लेखन संसार…..
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स्वागत ऋतुराज बसंत
उज्जवल चेतन सौन्दर्य कण कण बहार,
मकरंदों की गुंजित गुनगुनाहट से ध्वनित संसार|
सोलह श्रृंगार से सजी प्रकृति ,फूल हर्षित अपार,
बौराई आम्र मंजरी ,चटक रही कचनार |
पीली सरसों फूली, गीत गाए मल्हार ,
पंछियों की सरगम ,मंद मंद सी बयार |
नव पल्लव हर्षित,धरती का है उपकार ,
कल कल ध्वनि तरंग ,नदियां बहती अपार |
सर्वत्र ध्वनित जीवन संगीत, वीणा की झंकार ,
शारदे प्राकट्य दिवस ,वाग्देवी वंदन आभार |
समीर सुभाषित सुरभित ,मंद मंद गंध अपार ,
प्रेम प्रकृति अलंकृता,अनुपम उपहार |
मौसम की मादकता ,आलौकिक आनंद खुमार,
लेखनी के हर छंद में ऋतुराज बसंत सुकुमार |
-डॉ.गीता दुबे
से. नि. प्राध्यापक
रतलाम (मप्र)।
‘ऋतुराज-बसंत’
बसंत के आवन से,
रोमांचित है प्रकृति।
वृक्ष सजे कोपलों से,
स्वागत करे समीर भी।
सरसों से खेत फूले,
सृष्टि हुई आनन्दमयी।
महुए सौंधे महक उठे,
सिंदूरी हुए पलाश भी।
सुमन-सुमन खिल गए,
तितलियाँ भी नाच उठी।
भ्रमर-दल गुंजार करे,
गाए वृन्द गान पक्षी भी।
प्रकृति के उल्लास से,
वसुंधरा हुई मोदमयी।
चमकते तुषार कण हैं,
लगते मनभावन भी।
कुहूकती हैं कोकिलाएँ,
अमराइयाँ बौरा गयीँ।
अमतास झूमने लगे,
आई बगियों में बहार भी।
ऋतुराज के आवन से,
प्रसन्न हुईं माँ सरस्वती।
जन-जन सब नमन् करे,
उन्हें मिले है आशीष भी।
–डॉ. शशि निगम
इन्दौर (मप्र)।
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माँ…
अनूठी होती है माँ की ममता
देती है भाषा और सभ्यता
रखती सदा समभाव
दिखाती नहीं कभी अभाव
कभी न लाओ दुर्भावना
हमेशा करो उपासना
शुद्ध जल सा होता ह्रदय
आंचल मे लगता अभय
माँ है तो है अभिमान
उनका रखो हमेशा मान
जीवन को देती आकार
सपने करती साकार
परिवार की होती धुरी
सबकी इच्छा करती पूरी
ध्यान रखती पग-पग
कहती संजय रहो “सजग”।
-संजय जोशी ‘सजग’
गुलमोहर कॉलोनी
रतलाम (मप्र)।
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