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न राहत, नहीं दे रहे जानकारी…डिप्‍टी सीटीआई के गलत फ‍िक्‍सेसन के मामले आरटीआई का जवाब देते नहीं बन रहा विभागों को

ग्रेज्‍यूटी से रिकवरी की काटी गई राशि लौटाने में जिम्‍मेदारों की उदसीनता बरकरार

न्‍यूज जंक्‍शन-18

रतलाम। त्रूटिपूर्ण पे फ‍िक्‍सेसन के चलते विभाग के जिम्‍मेदारों की गलती का खामियाजा रिटायर्ड सीटीआई को अभी भी उठाना पड़ रहा है। विभाग की गलीतियों के बाद सीटीआई के रिटायरमेंट के दौरान ग्रेज्‍यूटी से 1.73 लाख रुपए की एकमुश्‍त कटौती कर ली। इसे लेकर रिटायर्ड द्वारा आरटीआई में जानकारियां मांगी गई। लापरवाही के आलम यह है कि अभी तक मामले में सं‍बंधित विभागों के लापरवाहों पर कार्रवाई नहीं की गई। नही, अभी तक काटी गई राशि लौटाई गई। इसे लेकर आरटीआई के तहत मांगी जा रही जानकारियां भी नहीं दी जा रही है। ऐसे में अब रिटायर्ड उच्च स्तरीय अपील के बाद कोर्ट में शरण लेने की तैयारियों में जुट गया है।

बता दें कि रेलवे के सिस्‍टम व कर्मचारियों के मामले में किसी भी भुगतान की प्रक्रिया के तहत पहले स्‍थापना फ‍िर अकाउंट्स विभाग द्वारा जांच की जाती है।  इसके बाद ऑडिट भी किया जाता है। इसके बाद संबंधित को भुगतान किया जाता है। रिटायर्ड डिप्‍टी सीटीआई अनिल उपाध्‍याय के फ‍िक्‍सेसन के भुगतान में भी ऐसी ही प्रक्रिया पूरी की गई। लेकिन इंक्रीमेंट की गणना यानी फ‍िक्‍सेसन को 10 साल बाद गलत मानते हुए ग्रेज्‍यूटी से 1.73 लाख रुपए काट लिए गए। इस प्रक्रिया में विभाग के जिस स्‍तर के क्‍लर्क, एसओ सहित अन्‍य अधिकारी पर क्‍या कार्रवाई की गई। उपाध्‍याय द्वारा आधा दर्जन आरटीआई में जानकारियां मांगी गई। लिखित में चाहा गया कि स्‍थापना, लेखा शाखा में उसके प्रकरण में किस पर कैसी कार्रवाई की गई। इसका जवाब देने के बजाय विभाग द्वारा उल्‍टा उपाध्‍याय को कुतर्क दिया जा रहा कि उन्‍हें जो भी जानकारियां चाहिए, यहां आकर वे देख सकते हैं। जबकि आरटीआई कानून के तहत चाही गई जानकारियां लिखित में देना अनिवार्य है।

इस तर्क से कानूनी लड़ाई:- रिटायर्ड कर्मचारी द्वारा तर्क दिया गया कि उन्‍हें सीटीआई वेतनमान 9300-34800-4200 के तहत 20.2.2015 को पदोन्‍नति दी गई थी। पदोन्‍नति पर वेतन निर्धारण करते समय विभाग ग्रेडपे के आधार पर वेतनवृद्धि 15550 रुपए दी गई। स्‍थापना से यह फ‍िक्‍सेन स्‍वीकृत कर इसे अकाउट्स विभाग में भेजा गया। वहां पड़ताल के बाद इसकी ऑडिट में जांच की गई है। इसे दोनों प्रक्रियाओं में उपयुक्‍त ठहराया गया। इसके बाद  कर्मचारी के रिटायरमेंट वर्ष 2024 के पहले तक करीब 10 साल तक वेतन के रूप में भुगतान जाता रहा। जब फ‍िक्‍सेसन की प्रक्रिया को पूरी तरह से उपयुक्‍त मान लिया गया तो इसे बाद में गलत कैसे ठहराया गया। मामले में उपाध्‍याय का कहना है कि इसी तथ्‍य को आधार बनाकर कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। इसमें जिम्‍मेदारों को वाद में शामिल किया जाएगा।

इस आदेश को भी बनाएंगे आधार:- रिटायर्ड डिप्‍टी सीटीआई का यह तर्क मंत्रालय के आदेश में भी उल्‍ल‍ेखित है। इसे वे कानूनी लड़ाई का आधार बनाएंगे। दरअसल 15.7.2024 में आदेश जारी किया गया था। इसके बिंदू नंबर 4 में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख किया गया है कि हर कर्मचारी के मामले में 2 लाख रुपए तक के अधिक भुगतान की वसूली के नियम है। इसके तहत रेल मंत्रालय रेलवे बोर्ड सदस्‍य वित्‍त-रेलवे बोर्ड की सहमति और अध्‍यक्ष एवं मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी रेलवे बोर्ड के अनुमोदन से माफ किया जा सकता हे। 2 लाख रुपए से अधिक की वसूली माफी के प्रस्‍ताव को सदस्‍य वित्‍त-रेलवे बोर्ड की सहमति और अध्‍यक्ष एवं मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी रेलवे बोर्ड के अनुमोदन से व्‍यय विभाग, वित्‍त मंत्रालय को भेजा जाना जारी रहेगा। सभी प्रस्‍ताव को प्रधान वित्‍त सलाहकार की सहमति और महाप्रबंधक के अनुमोदन से ही अग्रेसित किया जाए। लेकिन दूसरी ओर उपाध्‍याय सहित अन्‍य के मामलों में ऐसे प्रस्‍ताव क्‍यों नहीं भेजे गए यह भी बड़ा सवाल है।

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