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मैं और मेरी कविता

गणेशोत्सव की 10 दिवसीय आराधना व कार्यक्रमों का दौर खत्म होने के बाद भाद्र मास में शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 16 दिनों के इस पक्ष में विधि- विधान से पितर संबंधित कार्य करने से पितरों का आर्शावाद प्राप्त होता है। इसी विषय से जुड़ी रचनाएं हमें रचनाकारों द्वारा प्रेषित की गई है। इन कविताओं में विषय के मुताबिक बेहतर शाब्दिक प्रसंगों का समावेश किया गया है।

जलज शर्मा
संपादक, न्यूज़ जंक्शन-18
212, राजबाग़ रतलाम।
मोबाइल नंबर-9827664010

रचनाकाओ के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्ति नगर, गली नंबर 2
रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर 9827047920
—-
पुरखे

मेरे पुरखे वे भी है जो
सूरज को अर्ध्य देते थे
जो सत्यनारायण की कथा
और तुलसी विवाह के प्रति श्रद्धा रखते थे
घर में ठाकुर जी की पूजा किए बिना
जल भी नहीं पीते थे
तीर्थ यात्रा करते थे

वे नहीं जानते थे
मिथक और यथार्थ के फर्क को मिथक को यथार्थ
और यथार्थ को मिथ्या समझते थे

नहीं मानता कि वे निरे बुड़बक थे
अपनी मिट्टी अन्न, जल, पशु-पक्षी
पेड़-पौधे, परिवार और समाज
इन सबके प्रति वे आंतरिक श्रद्धा से ओतप्रोत थे
हां! यह भी सच है कि
भले प्रतिरोध न करते हों
वह किसी अन्याय का
लेकिन वे उसके पक्षधर कभी नहीं थे

मेरे पुरखे वे भी हैं जो
दृष्टि से संपन्न थे
अच्छे और बुरे के फर्क को जानने वाले
संकल्पों को जीने वाले
लोहा लेने वाले
युगों की धारा मोड़ने वाले
अंधकार तोड़ने वाले
दमित दलित को जोड़ने वाले
मेरे पुरखे वे भी हैं।

जनेश्वर
मंदसौर (मप्र)।
——

पितृपक्ष

सोलह दिन का श्राद्ध पक्ष,
आता पूरे वर्ष में एक बार,
पितृ ऋण से उऋण होकर,
खोलो तुम मुक्ति का द्वार।

भाद्रपद की पूर्णिमा से,
अश्विन अमावस्या तक,
सुख-शांति कायम रखने,
चलता रहता पितृपक्ष ।

श्राद्ध से हो कष्ट निवारण,
होती सारी दूर रूकावट,
श्राद्ध में ही संजा आती,
बनाते गोबर से किलाकोट।

रूके कार्य सब बन जाते,
चेहरे सबके खिल जाते,
खीर पुड़ी का बोलबाला,
ब्राह्मण भोजन रोज कराते।

श्राद्ध और तर्पण कर बंदे,
होगी खुश पितर-आत्मा,
ऐसा कहते शास्त्र हमारे,
और कहते बड़े महात्मा।

-हेमलता शर्मा ‘भोली बेन’
इंदौर (मप्र)।
——
शूलीका

बड़े शहरों में
श्राद्ध पैकेज
में समाया
जैसा चाहो वैसा
पैकेज
ऑन लाइन का
जमाना।
2
भावों का अर्पण
श्रद्धा का तर्पण
जीवन काल
का हिस्सा बने
यही सच्चा श्राद्ध ।
3
प्रकृति की मार
काग हुए विलुप्त
कैसे सफल हो
श्राद्ध?
4
एडवांस बुकिंग
का दौर ।
नही मिलते
योग्य पंडित।

-संजय जोशी “सजग”
गुलमोहर कॉलोनी
रतलाम (मप्र)
——
पुरखे कहीं नहीं गए

पुरखे
कहीं नहीं जाते

वे रहते है सदा
हमारी भाव,भाषा
स्नेह,अपनत्व और
ममत्व में विद्यमान

उनके संस्कार और छवियाँ
रची-बसी होती है
हमारे मनोमस्तिष्क में

तभी तो
भाई की आवाज़ में
पिता का आभास
तो/ पोते की चंचलता में
दादा की छवि

बहिन के स्नेह में
माँ का ममत्व
तो/बेटी की अटखेलियों में
दादी की चंचलता

यही तो सबूत है
उनके जीवंत होने का

कौन कहता है
पुरखे चले गए?
पुरखे कहीं नहीं गए
पुरखे कहीं नहीं गए।

-संजय परसाई ‘सरल’

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