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मैं और मेरी कविता- भाग 8

‘न्यूज जंक्शन-18’ वेब न्यूज पोर्टल पर साप्ताहिक स्तम्भ ‘मैं और मेरी कविता’ के 8वें सोपान में हम अन्य रचनाकारों की प्रमुख उम्दा रचनाओं से आपको मुखातिब करवा रहे है। अब तक के साहित्य सफर में सामाजिक सरोकार से जुड़ी कई रचनाएं पोर्टल पर प्रकाशित की गई। बड़े स्तर पर प्रदेश सहित देशभर में यह पढ़ी गई। पोर्टल की प्रसार संख्या को देखते कई रचनाकार हमसे जुड़ने लगे है। यह सिलसिला क्रमशः चलता रहेेेगा। इस रविवारीय अंक में आपके लिए अन्य रचनाएं प्रकशित कर रहे है।

जलज शर्मा
संपादक, न्यूज जंक्शन-18
212 राजबाग़, रतलाम।
मोबाइल नंबर 9827664010

रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
शक्ति नगर रतलाम।
फोन नंबर 9827047920

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खाली दीवारें

खाली दीवारों को देखती हूं मैं
खाली पड़े मन की तरह
न इन दीवारों पर और
न ही मेरे मन पर कोई है आकृति या परछाई।

न दीवारें कुछ बोलती है और
न ही मेरे मन से कोई आवाज निकलती।
सब कुछ सुनसान है, चुप्पी है बड़ी गहरी
किसी बियाबान में फैली अथाह शांति की तरह ।

खाली पड़ी है मेरे घर की भी दीवारें
सूना सूना सा यह मन
न कोई तूफान की आहट और
न कोई चक्रावत की धमक ।
मेरा मन मुझसे विलग होकर
मुझे देखता है दूर खड़ा एकटक
चुपचाप उसी तरह जिस तरह नदी समुद्र के तट पर
समर्पण से पहले अपने अस्तित्व को निहारती है।

अकेली एकटक कुछ देर ठहर
वो भी सोचती होगी
अपने मन से, अपने खोने के बारे में।
सूना पड़ा मेरा मन ,निहारता है सूनी दीवारों को
सूनेपन को दूर करने के लिए।
न जाने वो क्या सोचता है
मुझ से अलग होकर
कौन सी दुविधा है जो मिटाना चाहता है।

मेरा मन उड़ता है जहाज के पंछी की तरह
ऊंचे गगन में ,घूमफिर कर लौट आता है
फिर से मन की अनगिनत अधूरे सपने पहले से ही थके बैठे हैं।
अखंड होने के उपक्रम में
खंड -खंड बिखरकर मेरा मन
सपना – सपना जोड़ता है कतरों की तरह
दूर तक लौटकर खुद ही से टकराकर
अपने होने की आवाज को सुनतीं हूं।
भूलती हूं या भूलाती हूं खुद को
कभी संगीत सुनकर तो कभी किताबें पढ़कर
कभी कुछ लिखकर तो कभी कुछ गाकर
लेकिन बार -बार खुद से होता सामना
इसी जद्दोजहद में अब
उभरने लगी है मेरे मन पर कुछ परछाइयां और
खाली दीवारों पर कुछ आकृतियां भी आने लगी है
धुंधली-सी नजर ।

-रश्मि पंडित
209 मोहन नगर रतलाम
7389503301
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धड़कनें है तो….

क्या कहती हैं धड़कनें,
होने का अहसास है,
अपनो से मिलाती है,
हसीन दुनिया से जोड़ती है,
नाते रिश्ते इसी से है,
खुशी है धड़कनें,
दुख है धड़कनें ,
रंगीन सपने हैं धड़कनें ,
जब तक हैं धड़कनें,
जीवन में आस है,
मंजिल की चाह है,
आगे बढ़ने का उत्साह है,
दिल को धड़कने दो,
जीवन को महकने दो।

सतीश जोशी
संपादक- औदुम्बर उदघोष
समूह संपादक- 6PM
इन्दौर (मप्र)
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पहचान बदल लेता है

चेहरे पर चेहरा लगाकर वो पहचान बदल लेता है।
अवसरवादी अवसर देखकर बयान बदल लेता है।।

रिश्वत का बाज़ार गरम है, नियमो की दलाली में,
वाक्यो के तर्जुमा को भ्रष्ट तर्जुमान बदल लेता है।

स्याह सच्चाई छुप गई, चकाचोंध की दुनिया में,
जिसको देखो आसभर वो ईमान बदल लेता है।

भूख, गरीबी, इंसान को, कठपुतली बना देती है,
अकड़ खुद्दारी की छोड़ वो तिवान बदल लेता है।

कलफ़ लगे कपड़ो की “स्वतंत्र “, गिरगिटी तासीर है,
निकलते ही काम मतलबी मुस्कान बदल लेता है।

पहचान- परिचय
तर्जुमान- अनुवादक
तिवान- सोच

-स्वतंत्र श्रोत्रिय
रतलाम।
मोबा. 9424808777
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माँ सृष्टि की करुणा

माँ सृष्टि की करुणा है
माँ स्नेह का सागर ह
माँ अंतरमन भावनाओं का भंडार हैं
संसार जीवन का आधार हैं

माँ तो सृष्टि की करुणा है
आपकी ही कोख से नाता है
मेरा जीवन ही आपको भाता है
दूध का कर्ज नहीं चुका सकता
इस जग में सदैव
स्नेह-वात्सल्य आशीष रहता
माँ सृष्टि की करुणा हैं ।

राजू गजभिये
बदनावर, जिला धार (म.प्र.)
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अभियान

प्रदेश के साक्षर नगर में शुरु हुआ स्कूल चलो अभियान
घर घर जाकर करना था अप्रवेशी एवं शालात्यागी बच्चों का मिलान
मुझ गरीब शिक्षक को भी था दायित्व को पूर्ण करने का फरमान

इसी दौरान चल चुका था शहर मे कुत्तो द्वारा काटे जाने का अभियान
जिसके शिकार हो चुके थे पचासौ बच्चे, बूढ़े और जवान
जबाव मे नगर निगम भी चला चुका था कुत्ता पकड़ अभियान

अपने अपने तीर अपने अपने कमान
अभियान के श्रीगणेश में ही कुत्तों का सरगना श्वान
बनाकर प्लान लपका मुझपर लगाकर जी जान
अचानक हो गया इस गरीब शिक्षक पर मेहरबान

अरे यार मास्टर वफादार इन्सान
तू भी परेशान में भी परेशान
और कुत्ते ने बख्श दी इस शिक्षक की जान
मुँह से निकला वाह रे भगवान
एक कुत्ता इन्सानियत का इतिहास रच गया
जान बची और 14 इन्जेक्शन का खर्च भी बच गया

सोचा मैंने आज तो गजब ही हो जाता
अगर जो कुत्ता निर्दयी हो जाता
मेरा तो महीनेभर का बजट ही बिगड़ जाता
मेरा तो महीनेभर का बजट ही बिगड़ जाता।

-श्यामसुंदर भाटी
वरिष्ठ रचनाकार एवं रंगकर्मी
रतलाम (मप्र)।

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