वैचारिक निरन्तरता ही साहित्य का मौलिक स्वरूप है। क्रमिक मंथन के फलस्वरूप शाब्दिक अमृत प्रवाह रचना का मूल अस्तित्व निर्मित करता है। अनादिकाल से रचनाकार इस क्रम को सिद्दतता से निभाते आए है। न्यूज जंक्शन-18 के मंच पर देश प्रदेश के गुणी रचनाकार हमारे सुधि पाठकों को हर सप्ताह अपनी श्रेष्ठ कविताओं के माध्यम से साहित्य का रसपान करवा रहे है। रविवारीय कालम ‘मैं ओर मेरी कविता’ के 7वें सोपान में हम आपके लिए कुछ नई कविताएं लेकर आए है। पोर्टल के कमेंट बॉक्स में आप अपने सुझाव भी दे सकते है।
जलज शर्मा
सम्पादक,
‘न्यूज जंक्शन-18’ न्यूज पोर्टल
212 राजबाग रतलाम
मोबाइल नंबर-9827664010
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रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
शक्तिनगर रतलाम
मोबाइल नंबर-9827047920
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अन्नदाता
वो जागता है अलसुबह
उसे फुर्सत कहाँ पूजा –पाठ करने की।
उसके खेत ही उसके भगवान।
झट पट चल देता है खेतों की ओर।
हल बक्खर के साथ फिक्र लेकर।
कहाँ बीज लगाना है ,कहाँ खाद उडानी है।
उसे फुर्सत कहाँ सुने चहचहाट चिड़ियों की।
उसे तो पानी से खेत सींचना है जल्दी जल्दी।
इतना सब करने में दोपहर हो जाती है।
2-3 रोटियाँ चटनी के साथ डाल पेट में।
फिर उठ जाता है इस चिंता में ।
बैलों को भूख प्यास लगी होगी।
दौड़कर देने जाता है उनको चारा।
फिराता है हाथ उनकी पीठ पर।
खेतों की ओर देखकर चिंतित हो जाता है ।
कहीं कोई आपदा बिगाड़ न दे फसल।
इसी चिंता में घुला जाता है।
कड़ी धूप, गलाने वाली ठंड सहकर भी।
उपजाता है अन्न सबके लिए।
कई बार भूखा रह जाता है उसका परिवार।
वो फिर भी अन्नदाता कहलाता है।
सुषमा दुबे
आकाशवाणी उद्घोषिका
,7-डीके- 1 स्कीम नंबर 74-सी,विजयनगर, इन्दौर
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वेदना
इस जीवन में त्रास बहुत है
फिर भी कुछ तो खास बहुत है
हारा हारा मन यह कहता
अभी जीत की आस बहुत है
बहुत वेदना मुस्काने का
अभिनय भी बहुत जरूरी है
और उसी क्षण बदला बदला
पल कहता मधुमास बहुत है
गांव की सौंधी माटी से
दूर गया तो क्यों रोता है
रिश्ते सदा निभाते जाना
सभी कहेंगे पास बहुत है
पीर पराई शब्द अजूबा
संवेदना भी सहज रूप में
फटी बिवाई आज अचानक
जाना मैंने फांस बहुत है
महानगर में सचमुच मैंने
होली और दिवाली देखी
उत्तरायण भी कहता है
उड़ने को आकाश बहुत है
बालू मिट्टी रेत-घरौंदे
बचपन यहां बनाते देखा
असली भी कुछ मिलती है
पर कृत्रिम ही घास बहुत है।
अखिल स्नेही
रतलाम
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रचो नया इतिहास
बढ़कर रहे न ज्ञान से, कोई यहां प्रकाश
जिसको भी ये मिल गया, छू लेता आकाश
बोले जो वाणी मिठी, मिले उसे सम्मान
इस जग का कहलाए वो, अच्छा सा इंसान
मानव जीवन है मिला, कर काम तू महान
रहना नहीं बन करके, आप कभी नादान
मिल जाता है समय से, जिसको सच्चा न्याय
फिर जीवन भर वो यहां, कभी नहीं पछताय
बुरा अगर मिले तुझको, उसको तत्काल छोड़
फिर रमेश उसकी तरफ, ना अपना मुख मोड़
जो अपनी मेहनत से, करते अपना नाम
युगों-युगों तक यह जगत, पूजे उसका काम
कर ऐसा काम अब तो, ना होवे उपहास
नई खोज करके सदा, रचो नया इतिहास
जीवन में न करें कभी, राक्षस जैसे काम
करोगे होंगे तब ही, कंस जैसे बदनाम
पैसों को ही मानता, सबकुछ रमेश आज
रिश्ते सारे तोड़ता, आती न उसे लाज
आदमी ने बदल लिया, सब अपना व्यवहार
रहा ना एक दूजे में, पहले जैसा प्यार
रमेश मनोहरा
शीतला माता गली
जावरा,जिला रतलाम
मो. 9479662215
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आत्मियबोली
बिना कहे जो समझे वो बात हूं मैं
अंधेरी हो पर सुकून दे वो रात हूं मैं।
साथ नही हू फिर भी साथ हूं मैं
हुई ही नही कभी जो मुलाकात हूं मैं।
पतझड़ में बरसे वो बरसात हूं मैं
गम में जो खुशी दे वो ख्यालात हूं मैं।
जिक्र जिसका मुश्किल हो वो जज्बात हूं मैं
गरीब को अमीरी दू वो ठाठ हूं मैं।
हर किसी पे बीते वो हालात हूं मैं
हर किसी में बसकर भी अज्ञात हूं मैं।
हर कोई न समझे वो अनुवाद हूं मैं
तीखे में मिठास भरे वो स्वाद हूं मैं
ओर कुछ नहीं बस,
अपने अपने नजरिए की बात हूं मैं,
अपने अपने नजरिए की बात हूं मैं……
~ऐश्वर्या भट्ट {AB}
(स्वरचित एवं अप्रकाशित)
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रखना हर एक क़दम संभल कर
रखना हर एक क़दम संभल कर ज़िंदगी की खाई गहरी है..!
कोई बचाने नहीं आएगा बंदे यह दुनिया तो बहरी है..!
उसे मिली है मुकम्मल मंजिल जो संभलकर चला हैं..!
अंधेरे का जिसे खौंफ नहीं और जो धूप में जला है..!
आसां नहीं है सफ़र ज़िंदगी का यह कांटो की डगर है..!
कभी तूफां के दौर आते कभी आता जलजला है..!
हौसलों के आगे कभी मुश्किलें कब कहां ठहरी है..!
रखना हर कदम संभल कर..
शौहरते पाने की चाह है तो कभी मेहनत से जी न चुराना..!
ज़ख़्म कितने भी गहरे मिले तू सदा ही मुस्कुराना..!
अश्क भरी आंखों से तो मंजिल धुंधली दिखती है..!
अकेले रो लेना महफिल में कभी भी अश्क न बहाना..!
जो मुस्कुरा कर चला है उसी की ज़िंदगी सुनहरी है..
रखना हर कदम संभल कर..
-कमल सिंह सोलंकी
सी/7 पुनम विहार इंद्रलोक नगर रतलाम
मोबाईल नम्बर 982658871