होली के बहाने बड़े साहब के बंगले पर फूल झांकीबाजी, दूसरी मंजिल पर आया भूचाल, चाय की चुस्कियों के आनंद ही कुछ और है, बंजली वाले साहब की दरियादिली…
जलज शर्मा,
रतलाम। दो बत्ती स्थित रेल इंजिन वाले ऑफिस के बड़े साहब के बंगले पर इस बार भी होली के खूब रंग बिखेरे गए। रीति-नीति के मान से संगठनों के पदाधिकारी भी बंगले पर जा पहुंचे। अफसरों पर रंग डालने का कोई मौका नहीं छोड़ा। बेचारे भोले भंडारी बड़े साहब को तो फूंदे व फर वाली टोपी ही पहना दी। संगठन के नए पदाधिकारियों को तो जैसे खूब आनंद आया। ऐसे में लाल झंडे वाले पूर्व पदाधिकारी भी कहां पीछे रहने वाले थे। पहले ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में झांकीबाजी कर ली। बाद में वहां से कल्टी खाकर फोन मिलाते हुए सीधे बड़े साहब के बंगले पर हंसते-मुस्कराते जा पहुंचे। गौर किया गया कि जिन अधिकारियों से फाइलों पर साइन कराने है, उन्हें खूब रंग लगाया गया।
हे जगन्नाथ, बंगले कि मौज-मस्ती के दृश्य से इतर उन कर्मचारियों की होली का ख़्याल आ जाता है। होली पर भी वे ड्यूटी पर तैनात होकर गाड़ियों की आवाजाही में जुटे रहे।
दूसरी मंजिल पर आया भूचाल, बड़ी मेंडम ने आंखें दिखाई तो कांपने लगे:- पिछले दिनों बड़ौदा में अधिकारियों की धरपकड़ के बाद दो बत्ती स्थित रेल ऑफिस की दूसरी मंजिल पर जैसे भूचाल आया हुआ है। यहां भी फूंक-फूंककर कदम रख रहे है। हालांकि यहां समस्या उलट यानी क्लास तीन वाले कल्याणों से जुड़ी है। वे अपने काले कारनामों से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में बड़ी मेडम इन पर पैंनी नजर गांढे हुए है। पिछले दिनों इन्होंने कल्याण वाले कर्मचारियों को एक-एककर अपने चैंबर में बुलाना शुरू किया। बड़ी मेडम खूब गरजी-बरसी तो इन कल्याण वालों के होश ठिकाने आ गए। दूसरे नंबर के बड़े साहब के पास भी ले जाया गया। इनमें से एक नए नवेले कल्याणकारी से तो बोला गया कि तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी..। फिर मुंह लटकाए चैंबर से बाहर निकलते गए। दूसरी ओर मुंबई की दिशा तरफ के कारखाने एरिया से जुड़े पिछड़े सेक्शन के कल्याण कर्मचारी भी कहां कम पड़ने वाले है। वे बार-बार अपने पिछड़े सेक्शन में जाकर खूद के कल्याण के प्रयास में जुटने लगे। लेकिन उनकी बातें भी रतलाम दो बत्ती ऑफिस तक पहुंचने लगी है। इस बीच खेल वाले कल्याणी हीरो बेट-बल्ले में ही खुश है। बड़े साहब के नाम से टूर्नामेंट के बाद चेक पर साइन कराने तथा गिफ्ट बांटने के काम में मशगूल है। चुपचाप निकलकर आ-जा रहे हैं।
चाय की चुस्कियों के आनंद ही कुछ और है:-इन दिनों बिल पास करने वाली टेंबल वालों की चाय व चुस्कियों का दौर गर्मी शुरू होने पर भी बदस्तूर जारी है। खानपान के कार्यालय परिसर में ही इंतजाम होने के बावजूद इन्हें बाहर होटलों की चाय ही भाती है। हालांकि टी-टाइम वाले अधिकांश कर्मचारी बिल्डिंग के निचले तल पर रेलवे का एकाउंट्स मिलाने तथा बिल पास करने वाले सेक्शन के है। सुबह 11 बजे तथा दोपहर में 4 बजे बाद तो जैसे बाहर की होटलों में हाट बाजार दिखाई देने लगता है।
बेचारे अधिकारी करें तो क्या करें…।
वे लाल बत्ती लगाए चैंबर में ही बैठे रहते हैं। उन्हें यह भी नहीं पता रहता कि चुनिंदा कर्मचारी लंच टाइम के लिए 1 बजे ही ऑफिस से छू हो जाते हैं। सो-सुवाकर शाम 4 बजे बाद आंखें मसलते, ऑफिस लौटते है। धीरे से कुर्सी पकड़ लेते हैं। वे अफसर को जरा भी ‘अंकित’ नही होने देते।
हे जगन्नाथ चाय की दुकानों पर बड़ी समस्या सीधे-साधें कर्मचारियों की रहती है। जो रोजाना चाय के लिए वे ही जेब में हाथ डालते हैं। कुछ तो चाय-नास्ते के बाद पेमेंट की बारी आती तो होटल पर हाथ धोने चल पड़ते है। या फिर सड़क से गुजर रहे अपने किसी परिचित से हाथ मिलने थोड़े दूर चले जाते हैं। बेचारे उन्ही सीधे-साधों को पॉकेट में हाथ डालने को मजबूर होना पड़ता हैं।
बंजली वाले साहब की दरियादिली:- रेलवे के एक अफसर को इन दिनों बंजली हवाई पट्टी सहित आसपास गांव वाले भी पहचानने लगे हैं। फिटनेस वाले इन साहब के क्या कहने है…। इस उमर में भी वे युवाओं को ड्रीम स्लीम का संदेश दे रहे हैं। उनकी दरियादिली देखों कि वे यहां से कार में निकलते है। तब यहां से किसी को भी साथ बिठा लेते हैं। इतना हीं नहीं वहां साथ में दौड़ाते भी है। यहीं भी है उनकी फिटनेसट का राज।
हे प्रभु, ऐसे अफसर अक्सर सालों तक याद रखे जाते हैं। अपने कर्मचारियों का जो वे इतना खयाल भी रखते हैं…। फिर चाहे अपने सेक्शन के किसी कर्मचारी को तबादला हो…। इसे रुकवाने में खूद ही सक्षम है। खुद ही निपट लेते हैं। उन्हें रिलीव करके कोई दिखा तो लें…।
अब लगाम कसी, कोई मनमानी नहीं चलेगी:- चार नंबर वाले कर्मचारियों को ड्यूटी में छुट देने की मनमानी अब दूसरी मंजिल वाली बड़ी मेडम ने कुछ दिनों से थाम दी है। हाजरी रजिस्टर पहले ताला-चांबी वाले बाबू के चैंबर में रहता था। अब टीन तंबोली (दस्तावेज) सीधे ऊपर बुलवा लिए गए है। नई व्यवस्था के बाद सफेद एवं दूधिया ड्रेसकोड वाले भैया-भाभी व छोटी-बड़ी दीदी को घर जाते वक्त सीधे ऊपर साइन करने आना पड़ रहा है। किसी को भी जल्दी घर जाने की छूट नहीं।
हां, ट्रेसकोड की बात चली तो कुछ भाभीयां यह कहते पाई गई कि हम तो रोज दूधिया साड़ी पहनकर आती है।दूसरे को जिंस व सलवार सुट पहनने की छूट क्यों दी जा रही है। क्या करो भाभी तो भाभी है। और भी कुछ कह रही थी…।