ये है जमाई, सीएमआई…. रेलवे बोर्ड की पॉलिसी का असर नहीं, टेबल-कुर्सी एक ही है, बैठे-बैठे ही कर रहे तबादला आदेशों का आदान-प्रदान
न्यूज़ जंक्शन-18
रतलाम। रेलवे बोर्ड द्वारा आवधिक तबादलों को लेकर जारी नीतिगत आदेश के विपरित रतलाम मंडल के वाणिज्य विभाग में इससे संबंधित दो प्रकार की नीतियां अपनाई जाकर बोर्ड के ही आदेशों को डस्टबीन में डाला जा रहा है। हालांकि सभी कोटियों के लिए भले ही समान रूप से आदेश माने जा रहे हैं। लेकिन वाणिज्य निरीक्षकों (CMI) के लिए विभाग की अपनी अलग नीति है। यहां आधा दर्जन निरीक्षक सालों से एक ही पदों पर काबिज, एक ही कुर्सी पर सुशोभित है। पड़ताल की गई तो विभाग में घोर अनदेखी व अनियमितता उजागर होकर सामने आ गई। यह जैसे असल नियमों को ठेंगा दिखा रही है।
दरअसल वाणिज्य विभाग में समूह ‘सी’ के तहत 6 कोटि है l जिनमें बुकिंग, पार्सल, गुड्स, रिजर्वेशन, टिकिट चेकिंग एवं वाणिज्य निरीक्षक शामिल है। इसमें बुकिंग, पार्सल, गुड्स, रिजर्वेशन एवं टिकट चेकिंग में पूर्ण नियमों की पालना कर आवधिक स्थानान्तरण किए जा रहे है। लेकिन वाणिज्य निरीक्षक कोटि के आवधिक तबादलें केवल कागजों की खानापूर्ति तक सीमित है। वास्तविकता इसके ठीक उलट है।
इन कोटि में यह है नियम:- बुकिंग, पार्सल, गुड्स, रिजर्वेशन एवं टिकिट चेकिंग कर्मचारियों के आवधिक स्थानान्तरण में चार साल पूर्ण होते ही एक से दूसरे स्टेशन स्थानांतरित किया जाता है। सिर्फ कुछ ही कर्मचारियों को राहत (अनुकूलित) दी जाती है। जैसे कैंसरग्रस्त, गंभीर बीमार, विगलांग, सेवानिवृति में 2 साल से कम या मानवीय आधार पर, किसी की कोई वास्तविक समस्या हो..।
इनके तबादले कागजों पर:- रतलाम मंडल में जिम्मेदारों द्वारा कहने को वाणिज्य निरीक्षकों के वास्तविक तौर पर आवधिक तबादलें किए जाते है। लेकिन यह प्रकिया केवल कागजों तक यानी यह खानापूर्ति तक ही सीमित है। प्रशासन एवं कर्मचारियों की आँखों में धूल झोकी जा रही है। ऐसी छद्म प्रकिया सालों से पूर्व वाणिज्य अधिकारियों द्वारा भी बखूबी अपनाई जाती रही है। अभी भी बदस्तूर जाती है।
इन्हें पहुंचाया गया लाभ:- रेल मंडल के मंडल मुख्यालय में वाणिज्यिक निरीक्षकों के जलवे अधिकारी से कमतर नहीं आंके जा सकते हैं। मंडल कार्यालय में मुख्य वाणिज्य निरीक्षक की लिस्ट में अव्वल है ‘योगेश पाटिल’। चार साल के आवधिक तबादलों के नियमों को धता बताते हुए पिछले लगभग 10 वर्षो से गुड्स की टेबल देख रहे है। जब भी इनका नाम आवधिक स्थानान्तरण की सूचि में आने वाला होता है। विभाग द्वारा एक छोटा सा आदेश निकला जाता है। जैसे कि फलां-फलां काम योगेश पाटिल मुख्य वाणिज्य निरीक्षक द्वारा देखा/ किया जाएगा। इस पत्र को आवधिक स्थानांतर मान लिया जाता है। पाटिल के जिम्मे आज भी गुड्स का काम है।
एक और मुख्य वाणिज्य निरीक्षक ‘मनीष पंवार’ है। यह पहले कंजूमर फोरम के कोर्ट केस का काम देखते थे। अधिकारियों के निजी काम के प्रोटोकॉल जैसे बच्चों को स्कूल छोड़ने से लेकर कई निजी काम इनके जिम्मे रहे हैं। सीनियर होने के बाद भी एक छोटी सी टेबल का कार्य देखते आए। पिछले 10 वर्षो में किसी भी बड़ी टेबल या टेंडर वाली टेबल का कार्य नही देखा। इनका नाम आवधिक तबादले में आने वाला होता है। तब वाणिज्य अधिकारियों द्वारा एक आदेश जारी किया जाता है। कंजूमर फोरम के कोर्ट का काम देखने के साथ साथ इन्हें वाणिज्य विभाग के अन्य कोर्ट केस की सिर्फ मोनिटरिंग करने का काम ही देखना था। दो साल से तबियत नासाज़ है।
