लेखन संसार
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सौगात (लघुकथा)
शीतल मन्द बयार!शांत वातावरण में कोयल की कूक!
तभी जोरों के कोलाहल ने शांति भंग कर दी। गाँव आश्चर्य से शहर से अपनी ओर आती पगडंडी को देखने लगा। ओह! आज सूरज कहाँ से निकला है? धूल उड़ाती फर्राटे से दौड़ती बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ! ये सूटेड-बूटेट काले चश्मे लगाए शहरी गाँव के रास्ते पर!
“वाह क्या मस्त हवा है। ए.सी. की हवा में वह बात कहाँ!” काला चश्मा लगाए बाल कटी महिला ने गहरी सांस, भरते हुए कहा।
“खेत, आम की बगिया, कुआँ….पिकनिक का मज़ा तो यहीं है। “सिर पर टोपी लगाए सफेद पतलून वाले साहब ने बड़ी दरियादिली से कहा।
गाँव चुपचाप सुन रहा था और सुनते-सुनते खुश भी हो रहा था। चलो देर से ही सही इन्हें मेरी याद तो आई।
खुले मैदान में दौड़ते-भागते ये सभी मानो फेफड़ों में जी भर के ताज़ी हवा भर लेना चाह रहे हों। पेड़ों पर लगे झूलों पर पींगे भरते सारे के सारे बच्चे बन गए हैं और ये महिलाएँ बैलगाड़ी पर सवार हो अपनी लक्ज़री कार भूल गई हैं।
खेत में एक कोने में नीम की छांह में उपले पर सुनहरी सौंधी- सौंधी बाटियाँ सिक गईं, चूल्हे बाल कर चक्की दली देसी दाल पक गई। दाल में तड़का क्या लगा कि कबरी के घी की खुशबू चारों ओर फैल गई। प्याज की क्यारी से चार फाँकों में कटी हरी प्याज़ सज गई। शहरियों ने जी भर खाया।
“क्या शहर में इन्हें”….
गाँव मुस्कुराते हुए सोच रहा था पर वह अपने लोगों को अपने साथ देख आनंद में डूबा हुआ था। सही तो है अपनी जड़ों से कोई अलग थोड़ी रह पाता है!
सूरज ढल रहा था। गोधूलि बेला में गो रज से वातावरण सुवासित हो गया।
“ओह माय गॉड! इट्स सो डस्टी (हे भगवान कितनी धूल है)।”
काले चश्मे वाली ने नाक-भौंह सिकोड़ कर कहा।
“दैट्स वाय आय हेट विलेजेस (इसीलिए मुझे गाँवों से नफ़रत है)।”सफेद पतलून वाले ने अजीब सा मुँह बनाते हुए कहा- “लैट्स गो बैक नाऊ (हमें अब वापस जाना चाहिए)।। “सभी शहरियों ने एक साथ कहा।
हॉर्न बजाती गाड़ियों का काफिला धूल का गुबार उड़ाता फिर शहर की ओर चल दिया। पीछे छोड़ गए मेरे लिए प्लास्टिक की बोतलें, चिप्स के खाली पैकेट्स की सौगात!
-यशोधरा भटनागर
देवास (मप्र)।
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बेकसूर (लघुकथा)
रेखा रोज की तरह आज भी अपनी माँ लीला के साथ डॉक्टर मैडम के घर झाड़ू पोछें के लिए आई थी। बीस वर्षीय रेखा की फुर्ती देखने लायक होती थी। पोछें लिए पानी की बाल्टी उठाते उठाते अचानक रेखा बेहोश हो गई थी। क्लिनिक जाने के लिए तैयार हो रही मेडम अचानक घबरा गई, उसने जाँच की तो पाया रेखा प्रेग्नेंट थी। यह तो प्रेग्नेंट है। उसने लीला को बताया।
क्या…? लीला के पैरों के नीचे जमीन खिसक गई…किसका पाप है? कहाँ मुँह काला करती रही…? लीला ने उसे वहीं पीटना शुरू कर दिया।
डॉक्टर मैडम बोली ऐसी गलती हो जाती है, चल मैं दवाई लिख देती हूँ। सब ठीक हो जाएगा।
मुझे बता तो कौन है वो?
