निःशब्द का क्रन्दन
निःशब्द रहे अब तक
पीड़ा के भाव अन्तर्मन में।
देहरी की परिधि के प्रज्जवलन,
संस्मरणों में रहे दफन थे।
कब तक रोकोगें शब्दों को
हवन में।
निःशब्द रहे अंर्तज्वाला में
अब तक भाव उत्पीड़न के।
रस्मों,रिवाजों की बेडियोंं में
विवश,गरल,घुटन भरें।
कब तक रोकोगें शब्दों को
दमन में।
निःशब्द थे तप्त सहरा की
मृगतृष्णा की प्यास से।
श्वांस भी थी बंदिनी सी
मौन संत्रास में।
कब तक रोकोगें शब्दों को
अनुबंध में।
अवरोधों को तोड़ आज
बह निकले है शब्द
पर्वत, नदी ,सागर तक।
खुश्बू बन बह निकले
हवाओं में धरा से गगन ,
वन,उपवन ,खलिहान तक।
नहीं रोक सकोगे
नव सृजन प्रवाह को।
पंछियों के कलरव में
गूंज रहे गीतों को।
ये शब्द शंखनाद है
नव प्रभात का।
डॉ.गीता दुबे
(सेनि प्राध्यापक)
रतलाम (मप्र)
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मौसम ने रुख़ बदला
सर्द हवाओं के मौसम ने
रुख़ बदला
टेसुओं के फूलों से
होली की याद आई
अमराई में अमुआं बौराये
महुआ में मादकता भर आई
खिले सुमन चहुंओर
बसंत का मनुहार है
कूक रही कोयल भी
पंछी का त्योहार है
झुम रही डाली-पेड़
लटालूम बहार है
सांझ-सकारे गाते गीत
मृदंग से थिरके पैर है
पुलकित है, वसुंधरा भी
फाग की आई, फुहार है।
-शिव चौहान शिव
183, अष्टविनायक रेसीडेंसी
(राजबाग)-2
रतलाम (मप्र)।
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शुक्रिया
श्रम की आभा दीपित
अधर स्मित शोभित
सृजन संसार समेटे
श्यामल देह सजीली
स्वेद बिंदु सीकर
मोती माणिक शोभित
वह कर्म उपासिका
हठी श्रम साधिका
स्फटिक की छाती भेद
उज्ज्वल हास लिए
वह निर्झरणी सी बहती है
अनवरत! अनवरत !
मुख विश्वास आभा अलंकृत
गढ़ती है अट्टालिकाएंँ अनूठी
आसमां से होड़ लगातीं
गगनचुंबी सजीली
जमीन पर खड़ी उसे
वह निहारती है फिर
जीवन की पगडंडी
पर अथके चलती है
आकाश को तकती
हाथ उठा अपने
सिर झुका ईश का
शुक्रिया अदा करती है
-यशोधरा भटनागर
देवास (मप्र)।
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लघु कथा
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नीयत
पिछले वर्ष की बात है। किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी के समारोह में रीता सपरिवार आमंत्रित थी उसकी बहुत नजदीक की रिश्तेदारी थी। इसलिए रीता ने कुछ स्वर्ण आभूषण उनकी बेटी को जिसकी शादी थी, देने का निर्णय किया।
शादी के दिन अभी बरात आने में वक्त था रीता ने सोचा अभी भीड़ कम है तोहफा वधू की मांँ को दे दिया ।
पर उन्होंने लेने से इनकार कर दिया कहा..हम किसी का भी तोहफा नहीं ले रहे हैं । हमें तो अपनी बेटी के सुखी विवाहित जीवन के लिए आप सब का आशीर्वाद चाहिए। उन्होंने उसका तोहफा उसे वापस कर दिया।
तभी उसे अपनी कोई स्कूल के समय की सहेली दिख गई। जिससे बहुत सालों से मुलाकात नहीं हुई थी। सालों बाद एक दूसरे को देखकर दोनों बहुत खुश हो गई बैठकर पुरानी बातों में मशगूल हो गई।
तभी उसके पति ने उसे आवाज देकर बुलाया, वो पति के पास जाकर बैठ गई, और 5 मिनट के बाद उसे ध्यान आया की तोहफे वाला पैकेट उसके हाथ में नहीं है।
वो जल्दी से वहाँ गई जहाँ सहेली के साथ बैठी थी,और पूछा मेरा यहाँ पर पैकेट छूट गया था। तुमने देखा क्या….उसने इंकार कर दिया, तब वो बहुत परेशान हो गई, बहुत ढूँढा पर नहीं मिला । इतने में उसके पति ने कहा- यहाँ जिनका मैनेजमेंट है वो मेरे मित्र है, मैं उससे कहता हूँ, कि कैमरे में देखें,जिसने भी लिया होगा वह वीडियो में दिख जाएगा।
वो अपने पति के साथ वापस आकर अपनी जगह जगह में बैठ गई ,कि 5 मिनट के बाद सहेली का फोन आता है ।
वो बोल रही थी कि मैं तो जा रही हूंँ। मुझे कुछ जरूरी काम याद आ गया ,तुम एक काम करना ,अपना पैकेट कुर्सियों के नीचे तलाशना ,तुम्हें मिल जाएगा । ये जो बेयरे होते है ये समान को कुर्सी के नीचे छुपा देते हैं।
वो जल्दी से वहाँ गई जहाँ सहेली के साथ बैठी थी और देखा जिस कुर्सी पर सहेली के पति बैठे थे । उस कुर्सी के नीचे पैकेट गिरा हुआ था । उसे बहुत आश्चर्य हुआ ,कि अभी तो 15 मिनट पहले देख कर गई थी, इसी कुर्सी के नीचे । यहाँ कुछ नहीं था अचानक से यह पैकेट यहाँ पर कहाँ से आ गया। और उसका अचानक से चले जाना और मुझे बताना ,कि कुर्सी के नीचे देखना यह संयोग है या कुछ नीयत का खेल है, या कैमरे में पकड़े जाने के डर से उसका बता के जाना ,और शादी को बीच में छोड़कर चले जाना। आज तक समझ ना पाई , सच क्या है ईश्वर जाने।
पर किस वक्त आदमी की नीयत खराब हो जाती है। और ना चाहते हुए भी गलत काम करवा देती है और सभी की नजरों में हमेशा के लिए गिरा देती है।
-ऊषा जैन उर्वशी
कोलकाता।