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नायक नहीं, खलनायक भी तो नहीं था… सम्मान की सीख दे गया बंदा

-लालच के बजाय मोह के पाश में छला गया, लूट गई दुनिया।

न्यूज़ जंक्शन-18
रतलाम। समाज में नायक की भूमिका सर्वमान्य आधारित रहती है। यदि उस शख्स में बुराई भी है तो लोग उसे सहर्ष स्वीकार कर लेंगे। जबकि किसी की यह छबि खलनायक की निर्मित हो गई। तब उसकी अच्छाइयां भी गौण व नगण्य मान ली जाती है।

बात यहां रतलाम मंडल मुख्यालय के दिवंगत रेलवे जूनियर इंजीनियर दीक्षांत पंड्या को लेकर की जा रही है। इसे इस लिहाज से खलनायक नहीं मान सकते हैं। क्योंकि मनमौजी मिज़ाज के साथ ही वह एक नर्म दिल इंसान भी रहा है। तहजीब व सम्मान से पेश आना उसमें स्वाभाविक संस्कार में शामिल रहे। यह दिखाई भी देते थे।

इसे ऐसे भी परिभाषित किया जा सकता कि कोई शख्स यदि भीतर से नर्म और दिल से साफ है। तब स्वार्थ, लालच के बजाय उसके ह्रदय में स्वभावतः मोह, प्रेम व विश्वास समाहित रहता है। ऐसे लोग आसानी से छल व धोखे का शिकार भी हो जाते हैं। न्यूज़ जंक्शन-18 द्वारा दीक्षांत को शाब्दिक श्रद्धांजलि देने का प्रयास किया है।


पिछले दिनों हुए घटनाक्रम को दरकिनार कर बात की जाए तो मूलतः डूंगरपुर के रहते रतलाम में रेलवे नौकरी के दौरान या वेस्टर्न रेलवे एम्प्लाइज यूनियन में रहते दीक्षांत ने अदद पहचान निर्मित की। उसमें विनम्रता, व्यवहार कुशलता के अलावा वार्तालाप का उम्दा लहजा साफ़ दिखाई देता था। हर चीज को देखने व समझने का अलग नजरिया भी था। मुझे 22 दिसंबर 2023 की वह देर शाम याद है। जब दीक्षांत ने मुझे फोन पर कहा कि भैया आसमान में देखो चांद की अद्भुत छटा दिखाई दे रही है। आसपास रिंग बनी होने से चांद का सौंदर्य अलग ही दिख रहा है। कुछ ही देर में उसने वाट्सएप पर फ़ोटो भी भेज दिया। तब मैंने उसके कहने पर ‘डायमंड मून…आसमां में दिखा चाँद का अद्भुत नजारा, देखते ही ठहरी नजरें’ प्रकाशित की थी। खबर में 22 दिसंबर का दिन सबसे छोटा होने तथा सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने की सूचना से जोड़कर खबर बनाई थी।


दीक्षांत की मौत के बाद मिलने-जुलने वाले उसकी मिलनसारिता की चर्चा ख़ूब करते सुनाई दिए। लेकिन इसके दुखद अंत के साथ ही दुखद यह भी रहा कि मामले को पूरी तरह नकारात्मक मान किया गया। दुखद इसलिए भी है कि घटना में परिवार ने अपनी भावी उम्मीदों को खोया है। 10 साल के बेटे ने अपने पिता तथा पत्नी ने पति को खोया है। सभी ने दीक्षांत हत्याकांड की हर अपडेट को उत्सुकता से जानना चाहा। खबरें भी खूब पढ़ी गई। लेकिन इसके लिए अवसान स्वरूप श्रद्धांजलि के दारुण स्वर भी कहीं सुनाई नहीं दिए। सुर्खियों में बने रहने व फोटोशेषन के लिए रेलवे के दिवंगत नेताओं को याद करने के लिए इकट्ठा होने वाली जमात द्वारा तस्वीर पर फूल चढाने के लिए हाथ तक नहीं बढ़ाए।

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