
मिलन हुआ।
है शुभचंद्र की दुआ।

है महारास
यमुना तट पर
श्रीकृष्ण मिले।
शरद पूर्णिमा जो है।

-डॉ. शशि निगम
इन्दौर (मप्र)।

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