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आधी आबादी की रचनाओं ने हालात की नब्ज़ पर हाथ रखा

 

जलेसं के ‘कविता में स्त्री स्वर’ आयोजन में हुआ कविता पाठ

न्यूज़ जंक्शन-18

रतलाम। हालात की नब्ज़ पर आधी आबादी के हाथ भी रखे हुए हैं । महिला रचनाकार न सिर्फ़ हालात पर नज़र रख रही है बल्कि उसे अपनी रचनाओं में भी ढाल रही है । उसके अपने विषय नितांत वैयक्तिक हो सकते हैं मगर उनमें सामाजिकता मौजूद है। अपने आसपास के विषय को उठाते हुए वह आज के सच से समाज को परिचित कराना चाहती है।
उक्त विचार जनवादी लेखक संघ द्वारा महिला रचनाकारों के कविता पाठ पर केंद्रित कार्यक्रम ‘कविता में स्त्री स्वर’ में उभरकर सामने आए। आयोजन में महिला रचनाकारों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। पूरी तरह महिलाओं पर केंद्रित इस आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवियत्री श्रीमती पुष्पलता शर्मा ने की तथा संचालन के सूत्र श्रीमती आशारानी उपाध्याय ने थामे।
रचना पाठ का सिलसिला दस वर्षीय बालिका *गुलफिशा* की कविता से हुआ, जिसने वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर आधारित रचना का पाठ किया। *योगिता पुरोहित* ने अपनी कविता का पाठ करते हुए कहा कि ” हे परमात्मा जब तूने स्त्री बनाई, ये बता वह मिट्टी कहां से पाई?” एक अन्य रचना में उन्होंने कहा, ” काश कि ऐसा हो जाए, चांद मेरे हाथों में आ जाए। ”
*डॉ. कविता सूर्यवंशी* ने अपनी कविता में जीवन और दर्शन के मेल को बताते हुए कहा ” ज़िंदगी के सफर में हमसफर उसे चुने जो आपकी भावनाएं समझता हो।” उन्होंने ‘कर्म बंधन’ और ‘पहचान’ कविता का भी पाठ किया । *कविता व्यास* ने ‘मानव का लोकतंत्र’ , ‘विचारों के भंवर’ और ‘अवरोध ‘ शीर्षक की कविताओं के माध्यम से अपनी बात रखी। *अनीता व्यास* ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि ” जुबां पर हुए घाव ठीक हो सकते हैं लेकिन जुबान से हुए घाव कभी ठीक नहीं होते ।” एक अन्य रचना में उन्होंने ‘निडरता से निर्भरता’ का पाठ किया ।
*अनीता सूर्यवंशी* ने ” तुम ख़्वाब थे, क्या ख़्वाब ही रहोगे” कविता पाठ के माध्यम से जीवन के दार्शनिक व्याख्या की । वरिष्ठ कवियत्री *इन्दु सिन्हा* ने अपनी कविता में कहा कि ” नारी देवी क्यों बनना चाहती हो , क्यूं टंगी रहना चाहती हो सोने की फ्रेम में ।” उन्होंने ‘वर्ल्ड कप’ और ‘पापा की परी’ शीर्षक कविता का पाठ भी किया । वरिष्ठ कवियत्री *डॉ. गीता दुबे* ने ‘गोरैया’, ‘देहभर हो तुम ‘ और ‘मगर अभी भी’ शीर्षक से कविता पढ़ी। *किरण जैन* ने अपनी कविता में कहा ” मेरी अंगना में अब कंगना महकेगा, बेटी के आने से ।” *आशा उपाध्याय* ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से कहा ” दोस्ती में दगा दे गया वो मुझे, और महकने का सारा हुनर ले गया ।” अध्यक्षता करते हुए *पुष्पलता शर्मा* ने ‘ मेरे बचपन के दिन’ और ‘ नारी का सम्मान करो ‘ शीर्षक से कविता का पाठ किया।
महिलाओं द्वारा किए गए कविता पाठ पर विचार विमर्श करते हुए उपस्थित साहित्यजनों ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि तमाम उलझनों के बाद भी स्त्री सृजनात्मक गतिविधियों से जुड़ी हुई है । उसके भीतर कहीं न कहीं बेचैनी है । वह अपने भीतर के आक्रोश को, अपने भीतर के खालीपन को और अपने भीतर के अवसाद को कविता के माध्यम से सामने ला रही है। यह सुखद है कि महिला रचनाकार समाज की उन विषमताओं पर भी अपना ध्यान केंद्रित कर रही है जिनके माध्यम से उसका जीवन और कठिन होता जा रहा है । गोष्ठी के आरंभ में जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष रणजीत सिंह राठौर एवं सचिव सिद्दीक़ रतलामी ने रचनाकारों का स्वागत किया । आयोजन में हल्ला गुल्ला के संयोजक कवि जुझार सिंह भाटी द्वारा जलेसं पदाधिकारियों का सम्मान किया गया। आयोजन में प्रो. रतन चौहान ,पद्माकर पागे, आशीष दशोत्तर, मांगीलाल नगावत, श्याम माहेश्वरी, दिनेश उपाध्याय, गीता राठौर, दिलीप जोशी, एमके बोरासी सहित कई सुधिजन उपस्थित थे।

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