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मैं और मेरी कविता

प्रथम पूज्य, बुध्दि प्रदाता भगवान श्री गणेश के 10 दिवसीय आयोजन को साहित्य सरोकार के रूप में संजोकर हम हमारे न्यूज पोर्टल के साहित्यिक स्तम्भ मैं और मेरी कविता में लाए है। रचनाकारों द्वारा इस विषय से जुड़ी रचनाएं भेजी है। सादर प्रकाशनार्थ।

जलज शर्मा
संपादक, न्यूज जंक्शन-18
212, राजबाग़ रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर 9827664010

रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118 शक्ति नगर, गली नंबर 2
रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर 9827047920
—-

तुझको मेरा अभिनन्दन है

त्यौहारों का योजन हैं तुझ को मेरा अभिनन्दन हैं गणेशोत्सव के त्योहार की जय जय जयकार हैं
हम सभी भक्त तुझे यहाँ करते नमनः हैं,
ओ देवों के देव गणपति बप्पा मोरया!

तेरे आगमन के साथ आती है
खुशियाँ हजार, नई उम्मीदें हजार और उमंग , गणपति बप्पा, तू है हमारे जीवन की महकी खुशबू,
तूझ से है हमारी आत्मा की रोशनी का कुँवा।

तुम हो विघ्नहर्ता, हर दर्द-ओ-ग़म को दूर करता,
तुझे वंदन, तुम हो हमारे लिए सर्वोपरि अभिनन्दन
मंगलमय हो तुम हमारे जीवन के हर कदम पर, हर राह पर
गणपति बप्पा मोरया

गणेशोत्सव की खुशियों के साथ आती हैं खुशियाँ होती हज़ार,
ओ गणपति बप्पा मोरया, जय जय हो तेरी जय हो,
हर दिन हम करते हैं तुझे समर्पण का इज़हार।
तू है दिल में ऐ राजा अधिराज,
गणेश के इस अद्वितीय अवसर पर,
हम करते हैं प्रणाम और जयकार,
जय जय सदा वंदन अभिनन्दन
।। गणराया।।

-निशा अमन झा बुधे
जयपुर (राज.)
—–

पधारो गणनायक

घर पधारे गणपति सदा मंगल धाम |
तन मन धन से नित्य करे वंदन हम |

विघ्नहर्ता विनायक गणपति शुभ नाम |
एक दंत ,दयावंत करें श्रद्धा पूजन हम |

देवाधिदेव प्रथम पूज्य साधे सब काम |
कपिलो गज कर्ण सुनो देव तुम्हे प्रणाम |

सृष्टि पालक लम्बोदर करो पूरण काम |
रिद्धि सिद्धि के दाता अनुपम ललाम |

गणेश उत्सव बप्पा बिराजो मेरे धाम |
दुःख हरो जन जन के तुम सुख के धाम |

विपदा भारी गजानन, हरो संकट तमाम |
मोदक का भोग लगा, दो सबको वरदान ।

शोर प्रदूषण रहित उत्सव ही शुभ विहान |
आस्था उल्लास से भक्ति करें, न हो प्रदर्शन |

घंटा,मृदंग,शंख ध्वनि लड्डू थाल भोग सजे,
सद्बुद्धि दो,तम हरो ,शुभंकरी शुभ बिराजे |

श्रद्धा भाव से चहुँ ओर गूँजे मंगल गान,
सुख,समृद्धि का नित्य सबको मिले वरदान |

-डॉ. गीता दुबे
(सेनि. प्राध्यापक)
रतलाम (मप्र)।
——-

श्री गणेश

नृत्य वाले पग हर लेते है जग का मन
उपासना को इसी तरह करते सब जन।

गणेश के आँगन में होते भजन कीर्तन
हर राही के पग करने लग जाते है नर्तन।

गणेश के पांडालों में होता है आकर्षण
माँ के उपासक सदा करते इनका दर्शन ।

नृत्य से उपासना होती बड़ी ही रंग रंगीली
कही भजन संग तालिया बन गीत सजीली।

सर्वत्र रंग हुए बिम्बित हर जगाओं पर
सजने लग गए पंडाल चारों दिशाओं पर ।

-संजय वर्मा “दृष्टि”
मनावर, जिला धार (मप्र)।
——–

गणराज हमारे

बारम्बार पधारो गणराज,
हम स्वागत करें।
मेरे घर में विराजो गणराज,
हम आनंद करें।

मखमल का मैंने आसन बनाया,
सलमें-सितारे से उसे सजाया।
आकर विराजो आप,
हम पूजन करें।

शून्य हृदय का दीपक बनाया,
नेह की बाती से उसे सजाया।
भक्ति की जोत जगाओ,
हम आरती करें।

तुलसीदास सा चंदन बनाया,
भाव से मैंने उसे सजाया।
आकर तिलक लगवाओ,
हम स्वागत करें।

भाव से मैंने भोग बनाया,
शबरी के बेर सा उसे सजाया।
मीठे-मीठे लड्डू खाओ,
हम मेहमानी करें।

रिद्धि-सिद्धि के आप हो दाता,
बुद्धि का हो अनन्त खजाना।
कुछ हम पर भी लुटाओ,
गणराज हमारे।

भक्त खड़े हैं मेरे अंगना,
आप सुनों सबकी करुणा।
आकर सुख बरसाओ,
सब आनंद करें।

-डॉ. शशि निगम,
इन्दौर (मप्र).
मोबा. 7879745048

——–

रमता खेलता आओ गजानन

रमता खेलता आओ गजानन
लाडू मीठा खाओ गजानन
देवलोक से संगीत लाओ
गीत निराला गाओ गजानन

वाट जोवे हर कोई थाकी
तैयारी पूरी वईगी माकी
पांडाल सजाया रंग बिरंगा
झूमर, झालर की है झांकी
लईने आओ ज्ञान बुद्धि
लीलालेर में धरती माता
पाणी असो वर्षाओ गजानन

रमता खेलता आओ गजानन लाडू मीठा खाओ गजानन देवलोक से संगीत लाओ
गीत निराला गाओ गजानन

-यशपाल तंवर
रतलाम (मप्र)।
——

गजानंद

भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी
पावस दिवस बुधवार।
मा पार्वती के उबटन से
गणेश का हुआ अवतार।।
सती गई जब स्नान को
गणपति बने पहरेदार।
कोई ना गुजरे द्वार पार
गण ने लगाई ललकार ।।
इसी समय महादेव का
अचानक होगया आना।
रोक दिया विनायक ने
पिता को नहीं पहचाना।।
शिव के प्रहार से
चीत हुए गणेश।
देख सती की आंखों में ज्वाला
विचलित हुए महेश।।
दिया आदेश गरुड़ को
दक्षिण पथ पर जाओ।
पीठ करके जो माता सोए
उसे बच्चे का शीश लाओ।।
हथनी सोई थी नींद में
शिशु लेटा पास विमुख।
काट लिया गरुड़ ने
गज शिशु का मुख ।।
तभी से गणाधीपति
गजानंद कहलाते।
इस खुशी की याद में
गणेशोत्सव मनाते।।

-दिनेश बारोठ ॓दिनेश
शीतला कॉलोनी सरवन (मप्र)।

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