जिस आजादी के महापर्व को हम शान से मनाते आए है। उस स्वतंत्रता के लिए देश के क्रांतिकारियों के अलावा क्रांतिकारी कलमकारों तथा साहित्यकारों का भी अहम योगदान रहा है। अंग्रेजों को भगाने में इनकी लेखनी की अहम भूमिका रही है। लेखकों ने बाणरूपी शब्दों से आमजन में क्रांतिकारी जोश पैदा किया था। साहित्य की बात की जाए तो मुंशी प्रेमचंद की ‘कर्मभूमि’, ‘रंगभूमि’ उपन्यास हो या भरतेन्दु हरीशचन्द्र का ‘भारत दर्शन’ नाटक या फिर जयशंकर प्रसाद का ‘चन्द्रगुप्त’। सभी रचनाओं ने देशप्रेम की अलख जगाने का बखूबी काम किया है। इसी तरह कवियों की कविताओं की जोशभरी पक्तियों को गाकर आमजन ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की हुंकार भरी थी। हम न्यूज जंक्शन-18 के इस अंक में आजादी से जुड़ी कविताए लेकर आए है। इसमें रचनाकारों ने इनके माध्यम से देशप्रेम का माहौल निर्मित किया है।
जलज शर्मा
संपादक, न्यूज़ जंक्शन-18
212, रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर 9827664010
रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118, शक्ति नगर, गली नंबर 2
रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर 9827047920
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आजादी-पर्व
आजादी का आ गया पर्व।
मनाओ सभी इसे सगर्व।
झूमो-नाचो-गाओ-सहर्ष।
प्यारा है हमारा भारतवर्ष।
रहा स्वर्ण सा देश महान्।
बनाया विदेशियों ने गुलाम।
हुए थे वीर-सपूत बलिदान।
उन्हें करते बारम्बार प्रणाम।
हों सबके राष्ट्र-समर्पित भाव।
तिरंगा ध्वज हमारी है शान।
करें हम जन-गण-मन-गान।
बढ़ेगा मातृभूमि – सम्मान ।
हिन्दु-सिक्ख-इसाई-मुस्लिम।
आपस में रखें सदयता भाव।
मिलजुल करें राष्ट्र विकास।
होगा तभी भविष्य-निर्माण।
हम मिलकर लें संकल्प।
जिसका दूजा न विकल्प।
करें तन-मन-धन अर्पण।
होगा सफल आजादी पर्व।
-डॉ शशि निगम
इन्दौर (मप्र)
मोबा-7879745048
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तिरंगा
स्वतंत्रता की खुशियाँ को
मिलजुल कर मनाएं
राष्ट्रीय त्योहारों पर
तिरंगे को लहराए
आओ सब मिलके
जन गण मन गीत गाएं
हिन्दू मुस्लिम ,सिख ईसाई
आपस में सब भाई -भाई
भारत माता है
हम सब की माई
अपना सम्मान तिरंगा का
मान बढ़ावे
फक्र से हम सब
शीश को ऊपर उठाएं
आओ सब मिलके
जन गण मन गीत गाए
बलिदानियों को पुष्प चढ़ाएँ
उनके सम्मुख शीश नवाएँ
दिलाई हमें अंग्रेजों से आजादी
दुनिया को हम ये बताएँ
आओ सब मिलकर
जन गण मन गीत गाएं
देश के सीमा प्रहरी बन जाएँ
देश की रक्षा का दायित्व निभाएं
युवा पीढ़ी को ये मूल मंत्र समझाएँ
आओं सब मिलके
जन गण मन गीत गाए|
संजय वर्मा “दृष्टि
125, बलिदानी भगतसिंग मार्ग
मनावर, जिला धार (मप्र )।
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जीवन अनमोल
प्रकृति है तो ऊर्जा है,
ऊर्जा है तो जीवन है,
जीवन है तो धड़कन है,
धड़कन है तो संगीत है,
संगीत है तो उत्साह है,
उत्साह है तो उल्लास है,
उल्लास है तो उमंग है,
उमंग है तो प्रेम है,
प्रेम है तो विश्वास है,
विश्वास है तो आस्था है,
आस्था है तो भक्ति है,
भक्ति है तो शक्ति है,
शक्ति है तो प्रकृति है,
प्रकृति है तो ऊर्जा है,
ऊर्जा है तो जीवन है,
और जीवन अनमोल है !!
– मुकेश बंसोड़े
भोपाल (मप्र)
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मेरी कविता….✍
गिरकर उठी, उठकर गिरी
जीवन की दौड़ में यूं ही चलती रही,
राह के गड्ढे भी ना देख पाई
और हरदम साहस की डोर ही बुनती रही।
सागर तक छलांग लगा लेंगे
हम भी सोचते थे यही ….
पर गहराई का अंदाजा ना लगा सके
और हर श्रण ,हर दरख़्त डूबती रही।
सपने देखे थे खुली फिजाओं में हमने भी
रूह मे झांकने की कोशिश भी करती रही
लेकिन बड़े शहरों की भीड़ शोर बहुत करती है
मैं बेखबर वहां भी मुस्कुराने की वजह ढूंढतती रही।
छल के रथ पर बैठे आते हैं यहां सभी
पर मैं सारथी समझ साथ चलती रही
और छंद अलंकार सब बिखरते गए मेरे
मैं अपनी ही कविता को उन्मुक्त करती गई।
खबरें सारी बारिश में धुलती गई
बस प्रलय की बाढ़ में वो छबि ही निखरती रही..
खुशियों के रंग से बेखबर होते सभी
और गलतफहमियों की आंधियां
अपनी जगह करती रही।
ज़िन्दगी की उलझनों का खोजती रही समाधान यहां..
सारे तजुर्बे साथ लिए करती रही मलाल यहां
और गिर कर उठी ,उठकर गिरी
जीवन की दौड़ में यूं ही चलती रही।
-नेहा शर्मा
बदनावर, जिला धार (मप्र)