-इलेक्शन के बाद का रिलेक्शन।
न्यूज़ जंक्शन-18
रतलाम। विधानसभा चुनाव के प्रारंभिक दौर में जनसभा के लिए रतलाम आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संबोधन में भाजपा की जीत को लेकर आश्वस्त दिखाई दिए थे। उन्होंने कहा था कि 3 दिसंबर को मिठाई के साथ रतलामी नमकीन भी खाया जाएगा। मतदान के बाद अब सभी की नज़र रतलामी सेव पर टिकी है। वहीं कई लोग चटपटों के बारे में भी सोच रहे हैं। तीखे चटपटे कैसे हज़म होंगे…यह कहीं हाजमा न बिगाड़ दे…।
चटपटों का भले ही मूल अस्तित्व नहीं है। मगर ये नमकीन या मिक्स्चर के साथ जुड़कर या मिलकर स्वयं को नमकीन ही मानने की भूल कर बैठते है। राजनीतिक परिदृश्य में चाटूकारिता को भी इसी नजरिए से देखा व समझा जा सकता है। चाटूकारिता की पैठ भी राजनीतिक व्यवस्था की जड़ तक जा पहुंची है।
यह बात इसलिए भी कही जा रही है, क्योंकि चाटूकारिता का दौर आदि-अनादिकाल से अब तक अनवरत जारी है। राजे-रजवाड़े के दौर में चाटूकारों (हुजुरिये) का दखल सत्ता संचालन तक में खासा रहा है। उस दौरान भी प्रजा सीधे राजा से नहीं मिल सकती थी। नगरी में कहां, किसके यहां जाना, नहीं जाना, किससे मिलना…राजा यह राय शुमारी भी अपने चाटुकारों से ही करते आए। इन्हीं चाटुकारों में घिरे रहना राजा अपनी शान समझते थे। हालांकि इन्हीं चाटुकारों की वजह से राजाओं के राज-पाठ चले भी गए। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भी ऐसे उदाहरणों को सीख के रूप में समझा जा सकता है।
बहरहाल पीएम मोदी ने अपने संबोधन में रतलामी नमकीन को मिठाई से ज्यादा तवज्जों दी। उन्होंने तीखे चटपटों का कहीं भी उल्लेख नहीं किया। क्योंकि वो वजन में भी हल्के होते है।
दूसरी ओर रतलामी नमकीन के स्वाद की बात कही जाए तो पोहे में थोड़ा सा डाल लिया जाए तो इसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। रतलाम में कई लोग तो पोहे में नमकीन की मात्रा ज्यादा भी रखवाते है। लेकिन नमकीन में तीखे चटपटे यदि ज्यादा डाल लें तो इसके स्वाद को बेस्वाद कर देते हैं।