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मैं और मेरी कविता

दीपोत्सव की खुशियां, आनंद, उल्लास की पूर्णता के बाद हम ‘न्यूज़ जंक्शन-18’ के डिजिटली प्लेटफॉर्म पर फिर इतर विषयों से जुड़ी रचनाओं के प्रकाशन का सिलसिला शुरू करने जा रहे है। साप्ताहिक स्तंभ ‘मैं और मेरी कविता’ के लिए दूर-दराज से रचनाकारों द्वारा रचनाएं प्रेषित की जा रही है। इन रचनाओं से हमारे पोर्टल के साहित्य सरोकार के अलावा पाठकों को साहित्य की संबद्धता मिल रही है। प्रतिसाद को देखते मंच को अनवरत स्थायित्व देने का हमें प्रोत्साहन मिल रहा है।
जलज शर्मा
संपादक, न्यूज़ जंक्शन-18
212, राजबाग कॉलोनी रतलाम मप्र।
मोबाइल नंबर- 9827664010

रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118 शक्ति नगर, रतलाम मप्र।
मोबाइल नंबर- 9827047920
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नारी तू नारायणी

नारी तू नारायणी है,
शीश अपना मत झुका,
नर की जीवनदायिनी है,
कष्ट कोई मत उठा ।

नारी जब अपने पे आएं,
बहता पानी रोक दें,
बड़े-बड़े तूफानों का,
पल में ही रुख मोड़ दें,
दुर्गा काली अष्ट भवानी,
आंचल अपना मत सुखा ।
नारी तू नारायणी है…..

नारी तू ममता की मूरत,
वात्सल्य अपना सब पर लुटा,
अपने को पहचान तू,
शक्ति अपनी जान तू,
नारे तू शक्ति स्वरूपा,
दुष्टों पर मत दया
दिखा ।
नारी तू नारायणी….

नारी तू पूजा की मूरत,
नीर अब तू मत बहा,
गर तेरा अपमान होगा,
देश ये मिट जायेगा,
सृष्टि होगी नष्ट-भ्रष्ट,
कुछ भी न फिर बच पाएगा,
तुझसे ये संसार सारा,
बात अब ये मत भूला ।
नारी तू नारायणी….

-हेमलता शर्मा भोली बेन
इंदौर (मप्र)
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मैं नहीं जानता

मैं नहीं जानता था
कि अन्धेरा क्या होता है
बचपन में कहां पहचान पाते हैं अन्धेरे को

तब तो जिन्दगी रोशनी से भरी होती है
मां से अक्सर अनजाने में कहा करता था कि
तुम्हे दिखाई नहीं देता क्या
मां होैले से मुस्कुराती तब मुझे लगता
कि मां की पलकें भीगी होतीं थीं
क्योंकि पिता जो नही थे….शायद ….
तब लगता कि शायद आँसुओं के
पीछे अन्धेरा होता होगा..
तब से आज भी अपने शब्दों के अपराध बोझ से दबा हुआ हूं मैं…

तभी भैया ने भी अलविदा कह दिया…
तब मुझे अहसास हुआ कि पिता का साया
कैसे उठ्ता है
और मैं रुबरु हुआ अँधेरों से
नहीं समझ पाया आँसू ही अन्धेरे का सबब हैं
या
अन्धेरा आँसुओं का सबब है….

माँ को दिन ब दिन बिखरता देखता और
अपनी पलकों पर पता नहीं कहाँ से
आँसुओं को खड़ा पाता

फिर कुछ ऐसा हुआ कि
बाबुजी …भैया… की तरह माँ ने भी
जिन्दगी से नाता तोड़ लिया..

आज जब माँ नहीं है तो अब रोज़
महसूस होता है कि अन्धेरा क्या होता है
सच माँ तुम हम सबके जीवन की रोशनी थीं …..
हम सबको आज भी डर लगता है अन्धेरों से….
बहुत डर लगता है…..

-मयूर व्यास
142,अपनाघर
इंद्रलोक नगर, रतलाम
मोबा. 87180 72729
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फूल

 

फूल लुभाते
मन को
फूल खिलते
सब जगहों पर
चाहे दल -दल
चाहे हो मरुस्थल।
फूल में श्रद्धा बसती
और रचते रंग
सुंदर महकते फूल
सुगंध का परचम
फहराते हवाओं में।

बेजान हो जाती
हवा
जब घुल जाता
हवाओं में प्रदूषण
छीन ले जाता हवाओं में
घुली खुशबू
कीट -पतंगे
हो जाते बेसहारा
बिन सुगंध, बिन मकरंद।

-संजय वर्मा “दृष्टि
125 शहीद भगत सिंह मार्ग
मनावर, जिला धार (मप्र)।

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