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मैं और मेरी रचना

लेखन संसार

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रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता

संजय परसाई ‘सरल’

118, शक्तिनगर रतलाम।

मोबाइल नंबर 9827047920

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दया और दान

दयावान बन कर यहाँ,
ठगा  न  जाना    यार।
सुपात्र  हैं  थोड़े   यहाँ,
कुपात्र   की  भरमार।।

दया सोच कर कीजिए,
पात्र   कुपात्र   विचार।
दयावान    ही   पहनतें,
टोपी   झालर   दार  ।।

दयावान  इन्सान   का,
कोमल सरल स्वभाव।
फस जाते हैं जाल  में,
समझे  पेच  न  दाँव।।

दान  करो  ऐसे  नहीं,
सब  कुछ देदो बीन ।
देते-देते    एक   दिन,
खुद हो जाओ दीन।।

दुःखी जन जग में  कई,
सब   के   दाता   राम।
तू कर मंगल   कामना,
तैरा   इतना   काम  ।।

-कैलाश वशिष्ठ
तेजा कॉलोनी, रतलाम (मप्र)।

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विजय स्मृति शेष…


तुम्हारी शूरता स्मृति में है,
सदैव बनी रहेगें,
वह क्षण, जब तुमने बलिदान दिया,
हमें गर्वित करेगी स्मृति शेष ।

वह आँधी जब गुजरी,
सीमा पर खड़े हुए थे
दट तुम साथ, उस आँधी में,
बजा रहे थे वीरता के ताल।

शूरता की वही भावना,
जो है अद्वितीय, तुम्हारी स्मृति में है,
वह अमर अनुभव शेष है स्मृतियों में…

तुम्हारी शूरता,
विजय का प्रतीक, वीरता तुमहारी
जिससे बच्चे भी हैं, हैरान
और करते-करते गुणगान।

वह क्षण, जब तुमने नहीं सोचा,
अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया,
बस देश की रक्षा लिए दिए अपने प्राण
की थी तुमने प्रार्थनाएं हजार।

तुम्हारी शूरता में वह उत्साह,
जो हर एक सेनानी की आत्मा में है मौजूद।
जो भूलता नहीं है तुम्हारी बात ,
वह एक देशभक्त का हृदय में है प्रशंसा।

तुम्हारी शूरता स्मृति में है,
चमकता है सदैव, जैसे हीरे की
चमकती है उसकी पवित्रता।
हर शूरवीर की कहानी में है

तुम्हारा स्पर्श, तुम्हारी शूरता में है,
वह निर्भीक रुद्राक्ष।
तुम्हारी शूरता स्मृति में है,
सजीव और प्रेरणादायक,
देश को गर्वित बनाया विश्वात्मक।

-निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर।

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संस्कार (लघुकथा)


सरकारी काम के सिलसिले में मुझे शहर से दूर स्थित कस्बे में जाना था उस कस्बे में मेरे बचपन का दोस्त भी रहता है वह शासकीय सेवा में है अपना काम समाप्त करके मित्र के यहां मिलने गया lवह कई बार आग्रह करता है कि मेरे घर आइये तो मैंने अपना वादा निभाया l उसके परिवार के सदस्यों ने बहुत ही आत्मिय स्वागत किया और उसी समय तैयार किया स्वादिष्ट नाश्ता कराया l
, मित्र के परिवार में माता पिता ,पत्नी और दो बच्चें है ,घर में सभी सुविधायें होने के साथ ही सादा जीवन उच्च विचारों से परिपूर्ण सभी सदस्यों का व्यवहार देख कर लगा कि आज के समय में भी संस्कार जिन्दा है बड़े बुजुर्ग की छत्र छाया में उनके दोनों बच्चें मस्त है दिनचर्या और बड़ो के प्रति शिष्टाचार देखकर मैंने बच्चों को प्रोत्साहित करने के उदेश्य से पूछ लिया कि आप कौन से स्कूल में पढ़ते हो ? कौन सी क्लास में ,आपके स्कूल में अच्छा अनुशासन है ऐसा लगता है तो बड़ा बच्चा कहने लगा कि सब दादा दादी ने सिखाया है पापा मम्मी को समय कहां मिलता है? उन्होंने ही हमें समाज में किस तरह व्यबहार करना है बचपन से सिखाया है और अभी भी सिखाते रहते है l

-संजय जोशी “सजग”
गुलमोहर कॉलोनी
रतलाम (मप्र)।

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मत कर गुरूर…!

जमीं पर रह, हवा में न उड,
अभी पंख बहुत छोटे हैं,
ना इज्जत, ना शान कम होगी,
जो बात तूने घमंड में कही,
गर हंसकर कही होती,
क्यों करते हो इतना गुरूर,
जिस जगह तुम आज हो,
वह कल रहेगा कि नहीं,
हर कोई की है आदत यह,
कमजोर पर वार करना,
अगर इतने बडे हुनरमंद हो,
नफरत को भीतर से निकालो,
नहीं तो संभलकर चलना सीखो,
वक्त का यह संदेश याद रखना,
एक बार श्मशानघाट हो आना,
बडे से बडे, अमीर राख में मिलेंगे।

-सतीश जोशी,
कार्यकारी संपादक 6pm
इंदौर (मप्र)।

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