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मनुष्यता के विरुद्ध खड़ी आवाज़ों का प्रतिकार करती है कविता – डॉ. जलज

-प्रो. रतन चौहान के काव्य संग्रह का विमोचन हुआ।

न्यूज़ जंक्शन-18

रतलाम। मनुष्यता के विरुद्ध खड़ी आवाज़ों का प्रतिकार करना कविता का दायित्व है। जो कविता गहन अध्ययन , चिंतन और वैचारिकता के साथ आती है, वह प्रभावी होती है । रतन चौहान की कविताएं उसी गहन अनुभव से उपजी हैं । अध्ययनशीलता के बावजूद इन कविताओं ने अपनी मौलिकता नहीं खोयी है । ये कविताएं समाज के उन सभी दृश्यों को सामने रखती हैं जो हमारी ज़िंदगी का हमेशा हिस्सा रहे हैं।
उक्त विचार वरिष्ठ भाषाविद एवं कवि डॉ. जयकुमार ‘जलज’ ने प्रो. रतन चौहान के नवीन काव्य संग्रह ‘कुनबा’ का विमोचन करते हुए व्यक्त किए । डॉ.जलज ने कहा कि इस काव्य संग्रह की कविताएं यह आश्वासन देती है कि इंसानियत की आवाज़ रचनाओं के माध्यम से सदैव उठाई जाती रहेगी । उन्होंने कहा कि छंदबद्ध कविता के दौर में नई कविता का आंदोलन बहुत तेज़ी से बढ़ा, लेकिन दोनों ही विधा में कही जाने वाली कविताओं ने प्रगतिशील मूल्यों की वकालत की। प्रतिगामी तत्वों का कभी कविता ने समर्थन नहीं किया। यही कारण है कि आज भी वे रचनाएं हमारे जीवन के साथ जुड़ी हुई हैं ।


प्रो. रतन चौहान ने इस अवसर पर कहा कि कविता हमेशा उन पहलुओं को व्यक्त करती हैं जो उसकी आंखों के सामने मौजूद होते हैं , लेकिन कविता के पीछे बहुत कुछ मौजूद होता है। हर दौर में कविता ने अपनी बात को मज़बूती से रखा है । जीवन मूल्यों के प्रति कविताएं सदैव खड़ी रही हैं ।संवेदनशील मनुष्य की भांति कविता ने भी आम आदमी का हाथ थामा है ।
कवि युसूफ जावेदी ने कहा कि वरिष्ठ साहित्यकारों के सानिध्य में बैठना किसी बड़े आयोजन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है। यहां कविता की समझ भी विकसित होती है और एक ऊर्जा भी प्राप्त होती है।

बरसात में घर की याद….

विमोचन समारोह के दौरान उपस्थितजनों के आग्रह पर डॉ. जलज ने अपनी कविताएं ‘दया भाव’ , ‘गाओ मन’ ‘ बरसात में घर की याद’ एवं अन्य कविताएं प्रस्तुत कर सभी को भावविभोर कर दिया । प्रो. रतन चौहान ने अपनी ताज़ा कविता ‘अदबी नशिस्त’ प्रस्तुत की। प्रो. रतन चौहान के काव्य संग्रह ‘कुनबा’ से कविता का पाठ सिद्दीक़ रतलामी, आशीष दशोत्तर, कीर्ति शर्मा एवं पद्माकर पागे ने किया। स्वास्थ्यगत कारणों से जलज जी के निवास पर ही आयोजित इस आत्मीय कार्यक्रम में सुधिजन मौजूद थे।

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