इस कड़ी में प्रमुख यानी मुख्य वाणिज्य निरीक्षक ‘क्रेटा मेन वैभव उपाध्याय’ का नाम शामिल है। यह करीब 15 वर्षो से मंडल कार्यालय में पदस्थ है। जब से ये वाणिज्य निरीक्षक बने है, आज तक इनकी पोस्टिंग मंडल कार्यालय के अलावा किसी स्टेशन पर नहीं हुई है। ये लगभग 8 वर्षो से यात्री सुविधा का कार्य देख रहे है। इनका नाम आवधिक तबादले की सूचि में आने वाला होता है। अधिकारियों द्वारा एक छोटा सा आदेश निकला जाता है। इस पत्र को आवधिक स्थानान्तरण मान लिया जाता है। सच यह हैं कि उपाध्याय द्वारा आज भी यात्री सुविधा का काम देखा जा रहा है। इनके जिम्में टेंडर के लिए सामग्रियों के मूल्य तय करने सहित अप्रत्यक्ष रूप से सप्लाय ऑर्डर देने के लिए पार्टियों व फर्म से संपर्क करना होता है। इस अप्रत्यक्ष काम को बखुकर रहे है।
ऐसे ही एक मुख्य वाणिज्य निरीक्षक ‘मनोज मिश्रा’ है। जो लगभग 7 वर्षो से साफ़ सफाई सेल में टेंडर का काम बतौर प्रभारी के तौर पर देख रहे है। ये भी वाणिज्य निरीक्षक बने है, तबसे मंडल कार्यालय में ही पदस्थ है। साफ़-सफाई सेल में टेंडर का काम देख रहे है। अब तक इनका तबादला हुआ, नहीं इनकी टेबल बदली गई है। हाल ही में एक आदेश विभाग से आदेश जारी हुआ, इसमें साफ़-सफाई सेल में टेंडर के काम के साथ ही एक अतिरिक्त काम भी दिया गया है। परन्तु साफ़-सफाई सेल से इनका तबादला नहीं किया गया।
दो साल के कार्यकाल में भ्रम व आशंका:- विभागीय सूत्र बताते है कि इन वाणिज्य निरीक्षकों के तबादले न करने के पीछे की मुख्य वजह दो साल की अवधि के लिए आने वाले अधिकारियों को लेकर है। अब तक अफसरों को ऐसा लगता आया है कि इन वाणिज्य निरीक्षकों के बिना ऑफिस के कार्य संपादन में मुश्किलें आएगी। स्टेशन पर पदस्थ वाणिज्य निरीक्षकों में से कई निरीक्षक तो सीधे आरआरबी से भर्ती हुए है। वे इन निरीक्षकों की जगह पर काम नही कर सकते…? आशंका रहती है कि नए निरीक्षकों की अफसरों के साथ पटरी नहीं बैठेगी। उनके विभागीय कार्य निष्पादन में अड़चनें आएगी। वे इनके साथ सहज न हो पाएंगे। इसी वजह से पुराने निरीक्षकों को उनके बगैर प्रयास के मलाईदार काम मिलते आए।
पूर्व विजिलेंस निरीक्षक को छोटी जिम्मेदारी:- हाल ही में सतर्कता विभाग से लौटे मुख्य वाणिज्य निरीक्षक ‘मिक्की सक्सेना’ को अनुभवी माना जाता रहा है। ये विजिलेंस में बेहतर काम कर लौटे है। इन्हें एक छोटी टेबल की ज़िम्मेदारी दी गई है। दरअसल सतर्कता विभाग में जाने से पहले वे कैटरिंग जैसी अहम जिम्मेदारी निभा चुके है। बड़ा सवाल है कि सतर्कता विभाग में बेहतर काम करने वाले सक्सेना क्या यात्री सुविधा, वाणिज्य विज्ञापन या साफ़-सफाई सेल जैसी बड़ी जिम्मेदारी के काम नहीं कर सकते..?
बोर्ड के पत्र का जवाब नहीं:- रेलवे बोर्ड द्वारा हाल ही में एक पत्र जारी हुआ है। जिसमें 3 वर्ष से अधिक समय से मंडल कार्यालय में काम कर रहे वाणिज्य निरीक्षकों को स्थानांतरित कर हटाना है। इस संदर्भ में वरिष्ठ उप महाप्रबंधक (सतर्कता)/ चर्चगेट द्वारा रेलवे बोर्ड के उक्त पत्र का हवाला देते हुए मंडलों को जानकारी दिए जाने के लिए पत्र लिखा गया है। विभागीय सूत्र बताते है कि इन वाणिज्य निरक्षकों को मंडल कार्यालय के तबादले से बचाने के प्रयास में बोर्ड के पत्र का आज तक उचित उत्तर नही दिया गया। दूसरी ओर जनसंपर्क विभाग द्वारा कहा जा रहा है कि मंडल में नियमों से काम किए जा रहे है। मामले को न्यूज़ जंक्शन-18 द्वारा लेकर रेल मंत्री को ट्वीट किया जाएगा। साथ ही केटरिंग यूनिट आबंटन में अनियमितता के बतौर दस्तावेजी सबूत जल्दी ही खबरों का प्रकाशन किया जाएगा।