-सूबे की सियासत के अहम किरदार बन गए भैयाजी।
-चुनावी शोर थमने का बाद अब सायरन की गूंज का इंतजार।
न्यूज़ जंक्शन-18
रतलाम। कभी देश- प्रदेश की राजनीतिक हस्तियों के ग्लैमर से कल्पित रहे विधायक चेतन्य काश्यप सूबे की सियासत के अहम किरदार बनकर अब खुद सफल राजनीतिक हस्ती में शुमार हो गए है। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान भैयाजी के रूप में इनकी इंट्री भी लोगों ने सहर्ष स्वीकार ली। गली-गली व चौक चोराहों पर भैयाजी….ओ… भैयाजी…. की गूंज सुनाई दी। बल्कि विधायक काश्यप ने सार्वजनिक रूप से कह दिया कि भैयाजी है तो भरोसा है। भरोसे का यह दायित्व और भी बढ़ गया है। जनता को इसका आभास है कि पांच सालों में और अच्छा ही होगा।
बात पिछले भरोसे की करें तो शहर में गत पांच साल में जहां इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर बड़े काम हुए है। यह शहर की आम जनता को सीधे तौर पर दिखाई दिए। वहीं शहर में नवाचारी योजनाओं को भी मूर्त रूप देने के प्रयास लोगों को हजम होते गए। हालांकि कहा यह गया कि विकास का पैसा प्रदेश से आया है। बल्कि सभी शहरों में विकास की यह प्रकिया लगभग समानांतर रहीं है। बावजूद धूल, मिट्टी के साथ ही सड़कों के गड्ढों से कुछ हद शहरवासियों को निजात मिली। तब लोगों ने इनकी विधायकी को नेक मानते हुए इस चुनाव में भी आत्मसात कर लिया।
चार दशक पहले से राजनीतिक असर
सामाजिक मुखिया की क्षमता
विकसित कर मुख्य धारा तक पहुंचे
भैयाजी कभी सियासी रण से भले ही कोसो किनारे रहे। मगर इन पर राजनीतिक असर व सियासी कल्पना का रंग तीन, चार दशक पहले ही शुरू हो गया था। जब केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल या पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं के सम्मान के बहाने पारिवारिक मेलजोल शुरू हुआ। यह मेलमिलाप अरसे तक बगैर दल, राजनीतिक पार्टी के जारी रहा। धीरे-धीरे सामाजिक सेवार्थ की भावना जागी तो राजनीतिक पृष्ठभूमि की बिसात भी बिछानी शुरू कर दी। आरोप प्रत्यारोप भी झेले। सक्रिय राजनीति में आए तो अब सफलता के पर्याय बन बैठे।
ऑनेस्ट लीडरशिप बनाम डीसेंट पॉलिटिक्स
विरोधियों के आरोप रहे कि विधायक का आम कार्यकर्ताओं से सीधा मेलजोल या जीवंत संपर्क नहीं रहता है। चुनाव प्रचार के दौरान भी ये नजदीकी संपर्क में अलहदा रहे। इसके बावजूद 60,708 मतों से जीत हासिल करना इनकी डिसेंट पॉलिटिक्स को दर्शाता है। माना जा रहा है कि इस बार भी ऑनेस्ट लीडरशीप का लाभ यहां की जनता को मिलेगा।
अंतर्मुखी स्वभाव से विरोधी दुखी
दरअसल, काश्यप के नजदीकी लोगों का मानना है कि स्वभावतः वे एक अंतर्मुखी रहे हैं। निजी तौर पर जुड़ने वाले लोगों के बीच ही वे स्वाभाविक रूप से खुलकर घुल-मिल पाते है। इस स्वभाव की विपरीत परिभाषा के रूप में विरोधियों ने उन्हें हाशिए पर लाने के पुरजोर प्रयास किए। मगर जनता ने इस विरोध को समर्थन न देकर काश्यप को सिर आखों पर बिठाया।
शहर में सायरन बजेगा या गूंजेगा जिले में
प्रदेश में भाजपा की जीत के बाद अब विधानसभाओं से मंत्री पद के दौड़ की कवायद शुरू हो गई है। रतलाम में तीन बार से बड़ी जीत हासिल करने वाले भैयाजी भी मंत्री पद के प्रबल दावेदार है। जबकि जिले की जावरा विधानसभा सीट से जीत हासिल करने वाले डॉ. राजेंद्र पांडेय भी अपनी दावेदारी का किला दमदारी से गाढ़े है। दरअसल चुनाव से पहले इन उम्मीदवारों का ध्यानाकर्षण हार-जीत या कम-ज्यादा लीड (मत अंतर) पर था। जीत के बाद अब यह आकर्षण सीधे मंत्रिमंडल गठन पर जा पहुंचा है। भैयाजी की नतीजों से पहले ही सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात हो गई। आम लोगों के साथ इन विजयी उम्मीदवारों को भी संशय है कि मंत्री पद का सायरन रतलाम शहर से बजेगा या जिले की जावरा विधानसभा में इसकी गूंज उठेगी।