भारतीय समाज में साहित्य का पावन प्रवाह कबीर, रसखान व मध्यकाल के स्वयंभू, पुष्पदन्त, धनपाल जैसे प्रख्यात कवि से लेकर आज तक अनवरत चलता आया है। इसमे किंचित ठहराव नही आया है।
न्यूज जंक्शन-18 का उद्देश्य पथ भी साहित्यिक विधा को विस्तार देना है। जिन रचनाकारों से हम अब तक रूबरू हुए है। उनकी रचनाओं में वीरता, धार्मिक, सांस्कृतिक, शृंगारिक, भक्ति परक तथा मनोरंजनात्मक कृतियों का भी समावेश दिखाई दिया है। हमारा प्रयास है कि इस क्रम को जारी रखा जाएगा। 12वें सोपान में कुछ पर रचना प्रस्तुत की जा रहीं है।
जलज शर्मा
संपादक, न्यूज जंक्शन-18
112, राजबाग़ रतलाम (मप्र)
मोबाइल नंबर 9827664010
कविताओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
शक्ति नगर, रतलाम (मप्र)
मोबाइल नंबर 9827047920
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‘वृक्षों का मरहम’
क्यों काटे हैं वृक्ष इतने?
क्यों दिए वन-उपवन उजाड़?
देखना है अब मानव तुम्हें,
कितने भीषण दुष्परिणाम।
जीवन दिया जिसने तुम्हें,
पोषित किया है पुत्रवत्।
क्यों फिर तुमने हैं किए?
माँ धरती के अंग विच्छेद।
चहुँओर हरियाली थी कैसी?
लहराते थे जंगल औ खेत। ।
जिधर देखो अब उधर ही,
कट रहे नीम-पीपल के पेड़।
वायु शुद्ध मिलेगी कैसे?
कैसे मिलेगा पीने को जल?
भरण औ पोषण होगा कैसे?
है विनाशकारी प्रत्येक पल।
हो गए क्यों मनुष्य इतने,
स्वार्थी-वहशी औ बुद्धिहीन।
विकास-विकास करते हुए,
कर रहे पर्यावरण विनाश।
यदि अभी भी बुद्धि शेष हो,
तो संभल जाओ मनुष्य तुम ।
माँ धरती के उपकार को,
भूलकर भी न भूलो तुम।
धरती के सुपुत्र बनकर तुम्हें,
करना होंगे कर्त्तव्य अब।
उसके कटे अंगों पर तुम्हें,
मलना होगा वृक्षों का मरहम।
डॉ. शशि निगम
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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*बुड्ढी के बाल*
सुन टन – टन -टन की घंटी
दौड़े-दौड़े आएं बबली,बंटी ।
देखकर बुड्ढी के बाल वाला
मुंह में आई मिठास सप्तरंगी ।।
करने लगे सारे बच्चे बवाल
खाएंगे हम भी बुड्ढी के बाल ।
सुनकर बुड्ढी के बाल वाला
बोला एक रुपये का है सवाल ।।
अपनी भूख को कांधे पर डाल
बेच रहा रंग-बिरंगे बुड्ढी के बाल ।
बिक जाएंगे जब ये मिश्री सारी
तब खाना खाएंगे मेरे बाल-गोपाल ।।
गोपाल कौशल भोजवाल
नागदा, जिला धार (मप्र)
9981467300
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“कुआँ डरता है”
उस कस्बे में बने कुएँ में,
अब कोई नहीं जाता है ,
सूनी रहती है उसकी मुँडेर,
कभी-कभी कोई झाँकने चला जाता है ,
तो कुआँ डर जाता है,
कहीं उसमें कूदकर कोई जान ना दे दे ,
अभी कुछ महीने पहले ही,
एक मां ने बच्चों के साथ,,
इसी कूएँ में जान दी थी,
साल में एक दो बार ऐसा होता है,
कोई ना कोई कूएँ में डूब कर,
जान दे देता है |
मरे हुए लोगों के शरीर तो निकाल लिए जाते हैं,
उनकी आत्मा वहीं छूट जाती है|
उसके अंदर है भयानक अंधेरे,
उसके अंदर है अगिनत घाव,
वो सिसकता है रोता है |
उसके भीतर उसकी दीवारों पर,
उग आये पौधों को,
वो बताना चाहता है,
कूएँ के भीतर का पानी,
खाली करवा दो,
जो चिकट हो चुका है,
तैरती रहती है अजीब सी बदबू,
चीखता रहता है सन्नाटा |
परेशान करती है यादें,
ढक दो कुएँ को,
कुआँ गवाह ना बने उन मौतों का,
जिनका कभी वो हत्यारा था ही नहीं |
इन्दु सिन्हा”इन्दु”
रतलाम (मप्र)
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साथी सफ़र में छूट गए
जीवन की आपाधापी में
कुछ साथी सफ़र में छूट गए
कुछ बिछड़ गए
कुछ रूठ गए
जो शेष रहा वो यादें हैं
सपनों में अक्सर मुलाकातें हैं
दुनियादारी की उलझन में
जीवन से इतना उब गए
यारों के बिना हम टूट गए
क्यूँ साथी सफ़र में छूट गए ?
डॉ. कविता सूर्यवंशी
रतलाम (मप्र)
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हार गया प्यार की रीत में
न रीत में न प्रीत में न प्रीत में न रीत में ।
जो भी लिखा यारों लिखा मैंने गीत में ।।
कदमों की बजती पायल की धुन पर ।
तेरी बिंदिया लागे जैसे कोई मुन पर ।।
धड़कन नाचे नाचे जैसे कोई जीत में ।
न रीत में न प्रीत में न प्रीत में न रीत में ।।
न रीत में न प्रीत में न प्रीत में न रीत में ।
जो भी लिखा यारों लिखा मैंने गीत में ।।
बादलों से करे हवा हवा छेड़खानी ।
उलझे बालों से देखे कोई निशानी ।।
कानों में लड़ियां हाथों में चूड़ियां ।
लगती है तू मुझे प्यार सी गुड़िया । ।
बन कर आओ तुम मेरे कोई मित में ।
न रीत में न प्रीत में न प्रीत मे न रीत में ।
न रीत में न प्रीत में न प्रीत मे न रीत में ।
जो भी लिखा यारों लिखा मैंने गीत में ।।
लहराती चले तू चले बलखाती ।
बंद कलियों सी तू इठलाती ।।
नजरे बन गई मेरे दिल की कातिल ।
सपनों की सेज पर आकर तू मिल ।।
हार कर भी हार गया जैसे कोई जीत में ।
न रीत में न प्रीत में न प्रीत मे न रीत में ।।
न रीत में न प्रीत में न प्रीत मे न रीत में ।
जो भी लिखा यारों लिखा मैंने गीत में ।
हाथों की लकीरों में घुल गई हिना ।
मेरी उंगली में है तेरे नाम का नगीना ।।
कर दी जिंदगी मैंने तेरे नाम की ।
मिल गईं तूं मुझे मेरे ही मुकाम की ।।
गूंज गई आवाज मेरे ही संगीत में ।
न रीत में न प्रीत में न प्रीत मे न रीत में ।।
प्रकाश हेमावत
मकान नंबर 545, गली नंबर 5
(बुद्धेश्वर मंदिर की तरफ)
टाटा नगर रतलाम