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मैं और मेरी कविता

पांच दिवसीय दीपोत्सव की महक, उत्साह व उमंग पखवाड़े पूर्व ही अंतर्मन को आनंदित करने लगती है। दीपावली पर्व व इसकी पूर्व की तैयारियों को लेकर कुछ कविताएं हम आपके लिए पेश करने जा रहे हैं। रचनाकारों द्वारा हमें नियमित रूप से कुछ मिली जुली कविताओं का भी शब्द स्वादन हमारे पाठकों के लिए भेजा है।

जलज शर्मा
संपादक, न्यूज़ जंक्शन-18
212, राजबाग कॉलोनी रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर-9827664010

रचनाओं के प्रमुख चयनकर्ता
संजय परसाई ‘सरल’
118,शक्तिनगर, गली नंबर 2, रतलाम (मप्र)।
मोबाइल नंबर 8827047920
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दीपोत्सव

 

सारा घर व्यस्त हैं कहीं दाग हट्टाने की होड तो कहीं कुछ नया सज रहा हैं।

जगमगाता ये त्यौहार हर उम्र को उत्साहित कर रहता है।

वक्त का इंतजार सब को हैं जब वो मिठास और अपनापन चहरे पर मुस्कान बिखरेगा ।

बाजार रोशन हो रहे, हर रंग में सराबोर हो रहें।
पर बिन फटाको के भी दीपावली होती हैं कहीं

वहीं तो घूम धडाकेबाज अंदाज होता है।
इस उम्मीद में सारा जहान पूरा रहता है।

बच्चों को इंतज़ार ही यह खास पल रहता है।
दीप उत्सव का ये त्यौहार मंगलमय व्यापार होता है।

साल का अंतिम त्यौहार होता है
शुभ हर काम होता है।

नई नवेली दुल्हन की मेहंदी खास होतीं हैं लक्ष्मी पूजन ही तो प्रथम बार होता है।

मंगल मंगल गान होता है चारो ओर
गुलाबी गुलाबी ठंडक का भी ऐहसास होता।

-निशा अमन झा बुधे
जयपुर (राज.)
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मैं दीपक हूं

मैं दीपक हूं
अंधकार को मिटाने आया हूं ।
आत्म अवलोकन कर लीजिए प्रकाश पर्व पर ,
प्रकाश करने आया हूं ।
मैं दीपक हूं ।
मन के पंछी को समझाने आया हूं ।
इंद्रधनुषी आंखों में ,
सपनों का ताना-बाना
बुनने आया हूं ।
मैं दीपक हूं ।
तुम्हारे लिए,
सदियों से मरने मिटने के लिए तैयार रहता हूं ।
आंधियों से टकरा जाता हूं ।
तूफानों से टकरा जाता हूं ।
सिर्फ तुम्हारे लिए ,
जग के अंधेरे को दूर कर दूंगा ।
मेरी बात मान लो ।
मेरी बात जान लो ।
मेरी बात समझ लो ।
तुम्हारे तन मन धन में छिपे ,
झूठ , फरेब , छल , कपट
जैसे प्रपंचों का अंधकार मिटा लो ।
मैं दीपक हूं ।
मेरी बात मान लो ।
मेरी बात मान लो ।

-प्रकाश हेमावत
मकान नंबर 545 गली नंबर 5
बुध्देश्वर मंदिर की तरफ
टाटा नगर रतलाम
मोबा. 93015 43440
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कलम

 

क़लम ज्ञान का दीप जला कर
अंधियारा कों हरता चल,
भाव विचार नएं प्रस्तुत क़र
जग आलोकित करता चल।

तेरी कलम की दरकार होगी
प्रेम क़ा ऐसा तू नया इतिहास रचा दे,
आपसी रंजिशों को भूलाकर
अपनों को गले लगाते चले ।

दुश्मनों को भीं अपना बना ले
न कोई तलवार उठेगीं,
न कोई ललकार होगा
न कहीं किसी की खून ब़हेगी।

मेरी कलम इतना सा अहसान कर दे
कह न पाई जो जुबान वो बयान कर दे।

-मित्रा शर्मा,महू (मप्र)
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कुछ लिखते रहो

उड़ते   रहो  भाई
तो दिखते   रहोगे,
हिलते रहेंगे  पंख
तो   टिके   रहोगे,
थककर  रुके  तो
पहचान खो दोगे
ना तुम जमीं के न
आसमां के रहोगे।

-कैलाश वशिष्ठ 27,तेजाकालोनी
ब्लॉक न.1रतलाम
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माँ कहतीं थीं

माँ कहतीं थीं
तू मुस्काते हुए भाती है मुझे
मुस्काया कर
तेरी आवाज़ गुनगुनाते हुए
सुख पहुंचाती है मुझे

गुनगुनाया कर
मैं रहूँ या ना रहूँ
मेरी मुस्कान भी
तेरे अधरों पर सजे
यह कह कर
भर-भर कर
दुआओं के फूल लुटातीं थीं मुझ पर

वो दुआएँ अब शक्ति हैं मेरी
और यह मुस्कान भक्ति…..
जीवन की हर परिस्थिति में वह बातें
याद आती हैं मुझे
और उदास होते हुए भी
संभाल लेतीं हैं ये दुआएँ
कहतीं हैं मुझको
चल उठ
फिर से मुस्कुराएँ………..।

-कविता सूर्यवंशी
रतलाम (मप्र)

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