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मैं और मेरी कविता

न्यूज जंक्शन-18 के धार्मिक अंक में हम भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव प्रसंग से जुड़े विशेषांक के रूप में हम कुछ रचनाकारों की कविताएं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है। इसमें कुछ गीत, कुछ प्रसंग तथा कुछ विनती स्वरूप रचनाएं सम्मिलित की गई है। इसके अलावा पिछले दिनों बारिश का अंतराल, इंद्र की बेरुखी व अब अमृत वर्षा से जुड़ी कविता भी लेकर आए हैं।

जलज शर्मा
212, राजबाग़ कॉलोनी, रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर 9827664010

रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्ति नगर, गली नंबर 2
रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर 9827047920

——-

गीत

राधिका कान्हा को ध्यान धरै
पर कान्हा ने गोकुल को बिसरायौ
कालिंदी कुल भी छूट गये
पर कान्हा ने मथुरा को अपनायौ
कैसी थी प्रीति की रीत अनोखी
कोई बृजवासी समझ न पायौ
वह प्रेम अलौकिक था उनका
जिसे मीरा और सूर भी जान न पायौ

सुनी हुई गलियां बृज की
सब सूख गई कुंजे हरियाली
सूख गये यमुना तट भी
सब सूख गई ग्वालिन मतवाली
जब से श्याम गए मथुरा
जब से गायों की बंद हुई है जुगाली
निधि वन की क्या बात करे
हर पेड़ पर पड़ गई छाया काली।

-हरिशंकर भटनागर
गीतकार
रतलाम (मप्र)
——

जन्म बार – बार

 

हे कृष्ण
हमें मालूम है तुम
एक ही दिन जन्मे थे
अष्टमी को।
उसे ही मानते है
तुम्हारा जन्मदिन आज तक

हमने पढे है
तुम्हारे गीता में दिये वचन
अर्जुन के माध्यम से मानव जाति को
कुछ पालन करते
कुछ नहीं चलते उस राह
तो हो जाता उध्दार
परंतु ऐसा हुआ नहीं

आज भी याद करते है
लोग रोज तुमको
गली मोहल्लो और मंदिरो में
रोज रोज जन्म ले रहे हो
पढ़ रहे है अखबारो में
हे कृष्ण फिर भी
अता पता नहीं
पांडवो का इनदिनों
बहुत कौरव पैदा हो गये
महाभारत के बाद भी

एक बार फिर आ जाओ
इस धरा पर
हे श्रीकृष्ण।

-पद्माकर पागे
कस्तूरबा नगर
रतलाम (मप्र)
——-

कृष्ण न कहो!

कान्हा हूँ राधा! कृष्ण न कहो
सखा हूँ तुम्हारा पराया न करो।

ना कृष्ण ! तुम कान्हा कहाँ रहे
वो माखन मिश्री के भोगी न रहे।

कान्हा होते तो तुम सुदामा के पास जाते
सुदामा कुछ कहने तुम्हारे पास न आते।

आज सूनी है गोकुल की गलियाँ
विरह में व्याकुल, अधखिली हैं कलियाँ।

अब तुम्हारा गले में वो फूलमाला नहीं है
अब तो हीरे मोती की माला चमक रही है ।

कभी तुम्हारे हाथ में बांसुरी हुआ करती थी
उसकी धुन पर मैं सुध बुध खोया करती थी।

तुम्हारे हाथ में तो अब सुदर्शन चक्र आ गया है
तुम्हारा नाम भी तो चक्रधारी हो गया है।

राधे! तुम अपने शब्द बाणों से न बेधो मुझे
दिन रात स्मृति में हो, कैसे भूलूँगा तुझे ।

कृष्ण! मैं तुम बिन हमेशा अधूरी
तुम बिन कोई आस न होती पूरी।

तुम मेरे अंतर में बसे हुए हो
हर श्वांस में रचे-बसे हुए हो ।

राधे! तू मांग ले इच्छा जो मन में हो
दूँगा सबकुछ जो भी तेरे मन का हो।

हे कृष्ण! विनती यही कि सब
हमारे प्रेम के गीत गाएँ
राधा कृष्ण का प्रेम
जगत में अमर हो जाए।

अब तो सुना दो मुझे तान अपनी मुरली की ,
भक्ति के रस में डूब जाऊं अपने बिहारी की।

विलक्षण था वो पल धरा भी थरथरा गई
कान्हा की मुरली की तान में राधा समा गई।

मित्रा शर्मा
महू (इंदौर)।
——
माधव हो जाओ तुम अवतरित

है माधव
कलयुग की इस
पाप धरा पर
तुम फिर हो जाओ
अवतरित

पापात्माओं के
बढ़ते अत्याचार से
करो तुम
इस वसुंधरा को मुक्त

क्योंकि
तुम्हारे आने की
आहट से ही
खिलने लगते हैं सुमन
चहकने लगते हैं पंछी
और स्वच्छंद कुलांचे
लगाने लगते हैं चौपाए

दिखाओ अपना
विराट स्वरूप
और कर दो
इस धरा को
अत्याचार से मुक्त
पावन निर्मल

है माधव
हो जाओ
तुम फिर अवतरित।

-संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्तिनगर, गली न.2
रतलाम (मप्र)।
मोबा. 98270 47920

———-


जाते बदरा


जाते बदरा फिर घिर आए।
डूबती नैया पार लगाए।।
हंसती फसल मुरझा रही
हलधर हुआ उदास।
जल बिन हो गई प्यासी नदिया
हरियाली ओढ़े पीला लिबास।।
साल भर की जो है कमाई।
कई बार यूं ही हंस के गवाई।
ताल तलैया सूखे कुएं।
बिन पानी के लगते मुए।।
जब बरसें अमृत की बूंदे।
मन मयूरा बैठे आंखें मूंदे।।
प्यासी धरती ने बुझाई प्यास।
नया सवेरा सुखद एहसास।।

-दिनेश बारोठ ॓दिनेश
सरवन जिला रतलाम म.प्र.

1 Comment
  1. पद्माकर पागे says

    कविताओका सुंदर संयोजन।
    बधाईयां

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