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मैं और मेरी कविता

न्यूज़ जंक्शन-18 के साहित्यिक सफर के इस पड़ाव में हम नियमित रूप से रचनाकारों की रचनाएं (कविता) का प्रकाशन करते आ रहे हैं। रविवारीय अंक में रतलाम के अलावा अंतर जिला व अंतर राज्यीय प्रकाशन सामग्री हमें प्रेषित की जा रही है। इस दौर की सफलता के बाद पोर्टल के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर साप्ताहिक लघुकथा का साहित्य कालम भी शुरू करने की योजना है। इसका पृथक से दिन निर्धारित किया जा सकता है। इसके लिए आप अपने सुझाव मेरे मोबाइल नंबर पर या व्यक्तिगत दे सकते है। फिलहाल कविता के स्तम्भ में आपके लिए कुछ बेहतर रचनाएं पेश है।

जलज शर्मा
संपादक, न्यूज़ जंक्शन-18
212, राजबाग़ कॉलोनी रतलाम (मप्र)
मोबाइल नंबर-9827664019

रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118, गली नंबर 2,
शक्ति नगर, रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर-9827047920
—–

उम्र के इस दौर में

आईने में खुद को देख बदली सी लगी हूँ ,
थी तो मैं ही पर कुछ अजनबी सी लगी हूँ ।
बहुत दिनों के बाद यूँ खुद से मिली हूँ,
लापरवाह नहीं,हाँ,कुछ बेफिक्र सी लगी हूँ |

बेवजह कभी हँसने मुस्कुराने लगी हूँ,
कभी यूं ही कुछ कुछ गुनगुनाने लगी हूँ |
बारिश की बूँदों की सरगम सुनने लगी हूँ,
सावन की रिमझिम में मन भिगोने लगी हूँ।

फूलों से हर दिन बतियाने लगी हूँ ,
बिन पंख पंछियों संग उड़ने लगी हूँ ।
समंदर की रेत पर घर बनाने लगी हूँ ,
लहरों संग अठखेलियाँ करने लगी हूँ।

किताबों की थपकी से अब सोने लगी हूँ,
ज्यादा गहरी सुकून भरी नींद लेने लगी हूँ ।
उम्र के इस दौर में सजने सँवरने लगी हूँ,
दोस्तों संग महफिल में खिल खिलाने लगी हूँ |

बात बात पर अक्सर खुद से रूठने लगी हूँ,
और फिर खुद ही खुद को मनाने लगी हूँ ।
अक्सर कुछ नादानियाँ करने लगी हूँ,
गहरे दुबके बचपन को फिर जीने लगी हूँ |

न जाने क्यों आजकल बहुत खुश रहने लगी हूँ,
हाँ,अब मैं जिंदगी अपने लिए जीने लगी हूँ ।
आईने में खुद को देख बदली सी लगी हूँ,
थी तो मैं ही पर कुछ अजनबी सी लगी हूँ |

डॉ.गीता दुबे,
सेवा निवृत्त प्राध्यापक, रतलाम
स्वरचित,मौलिक
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यारों ख़ूब शराब

दुर्गण बहुत शराब में, कितना भी दे ज्ञान
फिर भी समझेंगे नहीं, ये सारे श्री मान

शराब के इस दौर में, रिश्ते हुए भरपूर
वे भी आये पास में, कल तक थे जो दूर

शराब से बढ़ती सदा, मित्रता ख़ूब अपार
जब भी मिलते वे यहाॅं, जतलाते है प्यार

आज हुई परिवार की, हालत देख खराब
फिर भी पीता है सदा, यारों ख़ूब शराब

कैसे थामे वो यहाॅं, घर की अब पतवार
उजाड़ दिया शराब ने, घर सारा संसार

शाम होते ही लगता, उनका यह दरबार
पीते है मिल बैठकर, देखो सारे यार

पीकर भी रमेश जिसे, आवे न तनिक लाज
कभी गिरा था उस गली, इधर गिरा है आज

पीना ना शराब कभी, कहता हूॅं मैं साफ
खुद को बरबाद करके, कर न सकोगे माफ

दावत देते मौत को, पीकर आप शराब
लेगी एक दिन जान ही, आदत यही शराब

रमेश मनोहरा
शीतला माता गली जावरा
जिला रतलाम (मप्र)
मो. 9479662215
7999890997
——-
पुस्तक और मैं

पुस्तक है मेरी सच्ची साथी,
बिना पढ़े में रह नहीं पाती,
जब मन होता है व्याकुल,
उसको रंगों से भर जाती ।
पुस्तक……

कोई नहीं हो पास मेरे जब,
पुस्तक ही मुझसे बतियाती,
हरदम साथ निभाती है वह,
पुस्तक ही मुझको सहलाती।
पुस्तक……

मन करता उड़ जाऊं गगन में,
पुस्तक ही मुझको ले जाती,
देश-विदेश की सैर कराती,
ज्ञान की मुझमें अलख जगाती ।
पुस्तक…

याद करें मन मां की ममता,
मां का आंचल वह बन जाती,
मुझ पर प्यार लुटाती है वह,
अपने आंचल में मुझको छुपाती।
पुस्तक…..

बिन बोले सब कह देती वह,
अच्छे-बुरे की पहचान कराती,
मेरी भी पहचान पुस्तक से
मैं भी गीत उसी के गाती ।
पुस्तक……

हेमलता शर्मा ‘भोली बेन’
इंदौर (मप्र)।
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दिन नशीला बारिश का

रिमझिम बारिश की ख़ुमारी में,
कट गया दिन नशीला सा ,
बहती हवाओं ने गुनगुनाया,
गीत प्रेम का,
पोर पोर में मीठे दर्द की चुभन,
पलके मूंदने लगी भीगे मौसम में|
दिन भी मतवाला हो रहा,
देख यौवन धरा का,
बावला हो रहा बादल,
घूमने आ गया धरा पर,
धरा ने शरमा कर,
छिपाया चेहरा बादल के सीने में,
सैर पर निकला सूरज हो गया खुश,
देख धरा बादल के मिलन को,
गुनगुनी धूप की,
क्रीम लगा आया धरा को,
ओढ़ा दी उसने धानी चुनर,
वक्त है बादल को,
आवारा छोड़ने का
मिलने दो उसे धरा से,
इंतजार के पल,
लंबे ना हो उसके,
क्योंकि,
क्या धरती और क्या आकाश,
सबको प्यार की प्यास।

श्रीमती इन्दु सिन्हा “इन्दु”

रतलाम (मप्र)।

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