तेरी शादी करवा देंगे।
रेखा चुप रही।
डॉक्टर मैडम बोली बता दे रेखा, अभी दो महीना ही हुआ है। उसने प्यार से रेखा के सिर पर हाथ रखा।
रेखा डरते डरते बोली,
साब ने एक दिन जबरदस्ती…।
अब डॉक्टर मैडम को चक्कर आने लगे।
फिर उसने तुरंत ही खुद को संभाल लिया, कुछ दिन बाद रेखा को तो घर रख लिया, प्रेगनेंट थी वो और अपने पति को तलाक का नोटिस भिजवा दिया। क्योंकि बच्चा तो बेकसूर था।
-श्रीमती इन्दु सिन्हा “इन्दु”
रतलाम (मप्र)।
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फ़ोटो की मुस्कान (लघुकथा)
रहने भी दो ये फ़ोटो खिंचवाना मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता, मंजरी को आज भी समीर ने झिटक दिया। आज मंजरी और समीर की शादी की सालगिरह थी। मंजरी ने जिद्द करके कहा कि आज तो हमारी शादी की सालगिरह है, एक तो फोटो साथ में खिंचा लो॥
मजंरी ने जिद्द करके एक फोटो खिंचवा स्ट्रेटस पर डाल दिया। कुछ ने नाइस पेयर आदि का मैसेज किया, पर अचानक राज अंकल के कमेंट पर मंजरी चौक गई तब गौर किया कि वो समीर के साथ मुस्कुरा रही है पर समीर उदास चेहरा बनाये उसके बगल में बैठा हुआ है. , जैसे आज का दिन उसके लिए कोई मायने रखता ही नहीं था। आखिर क्यो.. ? उसके लिए तो वो सारा शौक अपने घर परिवार सबको छोड़ कर आई। हमेशा उसके घर परिवार के साथ मुस्कुराते हुए अपना समय व्ययतीत किया। पर समीर के उदास चेहरे ने उसके सारे उत्साह को ठण्डा कर दिया। समीर को तो वो अक्सर औरों के साथ मुस्कुराते हुए फोटों खिंचवाते देखी, पर क्या दिक्कत है? कोई अपनी पत्नी- के साथ क्या जी खोल कर नहीं मुस्कुरा सकता? इतने साल में समीर सालगिरह पर कोई गिफ्ट तो क्या एक फूल भी मंजरी को लाकर नहीं दिया। पर दिल खोलकर मुस्कुरा तो सकता था। पर शायद मजंरी का भी ये आखिरी फोटो ही था, शौक से खिंचवाया। फोटो की मुस्कान आखिर फोटो मे ही सिमट गई॥
-निवेदिता सिन्हा
भागलपुर (बिहार)।
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फांस
मेरी प्रथम नियुक्ति आदिवासी अंचल के सुदूर गांव में प्राथमिक शिक्षक के रूप में हुई थी। सेवा के प्रथम दिवस कर्तव्य स्थल पहुंचने पर मुझे अजीब सा लग रहा था। इसी समय एक अधेड़ महिला मेंले कुचले लबादे तन पर डाले मेरे पास आई और अजीब नजरों से मुझे देखने लगी। मैं कुछ सहमा और हिचकते हुए अनचाहे मन से दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करना चाहा, इस पर उस महिला ने बिना प्रतिक्रिया दिए भीली भाषा में प्रश्न करते हुए पूछा’आस सोरा भणावा हरू आवइयओ ‘जिसका मतलब था क्या यहां बच्चे पढ़ाने आए हो? जिसे मैं नहीं समझ पाया था फिर उस महिला ने इशारे से मेरे यहां आने का आशय जाना था। जब यह तय हो गया कि मैं यहां पदस्थ शिक्षक हूं तो वह तेजी से अपने घर की ओर चली गई और कुछ ही देर में हाथ में दूध से भरा लोटा लेकर उपस्थित हुई। दूध से भरा लोटा मेरी तरफ बढ़ातें हुए दूध पीने का इशारा किया। ना चाहते हुए भी उसके आदेश को नकार नहीं सका। दूध आने का सिलसिला निरंतर तब तक चलता रहा जब तक भैंस ने बूढ़ी होकर दूध देना बंद नहीं किया। समय की रफ्तार ने कई वर्ष नाप दिए। मुझ पर ममता लुटाती अधेड़ महिला बुडी हो चुकी थी एक दिन उसने मुझसे पूछा था ‘मास्टर तू मारे लाकड़े आवी’ जिसका मतलब था तू मेरी अंत्येष्टि पर शामिल होगा। मैंने बात को सुना अनसुना कर दिया था। एक दिन प्रकृति की गोद में बसा शांत रहने वाला खोरा अचानक बंदूकों की गुंज से गूंज रहा था। मेरी समझ मे नहीं आया मैं इस बारे में किसी से जानकारी लूं उसके पहले मैंने देखा स्कूल की और से जाने वाली पगडंडी से आदमी की कतार आ रही।जिनके कांधे पर जलाऊ लकड़ी पड़ी थी। आदिवासी समाज की अनुकरणीय परंपरा के अनुसार मृतक की अंत्येष्टि में शामिल होने वाले प्रत्येक व्यक्ति अपने घर से एक-एक जलाऊ लकड़ी लेकर के शमशान पहुंचता है। मुझे समझते देर नहीं लगी कि मुझ पर ममता लूटाने वाली हीरकी बाई भगवान को प्यारी हो गई। आज ही के दिन संभागीय अधिकारी स्कूल निरीक्षण के लिए आने वाले थे, जिसके चलते मुझे शाला में उपस्थित रहना था। मैं चाहकर भी उस देवी तुल्य मां के अंतिम दर्शन नहीं कर पाया। मेरे कानों में आज भी हिरकी के कहे वो शब्द फांस की तरह चुभते हैं ‘ए मास्टर तू मारे लाकड़े आवी’
-दिनेश बारोट ‘दिनेश’
सरवन, जिला रतलाम (मप्र)।