कविताओं के साहित्यिक स्तम्भ में हम भगवान राम के परिणय उत्सव को लेकर रचना सहित अन्य समसामयिक कविता पेश कर रहे है। आप हमें अपनी रचनाएं उचित माध्यम से प्रेषित कर सकते है।
जलज शर्मा
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संजय परसाई ‘सरल’
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हल्दी-गीत
हल्दी तो जल्दी सिया बेटी को लगाव री।
ब्याहने आयेंगे रामजी।
चाँद से मुखड़े पर हल्दी लगेगी।
हल्दी लगेगी, खूब सजेगी।
गंगाजल से उसको नहलाव री।
ब्याहने आयेंगे रामजी।
सियाजी के शीश पर वेणी गुथेगी।
वेणी गजरे से महक उठेगी।
मालन को जल्दी बुलाव री।
ब्याहने आयेंगे रामजी।
हल्दी तो जल्दी सिया बेटी को लगाव री।
ब्याहने आयेंगे रामजी।
सियाजी के अंग पर चुनरी सजेगी।
चुनरी में वो खूबसूरत लगेगी।
बजाजन को जल्दी बुलाव री।
ब्याहने आयेंगे रामजी।
सियाजी गहनों में खूब सजेगी।
गहनों से वो दमक उठेगी।
सुनारन को जल्दी बुलाव री।
ब्याहने आयेंगे रामजी।
हल्दी तो जल्दी सिया बेटी को लगाव री।
ब्याहने आयेंगे रामजी।
-डाॅ. शशि निगम
इन्दौर (मप्र)।
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जल ही जीवन है
जल ही जीवन है ।
बिन जल कहाँ जीवन है?
प्रकृति के पाँच निर्माण स्त्रोत में एक,
जल तो हर रूप में पावन हैं ।
जल पर ही निर्भर सभी प्राणी ,
जल पर ही निर्भर सभी ,
कुछ प्राणी वनस्पति होते ,
जल ही उनका जीवन स्थल ।
बिन जल हो जाता जीवन नश्वर ।
सदियों पहले ही समझाने यह बात ।
बालकाल हेतु रची कविता ।
“मछली जल की रानी है,
जीवन इसका पानी ,
हाथ लगाओ डर जायेगी ।
बाहर निकालो मर जायेगी ”
पर जल है हम सब के लिए जरूरी I
बिन जल हम सब की दुनियाँ अधुरी ।
भारत देश मेरा महान संस्कृति का ज्ञाता ।
यहाँ नदियों को भी माँ माना जाता ।
पवित्र गंगा जमुना सरस्वती आदि
नदियों को पूजा जाता ।
हर पूजन में गंगा जल अर्पण होता ।
पर अभी हो रहा घोर जल संकट ।
गिरता जा रहा भूतल जल स्तर ।
इधर बर्फ पिघलने से बढ़ता जा रहा,
समन्दर का जल स्तर ॥
पेड़ काटे जा रहे,नए शहर बसायें जा रहे।
कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ कहीं बादल फटना ।
प्रकृति का बिगड़ रहा संतुलन,
करना ही होगा हम सभी को जल संरक्षण ‘
पुनः उगाना होगा जंगल ‘
बन्द करना होगा विकास के आड़,
प्रकृति से खिलवाड़ ॥
-निवेदिता सिन्हा
भागलपुर,बिहार
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कुर्सी खेले खेल प्रिये
कभी इसकी कभी उसकी,
कुर्सी खेले खेल प्रिये,
खुश हो तो दे राज तुझे,
रूठी तो तिहाड़ जेल प्रिये।
किसे ठोक दे कुर्सी पर,
बनी न ऐसी कील प्रिये,
चीपका दे जो कुर्सी पर,
ऐसा न फेविकोल प्रिये।।
-कैलाश वशिष्ठ
रतलाम (मप्र)।
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दोस्ती….
दोस्त !
तुम कभी मत सोचना,
मेरे बारे में कि मैं,
तालमेल नहीं बैठा सकता,
तुम्हारे साथ,
मैंने हृदय में जगह दी है तुम्हें…।
स्वयं को स्वयं से,
अलग किया है,
तुम्हारे लिए ताकि,
पूरी तरह तुम ही,
जी सको मेरे भीतर…।
मेरे दोस्त!
तुम्हें इससे अच्छा,
क्या दे सकता हूं मैं
और तुम्हें भी इससे बेहतर,
भला क्या समर्पण मिलेगा,
स्वार्थ से भरी,
इस दुनिया में…।
– यशपाल तंँवर
( फिल्म गीतकार,कवि,लघुकथा लेखक और मालवी रचनाकार )
अलकापुरी,रतलाम