सिविल डिफेंस की पुरस्कार राशि गोल-गप्प…, सब पर भारी, स्वच्छता हमारी…अवैध कारों के लिए पार्किंग…, बाहरी लोग क्वार्टर्स से बेदखल, अंदर के नेताओं का क्या…
सब पर भारी, स्वच्छता हमारी
इन दिनों स्वच्छता को लेकर रतलाम रेल मंडल का मंडल मुख्यालय खासे चर्चा में है। स्वच्छता के नाम पर रतलाम की उपलब्धि का डंका कभी पश्चिम रेलवे जोन स्तर पर बजा करता था। अब रतलाम स्टेशन सहित शासकीय कार्यालयों की साफ-सफाई बीते कल की बात होने लगी है। सफाई की बात चली तो घूमते-घूमते यहां तक पहुंच गई कि ठेकेदार एजेंसी तथा अधिकारी में फेविकोल से भी तगड़ा गठजोड़ है। इसकी बिनाह पर ठेकेदार जहां बगैर कचरा साफ किए, बगैर कचरा उठाए करोड़ों रुपए कमा रहे है। वहीं अधिकारी को बैठे-ठाले कचरे में से मलाई खुरचन के साथ खाने को मिल रही है। हालांकि अंदर की बात यह भी निकलकर आ रही है कि पूर्व में रतलाम के अलावा जिस जोन में ठेकेदार फर्म का कभी काम चला था। हमारे यहां के साहब भी उसी दौरान उस मंडल में कार्यरत रहे है। ऐसे में रतलाम में गठजोड़ होना लाजमी भी है।
हे प्रभु, इस गठजोड़ के बीच बेचारे वे सभी यात्री पीस रहे है, जो महंगा टिकट लेकर यात्रा कर रहे है। मन मसोजकर बर्थ पर सवार वे सोच रहे हैं कि उनकी क्या गलती, जो उन्हें आते-जाते कचरे के ढेर देखने को मिल रहा है।
बाहरी लोग क्वार्टर्स से बेदखल, अंदर के नेताओं का क्या…?
पिछले दिनों रेलवे क्वार्टर्स पर अनाधिकृत कब्जे हटाने की मुहिम शुरू की गई है। दल-बल के साथ कुछ क्वार्टर्स को खाली भी कराए गए है। लेकिन उन क्वार्टर्स का क्या होगा जिन पर रेलवे के ही छुटभैये नेताओं ने कब्जे है। दरअसल रेलवे में अब तक उन चुनिंदा नेताओं की खूब तुती बोलती रही है। कर्मचारियों के तबादलों के अलावा उनके छोटे-मोटे काम औने-पौने दाम में आसानी से पूरे कर दिए जाते रहे है। ऐसे में क्वार्टर्स पर कब्जे कर उन्हें अपने लोगों को रखना बाए हाथ का खेल है। जांच के दौरान फोन घनघनाते ही मामला मौके पर ही सुलट जाता है। बताया तो यह भी गया कि रेलवे क्वार्टर्स से किराए के नाम पर खूब पैसा कमाया गया। इन्हें माह के दस-बीस हजार तो यू ही किराए के रूप में मिल जाते थे। रही बात बिजली, पानी की तो इन विभागों के एसएसई या आईओडब्ल्यू को इन नेताओं से पंगे लेने की ज्यादा अड़ी-पड़ी नहीं रहती है।
अवैध कारों के लिए पार्किंग, वैध बाइक चालक परेशान…
रतलाम में बाघा-अटारी बॉर्डर का नज़ारा देखना हो तो आपको दो बत्ती एरिया में आना होगा। तकरीबन एक साल से डीआरएम ऑफिस बिल्डिंग के पिछले हिस्से के पार्किंग को बाघा-अटारी बार्डर जैसा बना दिया गया है। पहले इस पार्किंग एरिया से दो पहिया वाहनों को हटाना शुरू किया। बल्कि यहां केवल अधिकारी की कारों (अवैध तरिके से अनुबंधित व संचालित) को ही स्थान देना तय किया गया। चेकिंग के बाद अधिकृत दो पहिया वाहनों को पार्किंग की ओर भेज दिया जा रहा है। दरअसल अधिकारियों की सेवा में लगे अधिकांश चार पहिया वाहन यातायात व परिवहन विभाग के नियमों के विपरित अनुबंधित कर चलाए जा रहे है। इन वाहनों पर यलो प्लेट के बजाय व्हाइट लगी है। ऐसे में जाहिर है कि ये बगैर टैक्स व बगैर परमिट के संचालित हो रही है। इसमें कश्मीरी राजा शान से सवारी कर रहे है।
हे प्रभु, टेंडर शर्तों का ऐसा उल्लंघन…। शासकीय नियम में टेंडर शर्तो में कमर्शियल व्हीकल होने की शर्त रहती है। तब ये सफेद प्लेट की प्राइवेट गाड़िया क्यों दौड़ाई जा रही है। शासकीय राजस्व का सीधे से नुकसान। अब तो सीधे परिवहन विभाग इसकी पड़ताल करेगा।
सिविल डिफेंस की पुरस्कार राशि गोल-गप्प…
रतलाम रेल मंडल के सिविल डिफेंस का सराहनीय प्रदर्शन मंडल से लेकर पश्चिम रेलवे जोन स्तर पर होता रहा है। रतलाम से मुंबई जाकर कई बार कर्मचारियों ने बेहतर प्रदर्शन किए है। इन्हें महाप्रबंधक द्वारा नगद राशि से पुरस्कृत भी किया गया। लेकिन बेचारे सिविल डिफेंस के इन कर्मचारियों के हाथ अभी तक यह पुरस्कार राशि नहीं लगी। कर्मचारी बताते हैं कि उन्हें एक तो स्पेशल लीव के लिए बाबूजी को खुश करना होता है। उन्हें रतलाम से लेकर मुंबई तक के सफर में ब्रांडेड महंगी पानी की बोतल के इंतजाम की हामी भरना पड़ती है। इसके बाद उन्हें लिव की लिस्ट में मंजूरी दी जाती है। अच्छे प्रदर्शन के बाद यदि उन्हें पुरस्कृत किया जाता है तो पता नहीं वह राशि क्यों उनके हाथ नहीं लगती है।
हे प्रभु,जगन्नाथम..। महाप्रबंधक के पुरस्कार की राशि का दूसरे विभागों में बराबरी से हिस्सेदारी बांटी जाती है। लेकिन सिविल डिफेंस का भगवान ही मालिक है। अब तक राशि कहां गोल-गप्प हो गई, यह खोजबीन व जांच का विषय है।